भोपाल। धार में भोजशाला विवाद एक बार फिर चरम पर है। जब जब शुक्रवार के दिन बसंत पंचमी आती है, तब तब यह विवाद गर्मा जाता है। धार को लेकर कुछ लोग लम्बे समय से संघर्ष कर रहे हैं एवं हिन्दूवादी संगठनों के लिए मध्यप्रदेश में यह प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। आइए पहले ये जानते हैं कि क्या है धार भोजशाला का इतिहास और क्यों उठा इसका विवाद।
धार में परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईवी तक 44 वर्ष शासन किया। उन्होंने 1034 में धार नगर में सरस्वती सदन की स्थापना की। यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। राजा भोज के शासन में ही यहां मां सरस्वती या वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की गई।
मजमूद खिलची का निर्णय
1305 से 1401 के बीच अलाउद्दीन खिलजी तथा दिलावर खां गौरी की सेनाओं से माहलकदेव और गोगादेव ने युद्ध लड़ा। 1401 से 1531 में मालवा में स्वतंत्र सल्तनत की स्थापना। 1456 में महमूद खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया।
खुदाई में मिली प्रतिमा
मां वाग्देवी की प्रतिमा भोजशाला के समीप खुदाई के दौरान मिली थी। इतिहासकारों के अनुसार यह प्रतिमा 1875 में हुई खुदाई में निकली थी। 1880 में भोपावर का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे अपने साथ लंदन ले गया।
1909 से संरक्षित
1909 में धार रियासत द्वारा 1904 के एन्शिएंट मोन्यूमेंट एक्ट को लागू कर धार दरबार के गजट जिल्द में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया। बाद में भोजशाला को पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया गया।
1935 में नमाज की अनुमति
धार स्टेट ने ही 1935 में परिसर में नमाज पढऩे की अनुमति दी थी। स्टेट दरबार के दीवान नाडकर ने तब भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताते हुए को शुक्रवार को जुमे की नमाज अदा करने की अनुमति वाला आदेश जारी किया था।
पिछले 18 सालों में कब क्या हुआ
धार स्थित भोजशाला पर 1995 में मामूली विवाद हुआ। मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढऩे की अनुमति दी गई।
12 मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया। मंगलवार की पूजा रोक दी गई। हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर और मुसलमानों को शुक्रवार को 1 से 3 बजे तक नमाज पढऩे की अनुमति दी गई। प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा।
6 फरवरी 1998 को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया।
2003 में मंगलवार को फिर से पूजा करने की अनुमति दी गई। बगैर फूल-माला के पूजा करने के लिए कहा गया। पर्यटकों के लिए भी भोजशाला को खोला गया।
18 फरवरी 2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसा फैली। पूरे शहर में दंगा हुआ। राज्य में कांग्रेस और केंद्र में भाजपा सरकार थी। केंद्र सरकार ने तीन सांसदों की कमेटी बनाकर जांच कराई। कमेटी में तत्कालीन सांसद शिवराज सिंह, एसएस अहलूवालिया और बलबीर पुंज शामिल थे। तीनों ने धार के हिन्दुओं से भेंट की और बयान दे डाले।
2006 कुछ यूं हुआ था विवाद
3 फरवरी 2006 को शुक्रवार और वसंत पंचमी दोनों ही थे। हिंदुओं ने इस दिन सरस्वती पूजन की तैयारी की थी। उस दिन हजारों लोग धार पहुंचे थे। तब भाजपा नेता भी चाहते थे कि सिर्फ सरस्वती पूजन की किया जाए। रामजन्म भूमि आंदोलन के अगुवा संत रामविलास वेदांती की अगुवाई में आयोजन शुरू हुआ। दोपहर 12 बजे तक सब ठीक चल रहा था।
