राकेश दुबे@प्रतिदिन। आखिर मनमोहन सिंह ने आज कह ही दिया कि उन्हें तीसरे टर्म के बारे में कुछ पता नहीं और सत्ता के दूसरे केंद्र की बात को भी सिरे से नकार दिया और विक्रम और वेताल की कहानी की तरह सवाल घूम कर सामने आ गया है कि बताओ राजा दूसरा “केंद्र” कौन ?
कहानी की तौर पर बेचारे राशिद अल्वी को यह मानना पड़ा कांग्रेस में सत्ता के केन्द्रों का विकेन्द्रीकरण है और दो केन्द्रों के सवाल पर दिग्विजय सिंह की राय निजी है| राशिद अल्वी सीधा जवाब देने के बजाय यह कहकर पल्ला झाड़ गये कि दिग्विजय सिंह पार्टी की राय के साथ है ? अब तो किसी को साफ करना होगा , दूसरा केंद्र कौन ? इसके बाद यह सवाल उठेगा कि उसका हस्तक्षेप कितना और उसके दुष्परिणाम क्या?
दूसरे प्रश्न का उत्तर राजा के पास है पर शायद विक्रम वेताल की तरह मौन रहना मजबूरी है | केंद्र खुद बोलता नहीं है, समझनेवाले समझ गए है न समझे वो अनाड़ी हैं | मन मोहन सिंह तो बेचारे हैं | आज ही कितनी सादगी से कह गये की राहुल बाबा आज प्रधानमंत्री बनना चाहे तो बन जाये | तीसरा मौका उन्हें मिलेगा कि नही , उन्हें क्या किसी को नहीं पता ? बेचारे इसे काल्पनिक बात कह रहे थे, हकीकत में तो “भई गति सांप छ्छुन्दर केरी ............|”
सवाल अपनी जगह और उत्तर अपनी जगह कांग्रेस में सब लोग अभी एक बात पर सहमत है की राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बन जाये | सिर्फ राहुल गाँधी को छोडकर | कांग्रेस को मतलब, वह गुट जो अपने को कांग्रेस कहता है उसे एक साथ बैठ कर तय कर लेना चाहिए कि चुनाव कौन सा केंद्र लड़ेगा ? और सत्ता कौन सा केंद्र भोगेगा |