150 साल पहले अंग्रेज लाए थे हवस मिटाने, अब सेक्स बन गया रोजीरोटी

भोपाल।
मध्यप्रदेश का एक जिला मंदसौर जिसे अफीम की अवैध खेती के लिए जाना जाता है। अब देह व्यापार के लिए भी चर्चा में आने लगा है। यह मुद्दा विधानसभा में भाजपा विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने उठाया। उन्होंने बताया कि यहां 150 साल पहले आए बांछड़ समुदाय के लोगों की संख्या तेजी से बढ़ गई है और देहव्यापार उनकी रोजीरोटी का साधन है।

हालात यह है कि यहां 250 से ज्यादा डेरों में देह व्यापार खुलेआम चलता है। उनके हिसाब से यह उनका कारोबार है एवं अवैध नहीं है। माता-पिता खुद अपनी बेटी के लिए ग्राहक तलाशते हैं और उसके साथ देह संबंध बनाने के लिए आग्रह करते हैं। 

दरअसल, यहां निवासरत बांछड़ा समुदाय जिस्म बेचकर पेट पालने में कोई संकोच नहीं करता। मां-बाप स्वयं अपनी बेटियो को इस धंधे में उतारते हैं। मंदसौर में करीब ४० गांवों में फैला बांछड़ समुदाय देह व्यापार में लिप्त है।
बांछड़ा समुदाय के परिवार मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के रतलाम, मंदसौर व नीमच जिले में रहते हैं। इन तीनों जिलों में कुल ६८ गांवों में बांछड़ा समुदाय के डेरे बसे हुए हैं।

मंदसौर शहर क्षेत्र सीमा में भी इस समुदाय का डेरा है। तीनों जिले राजस्थान की सीमा से लगे हुए हैं। रतलाम जिले में रतलाम, जावरा, आलोट, सैलाना, पिपलौदा व बाजना तहसील हैं। मंदसौर जिले में मंदसौर, मल्हारगढ़, गरोठ, सीतामऊ, पलपुरा, सुवासरा तथा नीमच में नीचम, मनासा व जावद तहसील है। मंदसौर व नीमच जिला अफीम उत्पादन के लिए जहां दुनियाभर में प्रसिद्ध है, वही इस काले सोने की तस्करी के कारण बदनाम भी है। इन तीनों जिलों की पहचान संयुक्त रूप से बांछड़ा समुदाय के परंपरागत देह व्यापार के कारण भी होती है ।


इस मामले पर कृषक अनुसूचित जाति एवं जन जाति षैक्षणिक एवं सामाजिक विकास समिति की एक रिपोर्ट विस्तृत प्रकाश डालती है। देखिए यह रिपोर्ट:-

राष्ट्रीय एड्स जागरूकता एवं प्रशिक्षण योजना
संक्षिप्त परिचय
संस्था का नाम - कृषक अनुसूचित जाति एवं जन जाति षैक्षणिक एवं सामाजिक विकास समिति
संस्था का कार्यक्षेत्र - सम्पूर्ण मध्यप्रदेष
संचालक मण्डल -
सत्यनारायण दास पिता लालदास, बालुदास पिता मांगुदास बैरागी, ओमप्रकाष पिता
कालुराम, नवीनकुमार पिता घनष्याम धनोतिया, सुश्री ष्यामाबाई पिता नागेष्वर ओरी, श्रीमती विद्याबाई पति भंवरलाल पाटीदार, श्रीमती षिवकन्याबाई पति सुदेष पाटीदार भगवानदास पिता बालुदास बैरागी, गंगाराम पिता नंदाजी बागरी
निवास का पता - 521, हनुमान मंदिर के पास, ग्राम व पोस्ट हरियाखेड़ा तहसील पिपलोदा जिला रतलाम
म.प्र. 457001
कार्यक्रम - राष्ट्रीय स्तर पर एड्स की जागरूकता एवं प्रशिक्षण
कार्यान्वयन अवधि - मार्च 2010 से अप्रेल 2011 तक
प्रोजेक्ट की लागत
क्रमांक विवरण  परिशिष्ठ अनुसार
01 जनशक्ति  व्यय परिशिष्ट-अ 4,10,4000
02 जनशक्ति परिशिष्ट-ब 31,50,000
03  बुनीयादी सुविधा परिशिष्ट-स 9,18,29,240
04 आदान परिशिष्ट-द 10,80,000
05 कार्यशील पुंजी परिशिष्ट-इ 11,69,100
06 प्रशिक्षणार्थी व्यय परिशिष्ट-उ  9,73,61,600
योग 19,86,93,940
जिला रतलाम, मन्दसौर, नीमच बाँछड़ा समुदाय के लिये लागत परिशिष्ट 6 के अनुसार 19,86,93,940 करोड़
महायोग 19,86,93,940 करोड़
लाभान्वित प्रशिक्षणार्थी 5859
