संविदा शिक्षकों के मामले में केन्द्र सरकार के दखल की दरकार

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अनिल नेमा। बिहार में नियोजित शिक्षकों ने अपनी जायज मांगों के लिये जंगी प्रदर्शन किया,जगह-जगह ‘‘सरकारी पुतलों’ के सामने काले झंडे लहराये, काली पौशाक पहनी, पुलिस ने इन्हें दौड़ा -दौड़ा कर मारा । रायपुर में शिक्षाकर्मियों के उपर लाठियां भांजी, जम्मू कश्मीर में सियासी ताकत के दम पर शिक्षकों के आन्दोलन को कुचला गया तो दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश में शिक्षा मित्रों का ,हिमाचल में जलवाहक(शिक्षकों), राजस्थान में अध्यापकों का ,महाराष्ट्र में शिक्षकों का शोषण बदस्तूर जारी है । कब तक ये शोषण होते रहेगा क्या केन्द्र सरकार को इस मामले में दखल नही करना चाहिये।

मित्रों मध्यप्रदेश में भी शिक्षकों का नाम बदलकर शोषण की कहानी पिछले 17 साल से जारी है। सरकार ने चालकी से कंजूसी बनिये की तरह एक ही काम के लिये अलग-अलग वेतन की व्यवस्था कर शिक्षाकर्मी,संविदा शिक्षक,अतिथि शिक्षक,गुरूजी,अनुदेशक तरह तरह के नाम से पुकार कर बेरोजगार नौजवान का आर्थिक व सामजिक शोषण निरंतर किया है,जब इस शोषण के विरोध में अध्यापक एकजुट होता है तो सरकार शतरज के माहिर खिलाडी की तरह बिसात बिछाकर इनके बीच में आपसी फुट का अंकुरण पैदा कर देती है । ऐसा ही उदाहरण पिछले माह देखने को मिला।

छत्तीसगढ़ के आन्दोलनकारी शिक्षाकर्मियों के प्रदर्शन की तरह मध्यप्रदेश में भी शोषण के विरूद्ध एकजुटता का कार्यक्रम भोपाल में बन रहा था । प्रदेश के 3 लाख अध्यापक,संविदा शिक्षक,गुरूजी,अतिथि शिक्षक एक मंच पर ‘‘सयुक्त मोर्चा ’’ बनकर एकजुट हो रहे थे । एक ऐतिहासिक आन्दोलन के श्रीगणेश की तैयारी चल रही थी । सरकार को इसकी सूचना लगी ,सरकार को छत्तीसगढ़ व बिहार से भी ज्यादा आक्रामक आन्दोलन होने के संकेत मिले । फिर सरकार ने अपनी शतरजी बिसात का फैलाया और एक कुटनीतिक चाल से आन्दोलन को दबाने का प्रयास किया ,‘‘शिक्षा महापंचायत’’ के नाम पर अध्यापकों में फूट डाल दी। ब्रिटिश रणनीति की तरह दो अध्यापक भाईयों के बीच एक रेखा खींच दी ।

मित्रों,सरकार नही चाहती थी कि भोपाल एक बार फिर ‘‘किसान आन्दोलन ’’ की तरह किसी कब्जे कि गवाह बनें । चूॅंकि सरकार को पता था कि प्रदेश के 3 लाख अध्यापक,संविदा शिक्षक,गुरूजी एकजुट होकर संयुक्त मोर्चा के बैनर तले भोपाल में प्रदर्शन करते तो छत्तीसगढ़ व बिहार से ज्यादा भयावह ,आक्रामक आन्दोलन होता,और आम आदमी तक अध्यापकों के शोषण की कहानी पहुंचती तो सरकार का कल्याणकारी चहेरा जनता के सामने आ जाता । मित्रों आपको याद होगा कि प्रदेश सरकार ने इसी डर से आन्दोलन के समय लाखों रूपये सरकारी खजाने से खर्च कर एक बहुरंगी और अध्यापकों के लिये किये गये प्रयासों को बढ़ा चढा़ कर विज्ञापन के माध्यम से आमजनों को समझने का प्रयास किया था। इसी कारण ‘‘महापंचायत’’ के नाम पर सरकार ने अध्यापकों को दो घड़ में बांट दी ,दो भाई अब एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करने लगे। दोनों आम अध्यापकों को यह बताने में लगे है कि जो कुछ फायदे अध्यापकों को हो रहे है या हो सकते है वो हमारे प्रयासों से हो रहे है ।

मित्रों सही बात तो ये है कि आन्दोलन के दो माह होने को है और दोनों गुटों के कोई भी नेताओं को मुख्यमंत्री जी ने आज तक वार्ता के लिये नही बुलाया है,और न ही आज तक दोनों ही गुट मुख्यमंत्री जी से सीधे ही मुखातिब हो पायेे है । बस यहीं खबर ब्रेकिग न्यूज बनती है ‘‘ अच्छा हो रहा है’’ ‘‘जल्दी होगा ’’ । वही दूसरी तरफ लेख लिखते लिखते छत्तीसगढ़ से मेरे एक दोस्त उत्तम कुमार देवांगन का मैसजे छत्तीसगढ़ से '' नेमा जी नमस्कार, आज हुई सचिव स्तरीय चर्चा के पश्चात छत्तीसगढ़ सरकार ने निर्णय लिया हैं की जिन शिक्षको का कार्यकाल 8 साल पूर्ण हो गया हैं, उन्हें छटवां वेतनमान का लाभ दिया जायेगा. वर्तमान देय वेतन से उन्हें लगभग 80 % का लाभ मिलेगा. संविलियन के मुद्दों को सिरे से नकार दिया गया हैं.''

परन्तु सरकार की एल.आई.बी.यह नहीं जानती है कि भोपाल में अध्यापकों के बीच रेखा खींच गई हो परन्तु जमीनी स्तर पर आज भी संयुक्त मोर्चा जिन्दा है,क्योकि गुरूजी हो या अध्यापक या फिर संविदा शिक्षक सबकी मंजिल एक है ‘‘शिक्षा विभाग में संविलयन ‘‘ एक काम,एक नाम व एक दाम’’ मित्रों हम मे मतभेद हो सकते है,मनभेद नहीं ।

इतिहास ने प्रलय और सृजन को शिक्षकों की गोद में खेलते हुये देखा है । आओ मित्र मतभेद भुलाकर एकजुट हो जायें जोर से आवाज लगायें ‘‘ आवाज दो हम एक है ’’

आपका
अनिल नेमा
आम अध्यापक
Cont-9329498050


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