कहीं ​निकल न जाए आम आदमी के प्राण रे....!

सरकार दम निकालने पर उतारू है, तेल तो उसी आम आदमी का निकाल ही दिया है| बड़ी आसानी से कह दिया कि डीजल पर से सब्सिडी खत्म और पेट्रोल कंपनियां अपनी दरें खुद तय करें। यह तो बात हुई उस तेल की जिस पर चलकर न मालूम क्या-क्या और जैसे-तैसे घर तक पहुंचता है| इस युग में शुद्ध घी तो सपना होता जा रहा है, देश में खाने के तेल के भी भाव सरकार ने बढ़ा दिए हैं| घर में पैदा खाने का तेल तो पूरा पड़ता नही है, विदेश से आने वाला तेल भी अब सरकार द्वारा ड्यूटी बढ़ा देने से महंगा हो गया है| वाह!री जन कल्याणकारी सरकार|

इस देश के नागरिक शायद इस भ्रम में जी रहे की ''कोई सरकार कल्याणकारी होती है'' चुनाव के घोषणापत्र में यह वाक्य पैदा होता है और सरकार किसी की भी बने। हर वर्षगांठ पर बड़ी बेशर्मी के होर्डिंग पर छपवा दिया जाता है | सिर्फ सरकार में शा​मिल 
राजनी​तिक दल, प्रमुख विपक्षी दल, कुछ अफसर इस कल्याण गंगा में स्नान का लाभ लेते हैं |दलालों की बात छोड़ दे उनके लिए तो हर सरकार एक समान कल्याणकारी होती है| युपीए-२ ने यह मुगालता भी आज दूर कर दिया है कि देश आर्थिक रूप से सुरक्षित हाथों में है |

इन फैसलों के प्रभाव पर अध्ययन के किसी आयोग को गठित करने की जरूरत नहीं है|हर घर में इसका प्रभाव दिखाई देगा। डीजल महंगा तो खेती महंगी, खेत से घर तक आने वाला राशन महंगा, दूध महंगा आना महंगा- जाना महंगा | वेतनभोगी तो तनख्वाह बढ़ाने की मांग कर देंगे| बाकी क्या करेंगे, कम से कम सरकार को दुआ तो नहीं ही देंगे| विज्ञान को अपना भगवान मानने वालों को दुआ-बद्दुआ में विश्वास नहीं होता, पर ध्यान रहे इससे सरकार बनती—​बिगड़ती है।
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