सुबोध आचार्य/ अंतरराष्ट्रीय बाजार का हवाला दे देकर जाने कितनी बार तेल की कीमतों में वृद्धि करके सरकार आम जनता का तेल निकाल रही है। अब पेट्रोलियम कंपनियों पर से भी नियंत्रण समाप्त कर रही है। कम्पनियां खुद कीमतें निर्धारित करने में समर्थ हो गई है। डीजल के दामों में वृद्धि का सीधा असर मध्यम तथा किसानों पर असर होगा। यातायात अब महंगा होगा जिसका असर रोजमर्रा की जरूरतों पर होगा।
गेहूं पर नियंत्रण मूल्य बढ़ाकर किसानों को तीन-चार दिन शुशियां मनाने का मौका दिया। डीजल के दाम बढ़ाकर फिर से गम दे दिया। आगामी चुनावों को सरकार स्वयं ही एक तरह से खारिज मानकर चल रही है? क्योंकि घपले—घोटालों के चलते यूपीए सरकार पुन: जीतकर नहीं आएगी तथा सहयोगी दल भी अपने—आपको ठगा—सा महसूस कर रहे हैं। ऐसे में सरकार लगातार ऐसे निर्णय लेकर विपक्ष के लिए खुला मैदान छोड़ती जा रही है। सरकार को जनता की कितनी चिंता है, यह साफ नजर आ रहा है। केवल घोषणा होते ही हर चीज के नाम बढ़ना चालू हो जाते हैं।
हर वस्तु को तेल से जोड़कर देखा जाता तथा दलाल सक्रिय हो जाते हैं। सड़कों की हालत वैसे ही ठीक नहीं है, उस पर तेल का महंगा होना ट्रासंपोर्ट के व्यवसाय के लिए दाद में खाज का काम करेगी। सब्जी, दाल, चावल, खाने—पीने की वस्तुएं रातों—रात आसमान छूने लगेंगी। घरों का बजट गड़बड़ा जाएगा तथा परिवारों में तनाव पैदा करके सरकार चैन की सांस लेगी। किसानों को अब मांग करना चाहिए कि डीजल लोन भी बेंकों को देना चाहिए। आखिर, यह महंगाई कहां जाकर रूकेगी। शायद दूसरी सरकार बनने तक पाकिस्तान में आंतरिक राजनैतिक संकट के बादल हैं तो भारत में आर्थिक संकट के बादल बरसने वाले हैं।