भोपाल। रिश्वत लेना और देना दोनों अपराध है, परंतु फिर भी चलता है। बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी में तो इससे भी एक कदम आगे चलता है। प्रशासन ने छेड़छाड़ मामले की जांच समिति को साठ हजार रुपए का भुगतान कर डाला वो भी सरकारी खाते से। क्यों... इसका कोई जवाब नहीं है।
बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी में छात्राओं से हुई छेड़छाड़ मामले की जांच कर रही दो सदस्यीय कमेटी को साठ हजार रुपए का भुगतान कर दिया है। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने भुगतान ऑडिट की आपत्ति होने के बावजूद कर दिया है। हालांकि यूनिवर्सिटी प्रशासन यह नहीं बता पा रहा है कि भुगतान किस आधार पर किया गया है। इसके अलावा कमेटी ने अब तक जांच रिपोर्ट बीयू प्रशासन को नहीं सौंपी।
वहीं बीयू के ईसी सदस्य अमित शर्मा ने इसे छात्रों के रुपयों का दुरुपयोग बताते हुए शिकायत राज्यपाल (कुलाधिपति) राम नरेश यादव से करने की बात कही है। दो सदस्यीय कमेटी जिसमें रिटायर्ड जज आरडी भलावी और एसएन शर्मा शामिल थे को गुरूवार को साठ हजार का भुगतान किया गया है। यह भुगतान उन्हें बीयू में 3 जनवरी को छात्राओं से हुई छेड़छाड़ और उनके साथियों से हुई मारपीट के मामले की जांच के एवज में किया गया है। इसके लिए डिप्टी रजिस्ट्रार (स्थापना) यशवंत पटेल के नाम से साठ हजार की राशि का चेक जारी किया गया है। अब पटेल कमेटी को राशि का नगद भुगतान करेंगे।
इस मामले में अहम बात यह है कि इसे लेकर ऑडिट ने आपत्ति जताई थी कि कमेटी के सदस्यों का मानदेय तय नहीं है इसलिए भुगतान नहीं किया जाना चाहिए। इसके बावजूद भुगतान कर दिया गया। इस बारे में डिप्टी रजिस्ट्रार पटेल का कहना है कि बीयू में कमेटी को भुगतान के लिए सालों से जो परंपरा चली आ रही है उसी आधार पर भुगतान किया गया है।
कुलपति को अधिकार होने की वजह से ऑडिट आपत्ति मायने नहीं रखती है। वहीं ईसी सदस्य अमित शर्मा का कहना है कि बीयू प्रशासन ने छात्रों के रुपयों का दुरुपयोग किया है। कमेटी किस लिए बनाई गई थी इसका औचित्य भी अब तक समझ नहीं आ रहा है। इस मामले की शिकायत के लिए राजभवन से समय मांगा गया है।
सनद रहे कि जब तक जांच रिपोर्ट न आ जाए, मानदेय का निर्धारण न हो और मांग न की जाए तब तक किया गया भुगतान रिश्वत ही कहा जाना चाहिए।
सनद रहे कि जब तक जांच रिपोर्ट न आ जाए, मानदेय का निर्धारण न हो और मांग न की जाए तब तक किया गया भुगतान रिश्वत ही कहा जाना चाहिए।