राकेश दुबे@प्रतिदिन/ समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने लोहिया जयंती के अवसर पर एक भाषण से कई निशाने साध लिए हैं| अपने दल और दल के बाहर भी ‘नेताजी’ ने निशाना साधा है| पहला-प्रधानमंत्री की दौड़ में अखिलेश सरकार की अभी से खिचाई,और मध्यावधि की स्थिति में आजम खां को उत्तरप्रदेश की कमान|
परिणाम, अधिक मुस्लिम सांसद| दूसरा-नौकरशाही को सीधा सन्देश| परिणाम- लक्ष्यपूर्ति न होने पर कोई रियायत नहीं| तीसरा- आडवाणी की तारीफ| परिणाम- बेनी वर्मा को लेकर कांग्रेस द्वारा दी गई घुड़की का जवाब| चौथा- आडवाणी की सत्यप्रियता की प्रशंसा| परिणाम-यू पी ए को वादे निभाने और साफ बात कहने के संकेत|
मुलायम सिंह “जितने सहज दिखाई देते है, उतने सहज राजनीतिग्य नहीं है|” यह आकलन उनके परम सखा और एक समय समाजवादी पार्टी के एक स्तम्भ रहे अमर सिंह का है| कई सालों मुलायम सिंह के सबसे नजदीक रहने के बाद आज कोसों दूर है| भाजपा के एक केन्द्रीय नेता ने उनके आडवाणी प्रेम पर टिप्पणी की है कि “आडवाणीजी सीधी राजनीति करते है और नेताजी की जोड़ तो वेंकैया नायडू के साथ बैठ सकती है, राजनाथ सिंह तो बेचारे साबित होंगे”|
राजनीति का एक सिद्धांत है| जितने नेता उतने विचार| सबके अपने अपने विचार है, लेकिन, अखिलेश सरकार के बारे में सबके विचार मुलायम सिंह जैसे ही है| शायद यह एक फैसला उन्होंने जल्दबाजी में ले लिया था| उत्तर प्रदेश की स्थिति और विशेष कर कानून व्यवस्था की स्थिति में कोई सुधार न होने पर केंद्र सरकार कुछ नया कर सकती है|
अभी जो गलती उत्तरप्रदेश में दोहराई गई है,वह एकजुटता की कमी है| उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार बनने के पहले जिस “माय ” समीकरण पर समाजवादी सरकार बनी थी| वह समीकरण दो साल में ध्वस्त हो गया था| परिणाम बसपा सरकार थी| इस बार ‘मा’ और ‘य’ अभी तो आमने-सामने हैं|
- लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।