रतलाम जिलें में बॉंछड़ा समुदाय के परिवार 11 गॉंव¨ में रहते हैं जिलें में इनके परिवार¨ की संख्या 327 है इस समुदाय के अधिक्तर डेरे जावरा तहसील में स्थित है। रतलाम में मंदसौर, नीमच की ओर जाने वाले महु-नीमच राष्ट्रीय मार्ग पर जावरा से करीब 7 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम-बगाखेड़ा से बांछड़ा समुदाय के डेरों की शुरूआत होती है। यहॅं से करीब 5 किलोमीटर दूर हाई-वे पर ही परवलिया डेरा स्थित है। इस डेरे में बांछड़ा समुदाय के 47 परिवार रहते हैं। महू-नीमच राष्ट्रीय राजमार्ग पर डेरों की यह स्थिति नीमच जिले के नयागांव तक है। रतलाम जिले के दूरस्थ गांव में भी इनके डेरे आबाद है।
रतलाम जिले में बांछड़ा समुदाय के परिवारों व जनसंख्या की जानकारी
क्रमांक गॅंव का नाम परिवारों के मकान की संख्या  परिवार की जानकारी
 पुरूष महिला लड़के लड़की योग
1 ढोढर 71 66 52 42 45 205
2 ढोढररूंढी 35 36 36 15 42 129
3 मोयाखेड़ी 39 32 46 29 66 173
4 पिपल्याजोधा 28 34 39 11 77 161
5 पिपलौदी 02 04 04 05 15 28
6 हनुमान्विया 11 33 34 19 42 128
7 परवलिया 47 51 65 52 93 261
8 बागाखेड़ा 26 18 29 23 69 139
9 माननखेड़ा 28 22 45 39 61 167
10 चिकलाना 26 16 28 31 73 148
11 सेमलिया 15 20 16 41 99 176
योग 327 337 394 307 682 1715
मंदसौर तहसील
क्रमांक    ग्राम का नाम   परिवार के मकानों की संख्या जनसंख्या पुरूष  महिला आयुवर्ग
0 से 10 10 से 15 15 से 20 20 से अधिक
1 पाडल्यामारू 40 101 61 90 30 13 11 47
2 आधारी उर्फ निधारी 27 13 8 25 04 - 4 5
3 बानीखेड़ी 30 59 33 66 31 2 10 16
4 लिम्बाखेड़ी 23 11 4 77 06 - - 5
5 बांसाखेड़ी 13 71 31 40 30 2 - 39
6 रूपवली 34 16 08 18 3 2 12 9
7 कोलवा 21 7 15 52 2 1 - 4
8 गिरधारी 25 93 43 80 29 12 9 43
9 लखमाखेड़ी 24 59 36 88 10 10 84 35
10 मोरखेड़ी 32 118 55 93 36 11 10 61
11 उदपुरा 27 33 24 69 9 5 4 15
12 डिगॅंयमाली 53 72 43 89 13 8 6 43
13 रणमाखेड़ी 24 26 24 42 8 2 4 12
14 पानपुर 26 90 41 75 35 7 2 52
15 आक्याउमाखेड़ा 61 213 95 218 72 17 19 105
16 मंदसौर शहर 22 10 25 45 - - 5 05
योग 234 998 546 318 92 180 498
योग मंदसौर जिला 634 202 241 1166
गरोठ/भानपुरा तहसील
क्रमांक    ग्राम का नाम   परिवार के मकानों की संख्या जनसंख्या पुरूष  महिला आयुवर्ग
0 से 10 10 से 15 15 से 20 20 से अधिक
1  बासगोन 30 169 83 86 30 13 11 47
2 ओसारा 18 86 66 66 4 - 4 5
3 संधारा 20 31 19 19 31 2 10 18
4 बाबुल्दा 34 113 66 66 6 - - 5
5 नावली 82 514 283 283 30 2 - 39
योग 184 913 520 403
सीतामउ तहसील
क्रमांक    ग्राम का नाम   परिवार के मकानों की संख्या जनसंख्या पुरूष  महिला आयुवर्ग
0 से 10 10 से 15 15 से 20 20 से अधिक
1 कचलारा 20 64 19 45 18 4 4 16
2 गोरखेड़ी 36 91 36 55 16 3 8 24
3 शक्कर खेड़ी 42 21 8 13 - - - 5
योग 98 176 63 113 34 7 12 45
मल्हारगढ़ तहसील
क्रमांक    ग्राम का नाम   परिवार के मकानों की संख्या जनसंख्या पुरूष  महिला आयुवर्ग
0 से 10 10 से 15 15 से 20 20 से अधिक
1  बरखेड़ापंथा 31 14 - 14 - - 4 25
2  बिल्लौद 42 57 24 33 9 2 8 22
3  खाखरियाखेड़ी 21 73 17 56 5 5 5 45
4  खेचड़ी 24 54 24 30 4 4 7 58
5 बंगेरी 41 29 9 20 8 7 5 45
6 मुण्डली 24 01 26 75 5 5 6 44
7 डोडियामीणा 11 64 17 47 6 8 2 44
8 खूंटी 28 140 42 98 7 4 4 76
9 टाटीवलाई 19 124 45 79 2 5 5 17
10 कात्याखेड़ी 16 53 14 39 5 2 89
11  संठोद 21 78 21 57 5 2 55
योग 131 787 160 214
मंदसौर जिला
क्रमांक    ग्राम का नाम   परिवार के मकानों की संख्या जनसंख्या पुरूष  महिला आयुवर्ग
0 से 10 10 से 15 15 से 20 20 से अधिक
1 पाडल्यामारू 48 151 61 90 30 13 11 47
2 आधारी उर्फ निधारी 27 33 8 25 4 - 4 5
3 बानीखेड़ी 30 99 33 66 31 2 10 16
