भोपाल। मध्यप्रदेश के बहुचर्चित दवा खरीदी घोटाले में लोकायुक्त ने शक्तिशाली प्रदर्शन करते हुए तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अजय विश्नाई, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एमएम उपाध्यक्ष एवं कमिश्नर डॉ राजेश राजौरा के खिलाफ प्रकरण तो दर्ज किया था परंतु लोकायुक्त इन तीन दबंगों के खिलाफ चालान पेश नहीं कर पाए।
सनद रहे कि प्रकरण दर्ज करने के बाद लोकायुक्त को साक्ष्य जुटाना था और प्रारंभिक पड़ताल में दोषी पाए जाने पर ही लोकायुक्त में प्रकरण दर्ज किया जाता है, अत: एक बार प्रकरण दर्ज हो जाने के बाद यदि लोकायुक्त चालान पेश नहीं कर पा रहा है, या साक्ष्य नहीं जुटा पाया तो यह उसकी असमर्थता होगी।
अब ये केवल असमर्थता है, सचमुच उपरोक्त तीनों दबंगों का दवा खरीदी से कोई रिश्ता नहीं है या लोकायुक्त और दबंगों के बीच कोई मधुर रिश्ता बन गया है यह तो जांच का विषय है जो हो नहीं सकती। फिलहाल इस मामले ने लोकायुक्त जैसी संस्था पर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।
यह है मामला
गौरतलब है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच करार हुआ था कि एंटी टीवी ड्रग्स नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएंगी। डॉ. शर्मा ने 20 अप्रैल 2007 को नई दवाएं खरीदने के लिए 12 करोड़ 84 लाख रुपए की नोटशीट डॉ. राजौरा को भेजी थी। मंत्री और प्रमुख सचिव के अनुमोदन के बाद करीब 31 लाख 99 हजार रुपए की एंटी टीवी ड्रग्स खरीद ली गई। केंद्र सरकार के सचिव नरेश दयाल ने इस संबंध में आपत्ति जताई थी।
शिकायत मिलने के बाद लोकायुक्त पुलिस ने मंत्री विश्नोई, प्रमुख सचिव उपाध्याय, स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. राजौरा सहित स्वास्थ्य संचालक शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की थी। लोकायुक्त पुलिस ने 2009 में शर्मा के खिलाफ पद के दुरुपयोग का मामला भी दर्ज किया। लोकायुक्त पुलिस ने जांच पूरी कर प्रकरण अभियोजन स्वीकृति के लिए राज्य सरकार के पास भेजा था। पिछले हफ्ते राज्य सरकार ने अभियोजन की स्वीकृति दी थी।
एसपी लोकायुक्त सिद्धार्थ चौधरी का कहना है कि स्वास्थ्य संचालक अशोक शर्मा के खिलाफ चालान अदालत में पेश कर दिया गया है। जिन तीन और लोगों के नाम एफआईआर में दर्ज थे, जांच में उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं।
- सीधा सवाल
- सवाल केवल इतना सा है कि सबूत मिले नहीं या जुटाए नहीं गए।
- चालान पेश करने में इतना समय क्यों लगा।
- लोकायुक्त के पास मध्यप्रदेश पुलिस जैसा बहुत सारा बोझा नहीं होता फिर उसकी जांच में देरी क्यों होती है।
- कहीं आयकर, सेल्स टैक्स और सीबीआई की तरह लोकायुक्त भी तो किसी लॉबी, पार्टी या सरकार के किसी गुट के शिकंजे में नहीं है, जो अधिकारी इस गुट से बाहर जाता है, उसके यहां लोकायुक्त का छापा पड़ जाता है। बड़ी मछलियों को फांसने वाला जाल कहीं छिपाकर तो नहीं रख दिया।
असलियत जो भी हो परंतु जनता सवाल करती है। लोकायुक्त को चाहिए कि वो इस मामले में अपना पक्ष पूरी तरह से स्पष्ट करे कि किस आधार पर उन्हें लगा कि उपरोक्त तीनों दिग्गज इस मामले में दोषी नहीं हैं। जांच रिपोर्ट की कॉपी भी मीडिया को उपलब्ध कराई जानी चाहिए।