उपदेश अवस्थी@लावारिस शहर। भले ही आज हाड़तोड़ मंहगाई की मार भारत सहन कर रहा है, लेकिन आपको याद होगा एक 'प्याज की मंहगाई' ने पूरी की पूरी सरकार पलट डाली थी। वो किस्सा केन्द्र का था, लेकिन कुछ ऐसी ही कहानी मध्यप्रदेश की भी है। यहां 38 से ज्यादा जिले ओला प्रभावित हैं। शिवराज सिंह चौहान आज दिनभर यह देखकर परेशान रहे, कि कहीं ये ओले तीसरी बार सरकार बनाने के सपना न बर्बाद कर दें।
आज जब अधिकारियों ने सीएम शिवराज सिंह चौहान के सामने डाटा पेश किए तो उनकी पेशानी पर परेशानी साफ दिखाई दे गई। वो पूरे दिन यहां से वहां केवल और केवल ओलों की पीड़ा से सरकार को बचाने में जुटे रहे। एक के बाद एक पूरे प्रदेश के ब्यूरोक्रेट्स में हंगामा मच गया।
सीएम ने कमिश्नर और कलेक्टरों से वीडियो पर बात की। बार बार यह दोहराया कि किसानों को बताइए, संकट की घड़ी में सरकार किसानों के साथ है। ओला पीड़ितों को भरपूर मदद की जाएगी। फिर तय किया ओला पीड़ित किसानों की मदद के लिए राहत राशि बढ़ाई जाए। यह भी तय किया गया ओला पीड़ित किसानों को बीपीएल दरों से राशन दिया जाएगा। इससे पहले उनकी लोन रिकवरी रोकने की बात भी की गई थी और इसके अलावा भी बहुत कुछ।
इस चिंता के लिए सीएम को धन्यवाद। हम शुक्रगुजार हैं कि उन्हें किसानों की फिक्र है, परंतु न जाने क्यों ऐसा भी लग रहा है कि यह फिक्र कम फिक्र का तमाशा ज्यादा है। बीपी इसलिए नहीं बढ़ा है कि अपने मध्यप्रदेश के किसान पीड़ित हैं, बीपी तो इसलिए बढ़ा है कि 'जैसे तैसे कांग्रेस को मैनेज किया था, परंतु भगवान ही बरस पड़े, ओले बनकर उस आदमी के खेत में जा गिरे हैं जो हर हाल में वोट देने घर से निकलता है।' चिंता किसान की इसलिए है क्योंकि किसान सचमुच मतदाता है।
पेट्रोल/डीजल से वेट, रसोई गैस से एंट्री और कई अन्य मामलों में देश भर में सबसे ज्यादा टैक्स वसूलने वाले मध्यप्रदेश के सीएम को प्रदेश के मध्यमवर्ग की ऐसी चिंता कभी नहीं हुईं। पेंशनर्स को 80 तक बूढ़ा नहीं मानने वाली यह सरकार जानती है कि यह वो वर्ग है जो मतदाता सूची में दर्ज तो है परंतु वोट देने घर से नहीं निकलता।
लेकिन किसान, वो तो हर हाल में, धूप, सर्दी और बरसात में वोट देने जरूर निकलता है। साथ में बीवी को भी ले आता है। बेटियां भी वोट देने के बहाने मायके आ जातीं हैं। हालात यह हैं कि कॉलेज पढ़ने के लिए शहर गया बेटा भी वोट देने के लिए वापस बुला लिया जाता है।
शिवराज सिंह बेहतर जानते हैं कि ये किसान हैं, पीपल के नीचे बैठकर तय कर लेते हैं, फिर चुप हो जाते हैं। मिलने जाओ तो हाथ जोड़ते हैं, तिलक लगाते हैं, लेकिन वोट पर सील नहीं लगाते। नेताओं के हाथ पैर दबाते हैं, लेकिन उनके कहने पर मशीन का बटन नहीं दबाते। अब उन्हें खरीदा भी नहीं जा सकता। नोट ले लेते हैं, लाइन लगाकर रात भर खड़े भी रहते हैं, लेकिन वोट नहीं देते।
अपनेराम का तो केवल इतना कहना है कि मध्यप्रदेश आस्थावादियों का प्रदेश है। यहां इंसान को मैनेज किया जा सकता है परंतु भगवान...! कांग्रेस कोमा में है तो क्या हुआ, वो है सबको सबक सिखाने के लिए। राजा पर नियंत्रण जरूरी है, राजा का चौकान्ना होना जरूरी है। भय भी होना चाहिए, नहीं तो वो बेलगाम हो जाता है धनानंद की तरह।