4 लिम्बाखेड़ी 23 31 4 27 6 - - 5
5 बांसाखेड़ी 13 71 31 40 30 2 - 39
6 रूपवली 34 26 8 18 3 2 12 9
7 कोलवा 21 67 15 52 2 1 - 4
8 गिरधारी 25 123 43 80 29 12 9 43
9 लखमाखेड़ी 24 124 36 88 10 10 84 35
10 मोरखेड़ी 32 148 55 93 36 11 10 61
11 उदपुरा 27 93 24 69 9 5 4 16
12 डिगॅंयमाली 53 132 43 80 13 8 6 43
13 रणमाखेड़ी 24 66 24 42 8 2 4 12
14 पानपुर 25 116 41 75 35 7 2 52
15 आक्याउमाखेड़ा 61 313 95 218 72 17 19 105
16 मंदसौर शहर 22 70 25 45 - - 5 05
योग 234 456 1117 318 92 180 498
योग मंदसौर जिला 529 1051 1192 634 202 241 1168
नीमच जिला
क्रमांक    ग्राम का नाम परिवार के मकानों की संख्या जनसंख्या पुरूष  महिला आयुवर्ग
0 से 10 10 से 15 15 से 20 20 से अधिक
1  गिरवोड़ा 11 49 15 34 73 3 6 23
2 कनान्टी 18 38 9 29 3 1 3 14
3 तुलाखेड़ा 22 49 13 36 3 1 1 4
4 जेलपुरा 30 92 28 54 15 7 6 24
5 सप्ताखेड़ा 10 134 46 88 25 16 9 42
6  कबोली 16 76 8 68 - - - 8
7 भंवरास 28 115 29 86 20 4 7 24
8  लिंबोरिया 30 168 68 98 29 14 8 65
9 नीलकंठपुरा 27 158 66 92 51 10 18 29
10 लेबड़ 11 112 37 75 37 7 6 32
11 सवरवन 21 121 32 89 17 5 14 35
12 वल्दू 19 139 44 95 18 - 8 42
13  भेरखेल पानरी 22 302 86 117 10 4 4 15
 योग 1191 1752 481 971 235 90 90 377
मनासा तहसील
क्रमांक    ग्राम का नाम   परिवार के मकानों की संख्या जनसंख्या पुरूष  महिला आयुवर्ग
0 से 10 10 से 15 15 से 20 20 से अधिक
1  बार्डिये 115
2  हाटपिपलीया 78
3 तलाऊ पिपलिया 49
4 बर्डिया 15
5  पिपलिया डूंडी 47
6 बोड़किया 8
7 गोया का डेरा 18
8 बरखेड़ी 9
योग
योग नीचम जिला
परिशिष्ट - अ
जनशक्ति आवश्यकता व प्रशासनिक व्यय
क्रमांक पद संख्या  वेतन माहवार एकवर्ष जिलों का योग
रतलाम, मन्दसौर, नीमच
1 प्रोजेक्ट कार्डिनेटर 1  16500 1,98,000  1,98,000
2 डिस्ट्रीक्ट कार्डिनेटर 1  12,000 1,44,000 4,32,000
3 कलाकार (नाटक) 5 9,000 5,40,000 16,20,000
4 डाॅक्टर 1 22,500 2,70,000 8,10,000
5  नर्स 5 9,000 5,40,000  16,20,000
6 सहायक 1 6,000 36,000 1,08,000
7 प्रशासनिक अधिकारी 1 16,000  1,92,000 1,92,000
8 कम्प्यूटर आॅपरेटर 1 5,000 60,000 60,000
9 भृत्य 1  3,000 36,000 36,000
योग  4,10,4000.00
परिशिष्ट - ब
बुनियादी सुविधा
क्रमांक  विवरण संख्या दर मासिक एक वर्ष 3 जिलों का योग
रतलाम, मन्दसौर, नीमच
1 वाहन (प्रोजे. कार्डिनेटर) 1 250    60,000  7,20,000  7,20,000
3 रू. किमी
2  वाहन (डिस्ट्रीक्ट कार्डिनेटर) 1 250 45,000 5,40,000 18,20,000
6 रू. किमी
3  एम्बुलेंस 1 250 22,500  2,70,000  8,10,000
3 रू. किमी
महा योग 31,50,000
परिशिष्ट - स
आदान
क्रमांक  विवरण संख्या दर मासिक एक वर्ष 3 जिलों का योग
रतलाम, मन्दसौर, नीमच
1 प्रचार-प्रसार सामग्री 20,000 2,40,000
अ.  पेम्पलेट्स  20,000 1 रू. प्रति 7,20,000
ब. बेनर 2,500 2,800 रू. 7,00,000 8,40,00,000 8,40,00,000
स. कोण्डम (डयूरेक्स) 1,710  15 रू. प्रति 21,09,240
2  अज्ञान व्यय कार्यकाल 1,75,770 21,09,240
स्थलता एवं प्रशसनिक व्यय
न्यूनतम
9,18,28,240.00
परिशिष्ट - द
जन शक्ति आवश्यकता व प्रशसनिक व्यय
क्रमांक  पद संख्या  वेतन  वेतन 4 माह का वेतन 12 माह का 3 जिले का योग
रतलाम, मन्दसौर, नीमच
1  शिक्षिका 4 6,000 96,000 2,88,000 8,64,000
2 भृत्य 2 3,000  24,000 72,000 2,16,000
योग 10,80,000.00
परिशिष्ट - इ
कार्यशील पूंजी
क्रमांक  विवरण संख्या  दर एक वर्ष  3 जिले का योग
रतलाम, मन्दसौर, नीमच
1 भवन  1 5,350 रू. 64,200 1,92,800
2 मशीन टेलरिंग 175  1800 रू. 3,15,000 9,45,000
