राकेश दुबे@प्रतिदिन। मोदी कहते ही अब भारत का हर आदमी नरेंद्र मोदी ही अर्थ लेता है| मोदी शब्द की छाया में नरेंद्र तो लगभग खोता जा रहा है| भाजपा में एक वर्ग तो और नया फार्मूला ले आया है| ‘नमो’ कहने का पूरा अर्थ ही नरेंद्र मोदी है| नरेंद्र मोदी भले ही अपने मुंह से कुछ न कहे पर ‘नमो’ कहने वाले उनके इतने नजदीक हैं कि कभी यह भ्रम होने लगता है की कहीं वे ही तो यह सब नहीं कहलवा रहे की पूरे में वे ही प्रधानमंत्री पद के एकमेव समर्थ उम्मीदवार है|
देश में कहीं कोई भी आयोजन होता है, वहां एक ही विषय होता है अगला प्रधानमंत्री कौन? दो ही तरह से बात होती है नरेंद्र मोदी तो क्यों और नरेंद्र मोदी नही तो क्यों नहीं? अब बिहार से नीतीश बाबू का नाम भी शुरू हुआ है उनके साथ भी यही सब हो रहा है| अजीब सा माहौल हो गया है| नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के मामले में एक समानता है की दोनों का विरोध अपने दल के भीतर ही लोग ज्यादा कर रहे हैं|
देश कि समस्याओं पर विचार करे तो यहाँ गोविन्दाचार्य जी ज्यादा ठीक कहते हैं| अभी मोदी हो या नीतीश कुमार अथवा राहुल गाँधी तीनों को बहुत कुछ सीखना है| देश के आस पास और भीतर बाहर बहुत कुछ ऐसा है जो भाजपा या कांग्रेस या कोई एक दल संभाल नहीं सकता है| इन समस्याओं से भारत की मूल स्थिति और उसकी पहचान को संकट पैदा हो जायेगा| इनसे निबटने के लिए राजनीति नहीं एक नया अजेंडा बनाना होगा और वह कोई नहीं बना रहा है| अभी तो कोई किसी को और कोई किसी को बन रहा है| ऐसी ही स्थिति में फिर वही बैसाखी के सहारे सरकार बनेगी और कोई ऐसा समीकरण बनेगा जिसे हम अभी की तरह मजबूरी में पांच साल चलाना होगा|
- लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।