"जो रास्ता भूलेगा, मैं उसे भटकावों बाले रास्ते ले जाऊँगा/ जो रास्ता नहीं भूलते, उनमे मेरी कोई रूचि नहीं " हिंदी के अप्रतिम कवि चंद्रकांत देवताले जी ( जन्म-गाँव जौलखेड़ा, जिला बैतूल, मध्य प्रदेश ) के लिए 2012 का साहित्य अकादमी पुरुस्कार मिलना मध्यप्रदेश के साहित्य प्रेमियों का सम्मान है
.उन्हें यह सम्मान उनके नए कविता संग्रह पत्थर फेंक रहा हूँ के लिए मिला है. हिंदी अकविता आन्दोलन के इस प्रमुख हस्ताक्षर के साथ अनुभव और ज्ञान की ऐसी गठाने बड़ी बड़ी निर्मित हुई कि जीवन के रंगों में विषाद छटपटाहट के साथ मुँह कसैला कर दूर भाग खड़ा होता है. देवताले जी की कविता हमें साहस के साथ गंभीर होने को राजी करती है . जीवन के उवाचों में संघर्ष कोई बात करने भर का विषय नहीं है, इसे जीने की क्षमता आपकी कविताओं का आधार है . देवताले जी हमें हौसला देते हैं और सामजिक चाटुकारता से दूर रखने को स्पस्ट शव्दों में इंगित करते हैं की जिन्दा होने का अर्थ हाँ जी हाँ जी करना नहीं है उनकी एक कविता कहती है।
"ऐसे जिंदा रहने से नफरत है मुझे
जिसमें हर कोई आए और मुझे अच्छा कहे
मैं हर किसी की तारीफ करके भटकता रहूँ
मेरे दुश्मन न हों
और इसे मैं अपने हक में बड़ी बात मानूँ "
देवताले जी इस दुनिया की स्थितियों से परिचित हैं ,वे हमें आगाह भी करते है और हौसले को लेकर आगे जाने की जिद भी पैदा करते हैं . इनकी कविताएं उजागर करती है सामाजिक ,धार्मिक और राजनेतिक शोषणो के सारे पाखंडों को जो जीवन को बदतर बनाए हुए है .देवताले जी की कविताएं जीवन के सच से जुडी हुयी है .इन्हें पढ़ कर क्रोध का भूचाल तो आता है लेकिन होश नहीं खोता , ये कविताएं चैतन्य मन से जाग्रत करने के आह्वान करती हुयी प्रतीत होती हैं .
उसकी खुरदुरी हथेलियों पर
नहीं बची है कोई रेखा
उँगलियों में लोहे की छड़ जैसी
ताक़त पैदा गई है
जब वह हथेलियों और उँगलियों को
मुट्ठी की तरतीब में कर रहा होता है
उस समय नृशंस सत्ता के माथे पर
पसीने छूटने लगते हैं
देवताले जी की कविता में स्त्रियों, गरीवों और हर उस प्राणी को प्यार से पुचकारा जाता है जो निराश तो है लेकिन उठ खड़ा होना चाहता है . ये कवितायें एक बरदान सिद्ध होती हैं उस सच्चे पाठक को जो विमर्श करना चाहता है .
कला ,शिल्प और भाव तल पर देवताले जी की कवितायें परिपक्वता का परचम फैलाती हैं . काव्य सौंदर्य के सारे आयाम बहु रूपों में प्रकट कर पाना देवताले जी का ही हुनर है . कविता तुक बंदी कर क्षणिक सुख लेने का नाम नहीं है , कविता तो एक आन्दोलन है जीवन को आंदोलित कर देने का . देवताले जी की कवितायें हमें जीवन के प्रति नकार सोच को ख़त्म करने का निजी संवाद हैं तो नकारात्मकता को जड़ से हटाने का एक पैगाम भी है जैसे उनकी यह कविता कहती है ..
सोये हुए बच्चे तो नन्हे फ़रिश्ते होते हैं
और सोई स्त्रियों के चेहरों पर
हम देख ही सकते हैं थके संगीत का विश्राम
और थोड़ा अधिक आदमी होकर देखेंगे तो
नहीं दिखेगा सोये दुश्मन के चेहरे पर भी
दुश्मनी का कोई निशान
देवताले जी मध्य प्रदेश के गौरवशाली हिंदी साहित्य के दैदीप्यमान सितारे हैं इनकी कविता का सम्मान हमारे लिए गौरब का विषय है . हम आशा करते हैं की आगे भी आपकी साहित्यिक रचनाओं के रत्नों में और भी कई रत्न जुड़ते जायेंगे . इनके लेखन की अदा सहजता के साथ हमारे अद्रश्य मन को चूम लेती है . सहजता और सरलता की पुरवाई में मन खोने लगता है चंद्रकांत देवताले जी हमारे प्रदेश का गौरव हैं .मैं उन्हें भोपाल समाचार .कॉम की पूरी टीम की और से साहित्य अकादमी पुरुस्कार प्राप्त होने पर हार्दिक बधाईयाँ देता हूँ,
लेखक श्री अनुराग चंदेरी का परिचय
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शिक्षा - एमए(अंग्रेजी साहित्य) बीएड जन्म-15 अगस्त 1974
कार्य - mranaalinee.blogspot.com (साहित्यिक ब्लॉग), कविता लेखन , निबन्ध लेखन , समीक्षा लेखन एवं आधुनिक चित्र बनाना, कई ब्लोग्स , बिभिन्न पत्रिकाओं एवं अखवारों में कवितायें एवं लेख प्रकाशित, हाल ही में साहित्यिक पत्रिका गुंजन द्वारा विशेषांक प्रकाशित .
संपर्क:
साडा कॉलोनी ,चंदेरी
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