राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक तरफ मुलायम सिंह अपने गठबन्धन के बारे में भयादोहन का आरोप लगा चुके है| दूसरी ओर नीतिश कुमार के प्रधानमंत्री के “टोपी” और “टीका” के फार्मूले ने भाजपा में हलचल मचा दी है| ऐसे ही सवाल जनता पार्टी के जुड़ने और टूटने के समय उठे थे| जिस वाजपेयी सरकार की तारीफ लोग करते है वह तो गठबंधन पर क़ुरबानी का सबूत है|
वाजपेयी सरकार तो गठबंधन धर्म के मुकाबले वचन भंग की तोहमत झेल कर चली गई और उनकी पार्टी अब तक झेल रही है| सवाल यह है कि अपने साथियों की तासीर गठबंधन करते समय समझ नहीं आती या सिर्फ कुर्सी पाने के लिए कुछ भी कर लेते हैं| उदहारण के लिए, देश के प्रमुख पदों पर विदेशी मूल के व्यक्ति का आरुढ़ होना और शरद पंवार और पी ए संगमा की तब और अब की भूमिका है |
नीतिश कुमार जनता पार्टी के एक अवयव से बने जनता दल यूनाइटेड के मुख्य मंत्री हैं| आज वे राजधर्म निभाने की नसीहत भी दे रहे है| उनकी राजनीतिक यात्रा तो अस्थायित्व का जीता जागता नमूना है| भारतीय लोक दल, जन मोर्चा ,जनतादल, समता पार्टी और जनता दल यू| यह कौन सा राजनीति धर्म है? गोधरा कांड के बाद भी मंत्री रहना और तब न बोलना कौन सा धर्म था? मुकाबले में नरेंद्र मोदी हैं जो उस दल से अब तक जुड़े हैं जहाँ से वे शुरू हुए थे|
अब बात सेक्युलर होने की भारतीय जनता पार्टी और उसकी पूर्ववर्ती जनसंघ और संघ के रिश्ते क्या सबको नहीं मालूम ? जनता पार्टी के दौरान दोहरी सदस्यता की बात उठाने वाले आज जनता दल यू के सिरमौर है| कैसे और क्यूँ रहे अब तक ? यह सिर्फ वोट बटोरने की और कुर्सी से चिपके रहने की नौटंकियाँ है| भयादोहन और लालच के धारावाहिक उपन्यास है, ये गठबन्धन| अब तो वोट किसी एक को देना होगा, खिचड़ी से परहेज़ करना होगा|