भोपाल। राजधानी में जर्जर भवनों की भरमार है। नगर निगम द्वारा बरसात के पूर्व किए गए सर्वे के अनुसार अभी 242 चिन्हित जर्जर भवन हैं, जिनमें रहवास है। गौरतलब होगा कि बीते साल सिर्फ तीन जर्जर मकान ही ढहाए जा सके थे। बाकी मकानों के बारे में अनिर्णय की स्थिति है।
नगर निगम के सूत्रों के अनुसार हर साल बरसात से पहले जर्जर और खतरनाक मकानों का सर्वे करके सूची जारी की जाती है, लेकिन इन जर्जर मकानों को ढहाने के बजाय बहानेबाजी करके टाल दिया जाता है। वर्ष 2012-13 में निगम के सर्वे के मुताबिक शहर में 242 जर्जर और खतरनाक मकान थे। इनमे से 80 फीसद मकान पुराने भोपाल में हैं। इन मकानों को चिन्हित करने के बाद नोटिस भी दिए गए थे, लेकिन ढहाया सिर्फ तीन मकानों को ही गया।
बाकी के संबंध में निगम प्रशासन का कहना हैकि, मकानों को नोटिस देने के बाद भवन स्वामी अदालत चले गए और स्थगन ले आए। इसके अलावा करीब 40 मकान ऐसे हैं, जिनमें किराएदार भरे पडे हैं और बिना खाली कराए ढहाया नहीं जा सकता। पुराने भोपाल मे वक्फ प्रॉपर्टी घोषित मकानों से भी किराएदार बाहर निकलने को तैयार नहीं है। नतीजे में ढहाने की कार्रवाई नहीं हो पाती है।
भूकंप रोधी नहीं है अस्पताल
राजधानी के सर्वाधिक पुराने और बडे शासकीय अस्पताल हमीदिया और सुल्तानिया भी खतरे की जद में हैं। दोनों ही अस्पताल की बिल्डिंगें 100 साल से ज्यादा पुरानी है। जिनका निर्माण भारी पत्थरों से किया गया था। समय के साथ दोनों अस्पतालों में बरसात के दौरान रिसन की समस्या बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही चूहों ने भी दीवारों में बिल बना दिए हैं, जिससे नींव कमजोर हो गई है।
खस्ताहाल सदर मंजिल
नगरनिगम का मुख्यालय सदर मंजिल भी खस्ताहाल है, जिसमें बरसात के दिनों में हर मंजिल में पानी भर जाता है और दीवारें पानी रिसने से गीली हो जाती हैं। मुख्यद्वार के ठीक ऊपर छज्जे में पानी भरा रहता है। तीन साल पहले 77 लाख रुपए का प्रस्ताव सिटी इंजीनियर अनिल नंदा ने बनाकर सौंपा था। इसके बाद इस मरम्मत संबंधी फाइल का ही पता नहीं है।