3 कैंची 175 175 80 रू. 10,500 31,500
योग 11,69,100
परिशिष्ट - उ
प्रशिक्षणार्थी व्यय
क्रमांक  विवरण संख्या  दर चार माह एक वर्ष  3 जिले का योग
रतलाम, मन्दसौर, नीमच
1 कड़ाई बुनाई 350 10 रू.  4,20,000 12,69,000 37,80,000
2 ब्यूटी पार्लर 350  20 रू. 8,40,000 25,20,000 75,60,000
3 टेलरिंग 350 -
कपड़ा 19 थान 1850 1,25,400 3,78,200 11,28,500
अन्य सामग्री 15,000 45,000 1,35,000
भोजन, नाश्ता, चाय 10,500 50 रू. 21,00,000 53,00,000 1,89,00,000
यात्रा भत्ता (प्रशिक्षणार्थी)
नीमच 58 24,38,000 73,08,000 2,10,24,000
मन्दसौर 50 21,00,000 63,00,000 1,89,00,000
रतलाम 66,78,000 2,00,34,000
अज्ञात व्यय 50,00,000
अध्याय - 1
कारवाँ बढ़ता गया और डेरे बसते गए
(बाँछड़ा समुदाय के उद्गम, इतिहास व विकास का विवरण)
पुख्ता प्रमाण
मोचाखेड़ा निवासी बाँछड़ा समुदाय के वरिष्ठ सदस्य इंदरसिंह का ऐतिहासिक ढोलक के साथ जो कभी गुर्जर जाति के लोगों के समक्ष नाच-गाने के दौरान काम आती थी। इंदरसिंह अपने पिताजी के साथ उस दल में शामिल रहे जो गांव-गांव भ्रमण करता था।
एक डेरा
बाँछड़ा समुदाय का एक डेरा। समुदाय के अधिकतर लोग झोपड़ीनुमा कच्चे मकानों में रहते हैं। बाँछड़ा समुदाय की बस्ती को सामान्य बोलचाल की भाषा में डेरा कहते हैं।
प्रताप सिसौदिया के सैनिकों का वंशज होने का दावा करते हैं। मेवाड़ की गद्दी से उतारे गए राजा राजस्थान के जंगलों में छिपकर अपने विभिन्न ठिकानों से मुगलों से लोहो लेते रहे थे। माना जाता है कि उनके कुछ सिपाही नरसिंहगढ़ में छिप गए और फिर वहाँ से मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के काड़िया चले गए। जब सेना बिखर गई तो उन लोगों के पास रोजी-रोटी चलाने का कोई जरिया नहीं बचा, गुजारे के लिए पुरूष राजमार्ग पर डकेती डालने लगे तो महिलाओं ने वेश्वावृति को पेशा बना लिया, ऐसा कई पीढ़ियाॅं तक चलता रहा और अंततः यह परंपरा बन गई। इससे इस बात को बल मिलता है कि ये जातियाॅं कभी एक ही रही होंगी। इस बारे में बाँछड़ा समुदाय के इतिहास पर काम कर रही उज्जैन की महिला एवं बाल विकास अधिकारी संध्या व्यास का कहना है कि बाँछड़ा, बेड़िया, सांसी, कंजर जाति वृहद कंजर समूह के अन्तर्गत ही आती है। सालों पहले वे जातियाॅं वृहद कंजर समूह से पृथक हो गई। इसके पीछे भी विभिन्न कारण रहे होंगे । धीरे-धीरे इनकी सामाजिक मान्यताओं में भी बदलाव आ गया । इन जातियों में वेश्वावृत्ति की शुरूआत के पीछे इनकी अपराधिक पृष्ठभूमि ही महत्वपूर्ण कारण रही होगी । पुरूष वर्ग जेल में रहता था या पुलिस से बचने के लिए इधर-उधर भटकता रहा हो सकता है कि महिलाओं ने अपने को सुरक्षित रखने के लिए तथा अपनी आजीविका चलाने के लिए वेश्वावृत्ति को अपना लिया हो। दूसरे अन्य कारण भी रहे होंगे । धीरे-धीरे इन जातियों में वैश्यावृति ने संस्थागत रूप धारण कर लिया। प्राचीन भारत के इतिहास में इन जातियों का उल्लेख नहीं मिलता है । गुर्जर समाज के लोगों को भी पता है कि कंजर उनके पास भीख मांगने आते थे ।
अध्याय -2
डेरों की डगर
(बाँछड़ा समुदाय की जनसंख्या की जानकारी व सामान्य परिचय)
कहाँ से कहाँ तक
