देश को खरे सिक्के चाहिए, इनकी तो कलई उतर चुकी है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। इनका भी मंथन पूर्ण हुआ, उनका भी चिंतन हुआ था| वे इन्हें कुछ-कुछ कह गये थे, अब ये उन्हें कह रहे हैं| उनकी नजर में ये साम्प्रदायिक थे इनकी नजर में वे कमीशनखोर| दोनों अपने को खरा और दूसरे को खोटा कह रहे हैं| सही मायने में दोनों की कलई उतर चुकी है| आज भले ही दोनों यह अंदाज़ा लगा रहे हैं कि 2014 उनका होगा| विकल्प के अभाव में होगा, अगर विकल्प तैयार हो गया तो हर गंगे|

भारतीय जनता पार्टी के मंथन से मथ-मथ कर मोदी को निकाला गया है और उनके चिंतन की शुरुआत और अंत राहुल गाँधी से होती है| मोदी गुजरात तक है और सबको जोड़ लें तो नागपुर के नीचे भाजपा का कोई वजूद नही है| लालकृष्ण आडवानी जिसे दक्षिण का गेट कहते थे| कर्नाटक जी हाँ ! अब भाजपा के लिए वाटर गेट साबित होने जा रहा है| खुद येदुरप्पा भाजपा के दुर्ग में बारूद लगाये बैठे हैं|

कांग्रेस की दशा से देश के सारे मतदाता वाकिफ हैं| हर दिन नया घोटाला, लोकहित का कोई काम ऐसा नहीं हुआ जिसे गिना जा सके| विधेयक संसद में वे ही लाये गये जिनके सहारे या तो कर्ज लिया जा सके या सहायता| नियन्त्रण था ही नहीं और होने की कोई सम्भावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती| शरद यादव हो या शरद पंवार उनकी आवाज़ भी श्री हीन हो गई है| देश के बाहर की चुनौतियों से गंभीर देश के भीतर की चुनौती है,खोये हुए विश्वास की| अफ़सोस इनकी कलई उतर चुकी है|

  • लेखक श्री राकेश दुबे प्रख्यात पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। 
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