जब हाईकोर्ट से भी नहीं मिला न्याय तो फांसी पर झूल गए सुरेन्द्र सिंह बघेल

भोपाल। मध्य प्रदेश अशासकीय विद्यालय संगठन के प्रदेश अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह बघेल ने प्रेमपुरा गांव स्थित अपने स्कूल में फांसी लगा ली। सुसाइड नोट में उन्होंने ज्यादती के मामले में झूठा फंसाए जाने का जिक्र किया है। इस मामले में सेशन कोर्ट ने उन्हें सजा सुना दी थी। उन्होंने हाईकोर्ट में इसके खिलाफ अपील की थी परंतु हाईकोर्ट से अपील खारिज कर दी गई। इसी के बाद उन्होंने यह कदम उठाया।

करारिया फार्म, बजरिया निवासी 44 वर्षीय सुरेंद्र सिंह युवा कांग्रेस से भी जुड़े रहे हैं। इन दिनों वे प्रेमपुरा स्थित न्यू कल्चरल हायर सेकंडरी स्कूल का संचालन कर रहे थे। एएसपी राजेश सिंह चंदेल ने बताया कि शुक्रवार दोपहर सवा एक बजे उन्होंने अपने भाई अजय को फोन कर स्कूल से गाड़ी घर ले जाने की बात कही। कुछ मिनट बाद जब अजय ने उन्हें कॉल किया तो रिसीव नहीं हुआ।

शक हुआ तो वे स्कूल पहुंचे, जहां स्टाफ रूम का दरवाजा अंदर से बंद था। खिड़की से झांकने पर पता चला कि सुरेंद्र ने नायलॉन की रस्सी से फांसी लगा ली थी।

2005 में दर्ज हुआ था मामला

एएसपी ने बताया कि वर्ष 2005 में रीवा की एक महिला ने लौर थाने पहुंचकर सुरेंद्र पर ज्यादती के आरोप लगाए थे। पुलिस ने सुरेंद्र के अलावा अन्य लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया था। सुसाइड नोट में उन्होंने लिखा है कि शिनाख्ती परेड के दौरान महिला ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया था। साथ ही जिस दिन की घटना बताई गई, उस दिन वे भोपाल में आयोजित एक बैठक में मौजूद थे। इसके सबूत पुलिस को उपलब्ध करवाने के बाद भी उसका जिक्र चालान में नहीं किया गया, जिसके चलते उन्हें सजा हुई।

छह पेज के सुसाइड नोट में परिजन, स्टाफ और परिचितों के लिए लिखीं बातें

बच्चों का ध्यान रखना
माता-पिता को संबोधित नोट में उन्होंने लिखा है कि, 'बच्चों का ध्यान रखना, मैं टूट गया हूं। मेरी जब आपको ज्यादा जरूरत थी, तभी साथ छोड़ रहा हूं।

खत्म हो गई है क्षमता
स्कूल स्टाफ और मप्र अशासकीय विद्यालय संगठन को संबोधित करते हुए सुरेंद्र ने लिखा है 'मैंने आपका काफी साथ दिया, अब मेरी क्षमता खत्म हो गई है। आपको भी मालूम है कि उस दिनांक को मैं आप लोगों के साथ बैठक में मौजूद था, फिर भी मुझे सजा हो गई।

आपने काफी मदद की
मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को संबोधित नोट में लिखा है 'इस प्रकरण में आपने मेरी काफी मदद की, फिर भी पुलिस ने मुझे आरोपी साबित कर दिया। मैं यह कदम इसलिए उठा रहा हूं, ताकि कोई दूसरा व्यक्ति पुलिस की गलत कार्रवाई का शिकार न बन सके।


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