बाँछड़ा समुदाय के परिवार मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के रतलाम, मंदसौर व नीमच जिले में रहते हैं। इन तीनों जिलों में कुल 68 गांवों में बाँछड़ा समुदाय के डेरे बसे हुए हैं। मंदसौर शहर क्षेत्र सीमा में पी इस समुदाय का डेरा है। तीनों जिले राजस्थान की सीमा से लगे हुए हैं। रतलाम जिले में रतलाम, जावरा, आलोट, सैलाना, पिपलौदा व बाजना तहसील हैं। मंदसौर जिले में मंदसौर, मल्हारगढ़, गरोठ, सीतामऊ, पलपुरा, सुवासरा तथा नीमच में नीचम, मनासा व जावद तहसील है । मंदसौर व नीमच जिला अफीम उत्पादन के लिए जहाॅं देशभर में प्रसिद्ध है वही इस ‘काले सोने’ की तस्करी के कारण बदनाम भी है । रतलाम की पहचान रतलामी सेंव के स्वाद व सोने-चादी की शुद्धता से जुड़ी है । इन तीनों जिलों की पहचान संयुक्त रूप से बाँछड़ा समुदाय के परंपरागत देह व्यापार के कारण भी होती है ।
रतलाम, मंदसौर व नीमच जिले का सामान्य परिचय
क्र. विवरण रतलाम जिला मंदसौर जिला नीमच जिला
1 भौगोलिक क्षेत्रफल 4861 वर्ग कि.मी. 5517 वर्ग कि.मी. 3857 वर्ग कि.मी.
2 आबाद ग्राम 1051 899 679
3 ग्राम पंचायत 406 423 214
4 जनपद पंचायत 6 5 3
5  तहसील 6 5 3
6  विकास खंड 6 5 3
7 जनसंख्या (2001 की जनगणना)  1214536 1183369  725452
8 पुरूष 620119 6049429 371970
9  महिला 594417 578427 353487
10 ग्रामीण जनसंख्या 847139  962736 523204
11  नगरीय जनसंख्या 367397 962736  523204
12 साक्षर जनसंख्या (प्रतिशत) 67.65 %  अनुपलब्ध 55.99 %
13  स्त्री पुरूष अनुपात 959 956 943
14 अनुसूचित जाति की जनसंख्या (1991 की जनगणना के अनुसार) 226156 170063 76568
15  अनुसूचित जाति पुरूष 114695  87614 39257
16 अनुसूचित जाति महिला  111461 82449 37311
17
अतीत से बेपरवाह
बाँछड़ा समुदाय के डेरे पर बैठी महिलाएॅं। इनमें से बहुत कम को ही गुर्जरों से संबंधों से जुड़ी अतीत की कहानी याद है। नई पीढ़ी को तो वह पता भी नहीं है कि बाँछड़ा समुदाय के लोग कभी गुर्जरों के समक्ष नाच-गाना करते थे।
रूक गया कारवाँ
बाँछड़ा समुदाय के लोग किसी जमाने में खानाबदोश जीवन व्यतीत करते थे । एक गाँव से दूसरे, गाँव भ्रमण कर अपना गुजर बसर करते थे। यह सब अब इतिहास का हिस्सा बनकर रह गया।
परिशिष्ट
1. नगमा, नानी और पूजा की कहानी
2. माँ और बेटी का द्वंद्व
3. बदल रही है तस्वीर
4. घरजमाई
5. अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956
6. कानून में संशोधन संबंधित सुझाव
7. विधानसभा में पारित हुआ प्रस्ताव
वक्त की आँधी में पत्ता बनकर रह गई जिंदगी
नानी की जिंदगी में एक आॅंधी आई और वह डाल से टूआ हुआ पत्ता बनकर रह गई। वक्त के थपेड़ों ने उसे कहां से कहां पहुंचा दिया। इससे पहले कि माँ शब्द का मतलब समझ पाती, वहशियों ने उसे माँ का दूध छुड़ाकर बाँछड़ों को बेच दिया। मां संतोषबाई की हत्या कर दी गई । बाद में पुलिस ने उसे बरामद किया और उसे मंदसौर के निराश्रित बालगृह ‘अपना घर’ भेज दिया, जहां व अजनबी चेहरों को टुकुर-टुकुर देखा करती है । वह माँ-माँ कहकर रोती है । इधर-उधर देखती है । यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि वह माँ के रूप में किसका चेहरा ढूंढती है । ‘अपना घर’ आने से पहले उसने कुछ दिनों तक एक ऐसी माँ का चेहरा लगातार देखा जिसने दूसरी माँ की कोख पर डाका डाला था। इस शोधार्थी ने जब ‘अपना घर’ में नानी से मुलाकात की तो लगा उसका मासूम चेहरा शायद इन्हीं शब्दों को बयां कर रहा है ।
नगमा
नगमा को एक महिला हुसैन टेकरी पर बहला-फुसला कर ले गई और उसे बाँछड़ा समुदाय को बेच दिया था।
पुलिस के प्रयासों से नगमा को अपने माता-पिता के पास पहुंचा दिया गया।
अध्याय 5
‘दैत्य’ ने देख लिया है डेरा
(देहव्यापार के कारण दैत्य रूपी एड्स की चुनौती)
5.1 आसानी से मिल जाएगी महामारी/परम्परागत देहव्यापार और एड्स
5.2 पहियों पर दौड़ता जिन्न/ट्रक ड्रायवरों व क्लीनरों में एच.आई.वी संक्रमण
5.3 खतरों की खिलाड़ी/एच.आई.वी. संक्रमित महिलाओं का जीवन
5.4 जंचती नहीं उन्हें जाॅंच/महिलाओं में जाॅंच का डर