लेकिन अचानक प्रभारी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि मुस्लिम जनों को नमाज अदा करवाना है। भोजशाला खाली कर दी जाए। उनके इस प्रस्ताव पर संघ नेता भी आसानी से राजी हो गए और ताबड़तोड़ भोजशाला खाली करवाई जाने लगी। पुलिसवालों ने पूजन के लिए बने हवन कुंड में पानी डाला और आग बुझा दी। साढ़े बारह बजे भोजशाला पूरी तरह से खाली हो चुकी थी और यहां पर मुस्लिमजन पुलिस वाहनों से पहुंचने लगे। दोपहर एक से तीन बजे तक नमाज अदा करवाई गई।
इधर, विरोध कर रहे हिंदुओं पर अब पुलिस की लाठियां बरसाना शुरू हो चुकी थीं। आंसू गैस के गोले छोड़े गए और पथराव भी किया गया। इसमें करीब 1400 लोग घायल हुए, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा की हालत गंभीर थी। पूरे मामले में आज तक कोई भी जांच नहीं करवाई गई। पूरा मामला ही दब गया। पूरे षड्यंत्र में मुख्य दोषी कैलाश विजयवर्गीय ही थे। उन्होंने हिंदुओं को दोपहर 12 बजे तक नमाज अदा कराने की कोई सूचना नहीं दी थी। मामला इतने में ही नहीं रुका। शाम को विजयवर्गीय मुस्लिम जनों के पास गए और अपना वादा पूरा करने की बात कही। इस पर धार शहर काजी ने सार्वजनिक रूप से उनका आभार मानते हुए उन्हें हार पहनाया।
भोजशाला के मुद्दे को लेकर पिछले दिनों नाथ मंदिर में धर्मसभा आयोजित हुई थी। इसमें पूर्व भाजपा नेता गोविंदाचार्य ने कहा था- हमें लक्ष्य पर ध्यान रखना चाहिए। भोजशाला में वसंत पंचमी पर पूजन हिंदुओं का संवैधानिक अधिकार है। आचार्य धर्मेंद्र ने भी सभा को संबोधित किया। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला का जिक्र आते ही वे पहले गुस्सा हुए फिर रो पड़े थे। रोते हुए कहा विजयवर्गीय के लिए रात तीन बजे, चार बजे मैंने सभाएं की। बड़ा पाप हो गया। अब प्रायश्चित कर रहा हूं। विजयवर्गीय ने अपने लोगों पर डंडे बरसवाए हैं। यह कलंक गंगा के पानी से भी नहीं धुल सकता। चुनाव की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा- समय आ रहा है, बिगड़ गए तो सब ठीक कर देंगे। उस समय आचार्य धर्मेंद्र की बातों को गोविंदाचार्य ने निजी विचार बताकर किसी सवाल का जवाब नहीं दिया था।
इसलिए गुस्सा हुए थे आचार्य- मंत्री पर आरोप है कि 2006 में पूरे दिन भोजशाला में पूजा-अर्चना पर सहमति के बाद भी उन्होंने कुछ को नमाज पढ़वाने के लिए जोर दिया। इस दौरान श्रद्धालुओं के वेश में खड़ी पुलिस ने हवन कुंड में पानी डाल दिया और बलपूर्वक लोगों को खदेड़ दिया था।
भोजशाला आंदोलन के प्रमुख आरएसएस के पूर्व प्रचारक नवलकिशोर शर्मा का कहना है कि साल में एकबार वसंत पंचमी पर भोजशाला में सरस्वती पूजन हिन्दुओं का अधिकार है और वे इस अधिकार के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इस दिन किसी कीमत पर भोजशाला में नमाज नहीं पढऩे दी जाएगी। इलाहाबाद में धर्म संसद ने यह फैसला लिया है। स्वामी गोविंद गिरी, नरेन्द्रानंद सरस्वती और वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा है कि ग्वालियर में कैद सरस्वती प्रतिमा को पालकी यात्रा के जरिए धार लाकर भोजशाला में स्थापित किया जाए। अगर शिवराज ने 2006 की तरह भोजशाला में फिर नमाज पढ़वाई तो अंजाम बुरा होगा। उधर, धार के संभागायुक्त प्रभात पाराशर का कहना है कि शुक्रवार को भोजशाला की नीचे की मंजिल पर ही नमाज होगी। इसके लिए पूरी तैयारी कर ली गई है और किसी को भी कानून हाथ में नहीं लेने दिया जाएगा। वहीं शिवराज संघ के बड़े पदाधिकारियों एवं प्रचारकों के लगातार संपर्क में हैं।