राकेश दुबे@प्रतिदिन। चार साल बाद पाकिस्तान लौटे मुशर्रफ को जब ये पता चला कि इस दौरान आतंकवादियों ने 50000 नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया| सैनिकों की संख्या इससे अलग है| ये सब पाक नागरिक थे| पकिस्तान का उदभव और विकास जिस एक तत्व का सबसे अधिक योगदान रहा है वह हिंसा है| यह हिंसा और मारकाट पाकिस्तान की राजनीति में सांसों की तरह मौजूद है|
सेना द्वारा तख्तापलट पाकिस्तान के इतिहास के दुखद अध्याय रहे है| अब पाकिस्तान लौट कर परवेज़ मुशर्रफ सैनिक से राजनेता का जामा पहन कर पाकिस्तान की उस भावना को शायद कम नहीं कर पाएंगे, जो पाकिस्तान के प्रवर्तक मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर आज तक पाकिस्तान की सेना और आई एस आई जिन्दा रखे है और वह है हद दर्जे की खुदगर्जी|
पाकिस्तान में भारत के विरोध के अलावा, खुदगर्जी का यह मर्ज़ नीचे तक और इतने नीचे तक आ गया है और राजनीतिक महत्वाकांक्षा में बदल गया है की मुगलकालीन इतिहास की पुनरावृति दिखाई देती है| बिलावल भुट्टो का आसिफ अली जरदारी का इस मोड़ पर साथ छोड़ना पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के लिया किसी त्रासदी से कम नहीं है |
मुशर्रफ के आने और अपनी पार्टी को जिंदा करने के साथ आईएसआई के उन करतबों से भी निबटने की चुनौती है| जो वह भारत के लिए तैयार कर गये थे| अपनी विश्वसनीयता तो वे खुद ही विश्व के सामने प्रश्नाधीन कर चुके है| अब उनका नया अवतार पाकिस्तान को क्या देगा यह एक ज्वलंत प्रश्न है| अभी तो विश्व के मानव अधिकारवादियों को पाकिस्तान से नागरिक मौतों का हिसाब मांगना चाहिए|
- लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।