सुप्रीम कोर्ट ने शिवराज सरकार को सुनाई 1 लाख रुपए के जुर्माने की सजा

भोपाल। सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन की एक बेवकूफी के चलते शिवराज सरकार को सुप्रीम कोर्ट के हाथों दण्डित होना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने शिवराज सरकार को एक लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। सनद रहे कि इस मामले में शिवराज सरकार ने 20 वकीलों की पूरी फौज लगाई थी फिर भी सरकार कोर्ट में जीत नहीं पाई।

सनद रहे कि राज्य के सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने जिला सहकारी केंद्रीय बैंक पन्ना के अध्यक्ष के साथ हुए विवाद से नाराज होकर अपने स्तर से दबाव बनाकर बैंक के संचालक मंडल को भंग करा दिया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और न्यायाधीश के.एस. राधाकृष्णन और दीपक मिश्रा ने विगत 16 मई को सिविल अपील क्रमांक 4691/2013 में फैसला देते हुए संचालक मंडल भंग करने के आदेश को निरस्त कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण में अर्ध न्यायिक शक्तियों का दुरूपयोग करने का दोष सिद्ध होने पर राज्य सरकार पर एक लाख रूपये और संयुक्त पंजीयक, सागर पर 10 हजार रूपये का जुर्माना लगाया है।

प्रदेश कांग्रेस के सहकारिता प्रकोष्ठ के अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री भगवानसिंह यादव ने आज जारी बयान में कहा है कि सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन और बैंक के अध्यक्ष के बीच हुए विवाद के बाद प्रतिशोध की भावना से मंत्री के इशारे पर बैंक के संचालक मंडल को भंग किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह सिद्ध हो चुका है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सहकारिता मंत्री की नैतिक हार अंतर्निहित है। ऐसी दशा में सहकारिता मंत्री को सरकार पर एक लाख रूपये के जुर्माने के बाद अपने पद से तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। आपने राज्यपाल से अनुरोध किया है कि सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले के बाद बिसेन को मंत्री के संवैधाकि पद पर बने रहने का अधिकार नहीं रह गया। यदि वे स्वयं पद न छोड़े तो राज्यपाल उन्हें बर्खास्त करें।

श्री यादव ने बताया है कि सहकारिता क्षेत्र के इस महत्वपूर्ण प्रकरण में जिला सहकारी बैंक पन्ना के अध्यक्ष नगाइच की ओर से वरिष्ठ अभिभाषक विवेक तन्खा ने पैरवी की थी, जबकि म.प्र. शासन की ओर से वरिष्ठ अभिभावक व्ही.के. बाली, नारीमन सहित 20 अभिभावकों के बड़े दल को पैरवी में लगाया गया था।

अनुमान है कि राज्य सरकार ने सहकारिता विभाग के आदेश के बचाव की पैरवी पर करोड़ों रूपये खर्च किये हैं। भगवान सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सहकारी संस्थाओं के संचालक मंडल को भंग करने के लिए सुस्पष्ट मार्गदर्शी नीति निर्धारित की है। इस नीति में सहकारिता विभाग के पंजीयक और संयुक्त पंजीयक को प्राप्त अधिकारों के उपयोग का न्यायिक ढंग से उपयोग करने के निर्देश शामिल हैं।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सत्ता में बैठे व्यक्तियों को इस नीति के अनुसार कार्यवाही न करने पर सचेत भी किया है। कोर्ट ने इस प्रकार के अवैधानिक आदेशों पर न्यायालयीन फैसले के विरूद्व अपील करके जन-धन का अपव्यय न करने की सलाह भी राज्य सरकार को दी है।

कांगे्रस के सहकारिता प्रकोष्ठ के अध्यक्ष ने अपने बयान में आगे कहा है कि जिला सहकारी केंद्रीय बैंक, पन्ना के प्रकरण में प्रमाणित रूप से दोषी पाये गए संयुक्त पंजीयक, सागर के खिलाफ विभागीय कार्यवाही के जरिये प्रशासनिक तौर पर दंडित करने हेतु भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिये हैं।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि पंजीयक एवं संयुक्त पंजीयक को राजनैतिक दबाव एवं प्रभाव में आकर कोई कार्यवाही नहीं करना चाहिए। यदि वे ऐसा करें तो सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ कार्यवाही करने तथा तत्संबंधी वैधानिक कार्यवाही पर होने वाले खर्च के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराने के आदेश भी राज्य शासन को दिये हैं। श्री यादव ने चेतावनी दी है कि संयुक्त पंजीयक, सागर के विरूद्व सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए निर्देशों के अनुसार कार्यवाही नहीं की गई तो सहकारिता मंत्री और दोषी अधिकारी के विरूद्ध कांग्रेस के सहकारिता प्रकोष्ठ द्वारा यथोचित वैधानिक कार्यवाही की जाएगी।  
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