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राकेश दुबे/ प्रतिदिन/ देश में जो कुछ घट रहा है शर्मनाक है| भीतर के घोटाले हो या बाहर के मामले सभी जगह एक बात समान होती है, कोई कितना भी चिल्लाए, रोये , छाती पीटे, और इससे आगे भी कुछ हो जाए मनमोहनजी चुप रहते हैं|बेचारे!इस हद तक चुप कि घर के बाहर कुत्ते भौंकते –भौंकते अब पहरेदारों की गर्दन उतार रहे हैं और स्वयंमेव मृग्नेदृता के बोध वाक्य लिखने वाले चुप हैं| न रोने-धोने का असर, न उल्हानों का असर कार्टून का कोई असर अब राजनीतिक हल्कों में होता नहीं है |
देश गवाह है और अहसानमंद भी श्रीमती इंदिरा गाँधी का, जिसकी दहाड़ ने पूरी दुनिया हिला दी थी और देश अटल जी को भी तब के मुक्त समर्थन के कारण भूल नहीं सकता है| अब मनमोहन जी चुप हैं और प्रतिपक्ष गाफिल| किस बात का इंतजार है| आतंकी के रूप में लोग संसद तक आ गये थे, आप विदेशी नीति को ध्यान में रखे है और फैसले की तामिली रोके हुए हैं|अफजल गुरु के सर की कीमत शहीद हेमराज के सर के मुकाबले कुछ भी नहीं है। इस बार भी आप चुप है क्यों? कुछ तो बोलिए, सेनापति आपके बोलने का इंतजार कर रहे हैं, देश आपके पीछे खड़ा है।
बलिदान का भी असर नहीं, तो बताएं मनमोहन जी आप बोलने का क्या लेंगे?