कुम्भ : “तंत्र” नाथ का बलि यज्ञ और मीडिया भैरव का गान

प्रतिदिन/राकेश दुबे/ मालवा में कोई 50 साल पहले यह किवदंति थी कि कुम्भ के मेले में नागा साधु मृत्यु की देवी को चुनौती देते हैं, तो महामारी फैलती है| इसलिए स्नान की तिथि के दिन उनके स्नान के बाद स्नान करना चाहिए|सत्यता किसी ने जांची नहीं| इतिहास कुम्भ के दौरान जानलेवा बीमारी फैलने का जरुर मिला|

आम भारतीयों और कुछ विदेशियों जैसी कुम्भ के प्रति अपनी श्रद्धा आज भी है| लेकिन न तो अमृत गिरने कि बात अब गले उतरती है और न मृत्यु की देवी का आव्हान| नदियों की दशा इस मनुष्य रूपी प्राणी ने इतनी बिगाड़ दी है की गंगा जी में गिरे अमृत का गरल होना निश्चित है| कुम्भ की भगदड़ ने यह विश्वास जरुर दिला दिया की तब भी प्रशासकीय तंत्रनाथ असफल होते होंगे और अब ज्यादा हुए हैं| कुम्भ के मेलों के साथ बिछड़ने की कहानियाँ और कई फ़िल्में हैं| इस बार मीडिया भैरव का सतत गान भी एक और नई फिल्म बनवा देगा|

कुम्भ जैसा अनूठा आयोजन भारत में ही होता है| विश्व में कहीं और ऐसे अनियोजित समागम का उदाहरण नहीं मिलता|जहाँ जहाँ कुम्भ के मेले आयोजित होते हैं| वहां साधू संत और जनता से अधिक चिंतित सरकार, उसका तंत्र और तंत्र से लिप्त ठेकेदार होते हैं| संत की चदरिया ,जनता के पाप-पुण्य धुले न धुले प्रशासकीय तंत्र नाथ और उसके चेले ठेकेदारों के दलिद्दर जरुर धुल जाते हैं| १२ साल की मौज हो जाती है| मीडिया का भैरव गान दुर्घटना के बाद २४ घंटों चलता है| जैसे अभी चल रहा है| कुम्भ के बाद भी कुछ लोग यही राग गाते हैं और जाँच आयोग बैठते हैं और रिपोर्टें गायब भी होती हैं|

सवाल यह है कि इतने बड़े आयोजन की आकल्पना अब ठीक से क्यों नहीं हो सकी? सरकार के मंत्रियों और अधिकारियो का काम क्या है ? क्या पुलिस सिर्फ लाठी भांजने की लिए वहां होती है? पहले से मीडिया जनजागृति काम नहीं कर सकता| यह सब हो सकता है, अगर ठीक से किया जाये| उज्जैन में अगला कुम्भ है उम्मीद है वहां “तंत्र” नाथ का यज्ञ और भैरव का गान नहीं होगा|और जो हो सो हो|

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