भोपाल। बैतूल कलेक्टर अस्पताल पहुंचे और उन्होंने अपनी आखों की जांच करवाई, इसके बाद वो निकल पड़े अस्पताल की जांच करने। कुछ निर्देश दिए और चले गए। जैसे ही सीएचएमओ को इसकी जानकारी मिली वो अपने अस्पताल में जाकर भर्ती हो गए।
मामला बीमारी का नहीं, लोगों में यह विश्वास जगाने का था कि सरकारी अस्पताल में भी इलाज होता है और कलेक्टर खुद सरकारी अस्पताल पर विश्वास रखते हैं। यह संदेश देने के लिए जैसे ही कलेक्टर अपनी स्ट्रेटजी के तहत अस्पताल पहुंचे और जांच कराई तो सीएचएमओ उनसे एक कदम आगे बढ़ गए।
कलेक्टर ने आखों की जांच कराई तो सीएचएमओ ने ब्लडप्रेशर की शिकायत की और भर्ती हो गए। थोड़ी देर तक भर्ती रहे फिर वापस लौट गए। सीएचएमओ की हर हरकत ने कलेक्टर की स्ट्रेटजी की हवा निकालकर रख दी।