सच अंत में ही क्यूँ याद आता है?

राकेश दुबे@प्रतिदिन/ बीबीसी ने अफजल गुरु की अंतिम चिट्ठी,उसके भाई के हवाले से जारी की है। अफजल गुरु के उस पर दस्तखत नहीं है, उसके परिवार ने अफजल की हस्त लिपि को पहचाना है। इस पुष्टि के बाद शक की कोई गुंजाइश नही है। यह बात इतनी महत्वपूर्ण भी नहीं है, जितना उसमे लिखा सन्देश।

अफजल ने हर बात को सच्चाई की रोशनी में देखने का अनुरोध किया है सच्चाई तो हमेशा दो तरफा होती है, दुर्भाग्य से हम सिर्फ एक तरफ अर्थात अपने फायदे की बात ही देखते और दुनिया को दिखाते है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। अफजल के परिवार के साथ उमर अब्दुल्ला भी कुछ अलग राग गा रहे है।

आतंकवाद की सच्चाई सिर्फ एक ही है वह है बेकसूर लोगों का कत्ल। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हमेशा से है। इससे तो कोई इंकार कर ही नहीं सकता है। पाकिस्तान भारत में अशांति फ़ैलाने के लिए वहां के युवा लोगों को गुमराह करता रहा है। अजमल कसाब के बयान यह भलीभांति प्रमाणित करते हैं कि पाकिस्तान कैसे कैसे तरीकों से भारत को अस्थिर करने की कोशिश में लगा है।

अजमल जैसे जरुरतमन्द लड़कों और अफजल जैसे पढे-लिखे मगर भावुक युवकों को भारत की विरुद्ध तैयार करने की उसकी मुहिम अब भी जारी है। अजमल के बयान और अफजल की इस तथाकथित चिठ्ठी को अधिकारिक रूप से सार्वजनिक करने की आवश्यकता है। इससे उन स्वंयभू चौधरियों की आँखे भी खुलेंगी, जो भारत के मुंह पर उसकी और पाकिस्तान के मुंह पर उसकी तारीफ करते हैं। कहते हैं अंतिम समय में आदमी सच कहता है। ऐसा अफजल ने भी कहा हो। आमीन।

'लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभ लेखक हैं'
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