अंधी मॉ को कांवड़ में बिठाकर निकले बेटे की चार धाम यात्रा पूर्ण, जबलपुर वापसी

इंसान सच्ची मेहनत और लगन से चाहे कुछ भी कर सकता है, जहां कलयुग में लोग मां बाप की सेवा करने से कतराते हैं। वहीं, मप्र के जबलपुर जिले के हिनौता क्षेत्र के एक ब्रह्मचारी कैलाश गिरी ने उनकी माता को चार धाम की यात्रा कराई है।

एक बार फिर सिद्ध हो गया कि कलयुग में भी श्रवणकुमार हो सकते हैं। हिनौता थाना बरघी जिला जबलपुर के संकटमोचन धाम के कैलाश गिरी ब्रह्मचारी, उम्र 40 वर्ष 1996 से अपनी नैत्रहीन माता कीर्तिदेवी उम्र 88 वर्ष को लेकर चार धाम की कांवड़ यात्रा पर निकले थे। चार धाम की यात्रा करने के बाद वह उज्जैन महाकालेश्वर गए। अब आष्टा से होते हुए भोपाल, जबलपुर पहुंचेंगे।

पेड़ से गिरा तो लिया संकल्प

ब्रह्मचारी कैलाश गिरी बताते हैं कि वह 1996 में पेड़ से गिर गए थे, तभी संकल्प लिया था कि मैं अपनी नेत्रहीन मां को चार धाम की यात्रा कांवड़ के माध्यम से कराऊंगा। तभी से गिरी अपनी मां को चार धाम की यात्रा के लिए निकले। वह कहते हैं कि मेरी तरह सभी को अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए, कभी भी माता-पिता का दिल नहीं दुखाना चाहिए। हमेशा माता-पिता का सम्मान करना चाहिए।

ऐसे की चार धाम की पावन यात्रा

सबसे पहले नर्मदा परिक्रमा की। उसके बाद काशी, अयोध्या, चित्रकूट, इलाहाबाद, रामेश्वरम, तिरूपति बालाजी, जगन्नाथपुरी, गंगासागर, बैजनाथधाम, जनकपुरी नेपाल, बद्रीनाथ, केदारनाथ, ऋषीकेष, पुष्कर, द्वारिका, सोमनाथ, महाकालेश्वर उज्जैन होते हुए वह आष्टा पहुंचे और पार्वती तट पर स्थित प्राचीन शंकर मंदिर का उन्होंने अपनी मां को दर्शन कराए। अब वह यहां से भोपाल होते हुए जबलपुर हिनौता के लिए रवाना होंगे।

आठ महीने और लगेंगे जबलपुर पहुंचने में

चार धाम पर निकले श्रवणकुमार 17 वर्ष पहले मां को कावड़ से लेकर यात्रा पर निकले थे, अब वह आठ महीने में भोपाल से होते हुए अपने निवास स्थान पहुचेंगे। नगर के सारे लोग उनकी मां से मिलने पहुंच रहे हैं। नगर के शंकर मंदिर में शुक्रवार सुबह जैसे ही इस युग के श्रवणकुमार कैलाश गिरी अपनी अंधी मां को कांवड़ में लेकर पहुंचे तो यहां भक्तों का तांता लग गया। दिन भर श्रद्धालुओं ने नेत्रहीन मां से आर्शीवाद प्राप्त किया।

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