भोपाल। गरीबों की सेवा के लिए भारत आईं ईसाई मिशनरीज द्वारा संचालित स्कूलों ने शिक्षा के अधिकार के तहत गरीब बच्चों को प्रवेश देने से फिर इंकार कर दिया है। इससे पूर्व उन्होंने खुद को अल्पसंख्यक स्कूल बताकर खुद को इस बंधन से बचा लिया था। अब नए निर्देश आए हैं तो उनका कहना है कि नियम हमें मंजूर नहीं। हम हाईकोर्ट में चेलेंज करेंगे।
सवाल यह उठता है कि जब गरीबों की सेवा ही करना है तो नियमों को स्वीकार करने में समस्या कैसी। स्कूलों की बेलेंस शीट तो यही बताती है कि सेवा की जा रही है। सरकारी रिकार्ड बोलते है। कि तन मन और धन लगाकर ये मिशनरीज भारत के उन गरीब बच्चों का शिक्षा का स्तर मजबूत कर रहीं हैं और इसीलिए इन्हें भारत में इतनी वेल्यू भी दी गई है।
मप्र इंटर डायोसेशन कैथोलिक स्कूल (एएमपीआईसीएस) के अंतर्गत मिशनरी स्कूलों के प्राचार्यों की बैठक सेवा सदन तुलसी नगर में आयोजित की गई थी। इस दौरान कैथोलिक चर्च के प्रवक्ता फादर एस सोलोमन, फादर जानी पीजे, फादर थामस अतुमैल उपस्थित थे।
बैठक में एकमत से निर्णय लिया गया कि मप्र सरकार ने आरटीई के तहत अल्पसंख्यक संस्थाओं में गरीब बच्चों को प्रवेश देने के मामले में नियमों की व्याख्या गलत की है। आरटीई के तहत गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों को प्रवेश नहीं दिया जाएगा। इस संबंध में जल्द ही राज्यपाल रामनरेश यादव और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलेंगे। इसके बाद भी मांगों का निराकरण नहीं होता है, तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा।
गौरतलब है कि आरटीई के तहत गरीब व कमजोर बच्चों को कक्षा नर्सरी व पहली कक्षा में 25 फीसदी सीटों पर प्रवेश प्रक्रिया से बचने के लिए 46 सीबीएसई, आईसीएसई से संबद्ध स्कूलों ने अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र का सहारा लिया था। जिसमें 12 अप्रैल 2012 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला दिया गया था, जिसमें अल्पसंख्यक संस्थाएं आरटीई के तहत प्रवेश देने को बाध्य नहीं होंगी।
इससे इन स्कूलों में गरीब व कमजोर वर्ग के बच्चों को प्रवेश नहीं मिल पाया था। अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र को लेकर अभी हाल ही में स्कूल शिक्षा विभाग ने निर्देश जारी किए थे कि मिशनरी सहित अन्य अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं, जहां धार्मिक निर्देश नहीं दिए जाते हैं, उनमें शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत वंचित समूह और कमजोर वर्ग के 25 फीसदी बच्चों को प्रारंभिक कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा।