राकेश दुबे@प्रतिदिन/ मध्यप्रदेश के कोने कोने से किसानों का दर्द सुनाई दे रहा है, प्रकृति की मार ने “अन्नदाता” को आहत कर दिया| सरकार अपनी जिम्मेदारी का अहसास होते ही उठी, जागी और दिल्ली की और भागी| दिल्ली सुनती है थोड़ी देर से ही सही, सुनती है परन्तु जब ऐसी प्राकृतिक आपदा हो तो उसे राजनीतिक चश्में से नहीं देखना चाहिए| अभी तो राजनीति के चश्मे दोनों तरफ से खुले हुए हैं|
चुनाव का साल है तो क्या ? राजनीति करने के बहुत से मुद्दे है| आलोचना के भी एक नहीं एक हजार अवसर है और आएंगे| मौसम विभाग अभी भी कुछ-कुछ शुभ अशुभ बात कह रहा है| फिर अडंगे बाज़ी से क्या मिलेगा? प्रदेश के बारे में एकजुट होकर सोचने का अभ्यास करना चाहिए| अभी तो, किसी ने कुछ कहा नहीं और विरोध शुरू| आपका यह समर्थन- विरोध आम किसान को दुखी कर रहा है| उसे यह विश्वास होने लगा है की राज्य सरकार कुछ करेगी तो प्रतिपक्ष विरोध करेगा और यदि केंद्र ने कुछ किया तो वह किसान तक चुनाव के बाद पहुंचेगा| इस अविश्वास के बीज सरकार और प्रतिपक्ष किसान के मन में बो रहा है| सोचिये इससे कैसी फसल होगी ?
होना तो यह चाहिए था कि मध्यप्रदेश से एक आवाज़ उठती| क्या बिगड़ जाता मुख्यमंत्री का अपने साथ किसानों की आवाज़ बुलंद करने नेता प्रतिपक्ष को साथ लेते या नेता प्रतिपक्ष स्वत: साथ हो लेते| अपने दल में रहे, पर प्रदेश और विशेष कर प्राकृतिक आपदा के दौरान दोनों अपने दिल थोड़े बड़े करें| “आनावारी” रिपोर्ट कोई बहुत अच्छी नहीं है| प्रदेश को कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है| चुनाव का तो एक ही नतीजा होगा आप या तो पक्ष में होंगे या प्रतिपक्ष में होंगे| प्राकृतिक आपदा में आपने राजनीति की है यह कोई नहीं भूलेगा| होली के बहाने ही सही मुख्यमंत्री,नेता प्रतिपक्ष और दोनों प्रमुख दल के प्रदेशध्यक्ष एक साथ दिल्ली के दरबार में दवाब बनाये तो किसान के यहाँ होली का उत्त्साह दिखेगा नहीं तो आंसू तो उसकी किस्मत में है ही|
- लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।