उनसे ओलंपिक में गोल्ड मैडल जीते थे अब वो मेंटली चैलेंज्ड है, गोलगप्पे बेचती है

भोपाल।  2011 में एथेंस में हुए स्पेशल ओलिंपिक में दो ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश का सिर ऊंचा करने वाली एक किशोरी को गोल गप्पे बेचने पड़ रहे हैं। प्रतिभाओं का अपने प्रदेश में क्या हाल होता है, रीवा की सीता साहू की कहानी यही बताती है। 15 साल की यह एथलीट मेंटली चैलेंज्ड है। इसके बावजूद वह मां का हाथ बंटाने के लिए गोल गप्पे बेचती है।

जबलपुर की सीता की कहानी परियों की कहानी सरीखी है। उसकी जिंदगी में दो बार सिंडरेला मोमेंट आए। एक तो तब, जब शिवराज सिंह चौहान के घर वह 7 अन्य बच्चों के साथ चाय पीने के लिए गई। दूसरा कुछ महीने बाद, जब जुलाई 2011 में वह अथेंस से दो ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश लौटी। उसने 200 मीटर और 1600 मीटर की स्पेशल गेम में मेडल जीते थे।

कोच साजिद मसूद के मुताबिक, इस गेम में जीतने के बाद सीता की लाइफ बदल गई। वह गजब के आत्मविश्वास से लबरेज हो गई। बाकी प्रतिभागियों के साथ उसने अपने बालों में कंघी करना तक सीख लिया। सामाजिक न्याय मंत्री ने गोल्ड जीतने वाले को एक लाख, सिल्वर जीतने वाले को 75 हजार और ब्रॉन्ज जीतने वाले को 50 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा की थी।

सीता को एक लाख रुपया मिलना था लेकिन उसे मिला इंतजार। इसके बाद सीता की मां किरण साहू ने तय किया कि सीता को हाथ का हुनर सीख लेना चाहिए, तभी उसकी आगे की जिंदगी में कुछ मिल सकेगा। वह नहीं चाहतीं कि सीता से कोई इस बारे में बात करे ताकि वह ज्यादा अपसेट न हो। उसके बारे में पूछने पर किरण कहती हैं, मेरी बेटी एकदम परफैक्ट गोल गोलगप्पे बना लेती है और उन्हें हल्का ब्राउन भी तल लेती है।

सीता की ट्रेनर ऊषा भी कहती हैं कि गुजरी बातों पर बात करते ही उसके घरवाले परेशान हो जाते हैं इसलिए मैं उनसे अब इस बारे में बात ही नहीं करती।

दूसरी तरफ सामाजिक न्याय मंत्री का कहना है, न तो वह लड़की और न ही उसके परिजन कभी मुझसे मिले। अब मुझे पता चला है कि ऐसा हुआ है तो मैं इसकी जांच करवाऊंगा। विभाग की जॉइंट डायरेक्टर गीता कामटे ने कहा कि जिला प्रशासन जब चाहे तब उसे 2 लाख रुपये दे सकता है। हमारे पास ऐसी कोई अथॉरिटी नहीं है।
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