5.5 बुराई में भी अच्छाई/कंडोम का उपयोग बढ़ रही है जागरूकता
राजमार्ग पर बाँछड़ा समुदाय के अधिकतर डेरे महू-नीमच राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। महिलाएँ सड़क के किनारे खड़ी होकर ट्रक ड्रायवरों को रिझाने का प्रयास करती है।
हम किसी से कम नहीं -
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह साधारण सा जुमला हम बहुधा उपयोग में लाते है लेकिन इस छोटे से वाक्य में ही सृष्टि के विकास की कहानी छिपी हुई है। परिवर्तन हर स्तर पर होता आया है । परिवर्तन का यह चक्र जब समाज स्तर पर घूमता है तो सामाजिक परिवर्तन की कहानी शुरू होती है । सामान्य तौर पर सामाजिक संरचना में परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। इस परिवर्तन के परिणााम स्वरूप व्यक्ति के आचार, विचार और व्यवहारों में भी बदलाव आ जाता है। समाजशास्त्री इसे सांस्कृतिक परिवर्तन का नाम भी देते हैं। यह तथ्य भी सर्वविदित है कि जब किसी समुदाय के लोगों के आचार, विचार व व्यवहार बदलते हैं तो उसके जीवन स्तर में भी बदलाव आता है। बाॅंछड़ा समुदाय भी इस तथ्य से अछूता नहीं रहा है। शिक्षा, जनसंचार, नेतृत्व जैसे कारकों ने बाॅंछड़ा समुदाय के एक बड़े तबके को सामाजिक बदलाव जैसी समाजशस्त्रीय अवधारणा से रूबरू करा दिया और इसका असर समुदाय के लोगों के रहन-सहन व जीवन स्तर में देखा जा सकता है। समुदाय में यह बदलाव सकारात्मक व नकारात्मक दोनों रूपों में आया है। हाथ-भट्टी की कच्ची शराब की जगह धीरे-धीरे देशी शराब ले रही है तो कही पर वाइन की घुसपैठ हो गई है। देह व्यापार में लिप्त महिलाएॅं भी अब ब्यूटी पार्लर नामक सजावट की दुकान के बारे में जानने लगी है हालांकि उनकी पहुॅंच इन दुकानों तक अभी नहीं हुई है लेकिन वे सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग वह बखूबी सीख गई है। कुछ युवतियाॅं इतनी आगे निकल गई है कि वे जींस, टीशर्ट पहनकर आधुनिकता का लिबास ओढ़ रही है। फैशन के साथ कपड़ों का चयन भी इनकी पसंद में शुमार होने लगा है। यह सब संचार माध्यमों के प्रसार का ही नतीजा है। गाॅंव-गाॅंव, डेरे-डेरे तक पहुॅंचे आधुनिकता के झोंगे ने सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है। श्क्षिा के प्रसार ने भी बाॅंछड़ा समुदाय के सामाजिक बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है हालांकि समुदाय में श्क्षिा का स्तर काफी कम है लेकिन जो शिक्षित हो गए हैं उन्होंने परंपराओं की दीवारों को लांघकर समय के साथ जीने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए हैं। मंदसौर, रतलाम व नीमच जिले में इस समुदाय की ऐसी अनेक महिलाएॅं है जिन्होंने अपने परंपरागत धंधे को तिलांजलि देकर न केवल अपने लिए नई राह चुनी बल्कि सरकारी नौकरी हांसिल करके कई रूढ़िवादियों के मुॅंह पर तमाचा भी मारा। समुदाय की कई महिलाएॅं स्वास्थ्य विभाग में नर्स के रूप में पदस्थ है तो कई शिक्षक बनी हुई है। समुदाय के पुरूष भी इस मामले में पीछे नहीं है। कोई पटवारी है तो कोई थाना प्रभारी। इस स्थिति में पारिवारिक स्तर में इतना सुधार आ गया है कि ये अपने बच्चों को पढ़ाने में पीछे नहीं हट रहे हैं। अध्ययन में यह तथ्य भी सामने आया है कि जिन परिवारों में एक भी सदस्य शासकीय सेवा में हैं, उनके परिवार की महिलाएॅं देह व्यापार में लिप्त नहीं है। इन परिवारों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है तथा आर्थिक स्थिति भी सुधरी है। जाहिर है सामाजिक स्थिति में सुधार आया है। सामाजिक स्तर में आए सुधारात्मक बदलाव को बाॅंछड़ा समुदाय की युवती की जिंदगी की कहानी से भी समझा जा सकता है। कहानी कुछ इस प्रकार है -
