प्रतिदिन/ राकेश दुबे/ देश की नारी शक्ति, नागरिक शक्ति युवा शक्ति और सज्जन शक्ति बेबस नहीं है | उसे इंतजार है, समय का| वह कृष्ण कि भांति जरासंध के आखिरी अपराध का इंतजार कर रही है| आज विश्व भर में भारत कि नारी कि आवाज गूंज रही है | पर देश के बडबोले बाज़ नहीं आरहे है|
अब बड़बोलों के साथ रवि ब्ल्यार सरीखे वे लोग भी साफ दिखाई देने लगे हैं, जो मानसिक तौर बीमार हैं और इनका इलाज किसी अस्पताल में नहीं बल्कि समाज के पास हैं| बीमार वे तथाकथित साधु और राजनेता भी है जो किसी के हाथ पैर काटने कि बात करते है या समाज कि अपराध वृति के पोषक बन उसके पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं|
अपराध करना और छिपाने के दुष्कृत्य में सबसे उपर उन राजनेताओं के नाम हैं| जिन्होंने सत्ता में रहते हुए देश से बेईमानी की| ऐसे कांडों कि लम्बी सूची देश के कौने-कौने में है| इस सूची में उन नेताओं और अफसरों के नाम भी हैं जिन्होंने उचित समय पर विरोध न आकर जुगलबंदी में योगदान दिया| सेवा निवृत अफसरों पर ऊँगली उठाने और उन्हें अपने राजनीतिक स्वार्थ के रूप में उपयोग करने वाले नवोदित राजनीतिक दल भी वही कर रहे है, जो पहले होता आया है| देश कि चिंता होने लगी है|
सवाल सरकार और उसके विद्वान प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता समूह, काबिल अफसर, और मूर्धन्य चिंतकों से है| क्या हम धृतराष्ट्र के शासन में जी रहे है? क्या घोटालों पर नजर नहीं जा रही है? क्या देश के भीतर अलगाववाद की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है? क्या देश में बन रहे लाल, हरे, पीले गलियारे नहीं दिखाई दे रहे हैं? क्या इसकी कीमत देश में अंतिम पायदान पर खड़े आदमी को चुकाना होगी? सवाल जनता के हैं, उसे जवाब चाहिए| जनधन से करोड़पति बने लोगों के पास अब न आप्शन है और न लाइफलाइन|
