सुबोध आचार्य/ कुछ दिनों पूर्व पूंछ सेक्टर में पाकिस्तानी सेना ने जो कुछ किया, वह घटना भारत के बच्चे-बच्चे की जुबां पर है। जिन जवानों के साथ यह पाशविक कृत्य किया, वह सारी हदें पार कर गया। हमारी हदों में तो घुस नहीं पा रहे हैं, लेकिन सीमा पार हर हद को लांधने की कोशिशें लगातार करते आ रहे हैं। जिन शहीदों के वे सिर काटकर ले गए, उन सिरों के साथ उन्होंने एक तरह से हमारे मान-सम्मान तथा तनी हुई गर्दनों को भी झुकाने की कोशिश की।
जिन सिरों पर सेना की कैप मौजूद थी, उस कैप को पाने के लिए उन शहीदों ने कितनी मेहनत की होगी। वह लगातार घुसपैठ की कोशिशें करते आ रहे हैं, लेकिन कामयाब नहीं हो पाते। आतंकवादी संगठनों को आर्थिक मदद देकर देश में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करते हैं। हमारा देश भी सहनशीलता की हदों को पार करता जा रहा है। ईंट का जवाब पत्थर से नहीं, गले मिलकर गिले-शिकवे दो प्रेमियों की तरह दूर करना चाहता है। हर शांति के प्रस्ताव को पाकिस्तान जूते की नोक पर रखता आया है, लेकिन हम हैं कि शांति गान गाये जा रहे हैं। ऐसी क्या मजबूरी है कि हम कठोर जवाब नहीं दे पा रहे हैं। यदि सभी तरह के संबंध-राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक हम तोड़ देते हैं तो हमें क्या नुकसान हो जाएगा। पिछले 45 वर्षों से हम यह सब देखते-सुनते-पढ़ते आ रहे हैं, लेकिन हमने कभी सरकार को कड़ा रूख अपनाते नहीं देखा।
बेहतर है कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जाए। सन् 1071 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में 75 हजार सैनिकों ने जब समर्पण किया था, तब भी हम शांति गान गाकर लौट आए थे, लेकिन तब से लेकर अब तक हमने हजारों सैनिकों को बलि वेदी पर चढ़ते हुए देखा है। आखिर, हम कब पाक की नापाक हरकतें सहन करते रहेंगे। हमें भी घुसकर मारना चाहिए। हम करोड़ों-अरबों रुपए अत्याधुनिकीकरण पर खर्च कर रहे हैं, उनका प्रयोग कब करेंगे। हमारी लड़ाई को अब विश्व के दूसरे राष्ट्र भी गंभीरता से नहीं लेते, क्योंकि बयानों के अलावा कुछ दिनों तक खबरों की प्रमुखता औश्र आरोप-प्रत्यारोपों के अलावा कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता, तब तक सिर कटाते रहेंगे और सिर झुकाते रहेंगे?