पल रही थी दलदल में ही लेकिन पढ़ने-लिखने की थोड़ी सी इच्छा से ही उसके जीवन में बदलाव आया। आज वह इन्दौर के एक पाॅलिटेक्निक काॅलेज में स्टोरकीपर के पद पर रहते हुए अपना जीवन सम्मान के साथ जी रही है। अपने जीवन में आए बदलाव व समुदाय के दलदल से दूर जाने की कहानी बताते हुए वह कहती है - 1981 की जनगणना कार्यक्रम के दौरान अधिकारियों के सामने पढ़ने की इच्छा जाहिर की। 5वीं की परीक्षा स्वाध्यायी छात्रा के रूप में दी। कक्षा छठी के बाद जावरा स्थित होस्टल में रहकर पढ़ाई की। 12वीं की परीक्षा रतलाम होस्टल में रहते हुए उत्तीर्ण की। 12वीं की परीक्षा के दौरान भी संघषर्् ने जैसे परीक्ष ली। अचानक तबीयत बिगढ़ गई और आठ दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा। ज्यादा खराब हालत देख डाॅक्टर ने अस्पताल से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी। मेरे सामने तो जैसे भविष्य का सवाल खड़ा हो गया। परीक्षा नहीं दे पाई तो सारी मेहनत ही धरी की धरी रह जाएगी। फिर उन सपनों का क्या जो पढ़ाई के नाम पर संजो रखे हैं। उत्साह को देखते हुए होस्टल के वार्डन ने खुद की रिस्क पर परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी। होस्टल के चपरासी की सहायता से परीक्षा देने गई। रिजल्ट आया तो ऐसा लगात मानो उत्साह व दृढ़ इच्छाशक्ति के आगे बीमारी भी फेल हो गई। 12वीं तक की सीढ़ी चढ़ने के दौरान रतलाम के तत्कालीन कलेक्टर भगीरथ प्रसाद महोदय और उनकी साहित्यकार पत्नी स्नेहलता प्रसाद से उसी दौरान मुलाकात हुई तथा उनके सामने सरकारी नौकरी की इच्छा जताई। 12वीं की पढ़ाई पुरी कर इन्दौर से भगीरथ प्रसाद का बुलावा आया। श्री प्रसाद उस समय इंदौर के कलेक्टर बन गए थे। बुलावा तो क्या, वह तो नौकरी का पत्र था। श्री प्रसाद ने मेरी नियुक्ति आदिम जाति कल्याण विभाग कार्यालय में निम्न श्रेणी लिपिक के पद पर करवा दी। इसी दौरान इन्दौर स्थित होस्टल में प्रवेश ले लिया और बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। इसी बीच सीधी भर्ती की वांट्स निकली तो पाॅलिटेक्निक में स्टोरकीपर के पद के लिए आवेदन कर दिया। यहाॅं भी किस्मत ने साथ दिया और चयन हो गया। यहाॅं 1993 से नौकरी शुरूकर दी। इससे पूर्व 1992 में परिवार की इच्छा के विपरीत अंतरजातीय विवाह किया। वर्तमान ने पति के साथ रहते हुए जीवन यापन जारी है। यह कहानी है बाँछड़ा समुदाय की एक महिला की जो ढोढर क्षेत्र के ही एक डेरे में जन्मी तथा ऐसे वातावरण में रही जहाॅं लड़कियों के सपने अक्सर दबकर दम तोड़ देते हैं। वह बताती है कि अब लड़कियों के विचारों में परिवर्तन आ रहा है। परवलिया की दो लड़कियों ने दलदल में जाने से मना कर दिया। कई लड़कियाॅं घूट-घूट कर जी रही है। देह व्यापार की परंपरा को दूर करने के बारे में उनका सुझाव है कि समुदाय की लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति योजना लागू की जाए। लड़कियों को छात्रावास में रखा जाए ताकि वे गलत वातावरण से दूर रह सके। पुरूषों को भी आत्मनिर्भर बनाया जाए। नई पीढ़ी के लोग अब लड़कियों को दलदल में नहीं धकेल रहे हैं। समाज के कुछ रूढ़िवादी लोग किसी को सुधारने देना नहीं चाहते।
इन्दौर के पाॅलिटेक्निक में नौकरी करने वाली उक्त युवती की ही तरह नीमच जिले के हार्डीपिपलिया की रीना (काल्पनिक नाम) भी अब बहुत खुश है। समुदाय के परम्परागत देह व्यापार के दलदल में मानों कोई कमल खिला है रीना के रूप में । रीना समुदाय की दूसरी लड़कियों की तरह धंधा नहीं करती, नौकरी करती है वह भी खुश रहकर।
आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के गुंडप्प गांव की एड्स ग्रसित महिला पुनम को जिंदा जला दिया।
(राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष पुर्णिमा आडवाणी का 18 जुलाई 2003 का सनसनीखेज खुलासा)
मध्य्रपदेश के गुना जिले में एड्स की चिंता में युवक ने खुद को जला दिया।
(अखबार से प्रकाशित एक खबर)
मणिपुर के बुड़ाचंद्रपुर में संचालित एक केन्द्र में एच.आय.वी. संक्रमित बालक को जंजीरों से बांधकर रखा गया। (एक पत्रिका में छपी रिपोर्ट का सार)
ये एच.आय.वी. एड्स रोगियों से जुड़े महज कुछ उदाहरण है आधुनिक युग की महामारी एड्स के प्रति आदिमयुगीन मानसिकता के परिचायक इन उदाहरण नजरअंदाज वह ..... भ्रांति छिपी हुई है जो इस महामारी का अन्य बीमारियों से अलग करती है। एड्स का हम आधुनिक युग में दुर्दांत दैत्य भी कह सकते हैं तो अपने खुंखार पंजो से मानव रूपी शिकार को अपने कब्जे में लेने के लिए लालायित है। यह दैत्य अपने नापाक मंसूबों में धीरे-धीरे सफल होता दिख रहा है क्योंकि इसके मुकाबले के लिए अभी कोई सर्वसुलभ हथियार अर्थात रोगरोधी टीका या दवाई उपलब्ध नहीं है हालांकि सम्पूर्ण चिकित्सा जगत इस मामलें में वृद्ध स्तर पर प्रयासरत है और आधुनिक युग के कड़वे सत्य एड्स ;।प्क्ैद्ध अर्थात एक्वायड एक्यूनो डिफिसिंएंसी सिंड्रोम ;।बुनपतमक प्उउनदम कमपिबपमदबल ैलदकतवउद्ध का अपने नियंत्रण के लिए जद्दोजहद कर रहा है। इस महामारी ने सम्पूर्ण विश्व का ध्यान अपनी ओर खिंच रहा है। इस बीमारी का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। आधुनिक युग इस शताबछी के इस भंयकर रोग से उस समय रूबरू हुआ जब 1981 की गर्मियों में अमेरिका के सेंटर फार डिजीज कंट्रोल को पता चला कि लाॅस एंजीलियस में पांच समलैंगिक पुरूष न्यूमोसिस्टिस कैरिनी नाम परजीवी से होने वाले असमान्य किस्म के निमोनिया से पीड़ित है। इस रोग के जो लक्षण है उसमें श्वास नलिकाओं और फेफड़ों में संक्रमण होने के कारण श्वास अवरोध पैदा होता है जिस परजीवी के कारण यह बीमारी होती है आमतौर पर उसे मनुष्यों के लिए हानिरहित माना जाता है लेकिन उन मरीजों की हालत गंभीर थी। लाॅस एंजीलिस के अस्पताल में भर्ती हुए इन रोगियों पर अभियान प्रारम्भ किया है। ग्राम में व्याप्त कुरीतियों एवं सामाजिक बुराईयों को दूर करना ग्राम पंचायतों का एक महत्वपूर्ण दायित्व है। अतः इस अभियान के लिए ग्राम पंचायत ही सबसे सुदृढ़ आधार हो सकती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए अभियान की कार्ययोजना में ग्राम पंचायत की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निर्धारित है। ग्राम में इस अभियान के क्रियान्वयन हेतु एक ग्राम स्तरीय समिति गठित की जा रही है।
पत्र में कहा गया थ कि यह सुनिश्चित करें कि इस ग्राम स्तरीय समिति से ग्राम के अधिक से अधिक जागरूक एवं सक्रिय लोग जुड़े। ग्राम स्तरीय समिति को ग्राम पंचायत से पूर्ण सहयोग एवं समर्थन मिले। ग्राम स्तरीय समिति के गठन के सात दिन बाद इसकी प्रथम बैठक होगी। पत्र में अनुरोध किया था कि 2 अक्टूबर 1998 की ग्राम सभा में समिति द्वारा पारित प्रस्तावों को विचारार्थ रखें एवं ग्राम सभा इस पर उचित निर्णय लें। इसके अतिरिक्त पंचायत निम्नलिखित कार्य इस अभियान के संबंध में कर सकती है -
 
1. जन जागृति फैलाकर वेश्यावृत्ति एवं अन्य बुराईयाॅं समाप्त करने के रचनात्मक प्रयास।
2. बाँछड़ा समाज के लोगों के रोजगार एवं पुनर्वास हेतु प्रयास करना एवं ग्राम स्तरीय समिति से प्राप्त आवेदनों की अनुशंसा सहित अनुविभागीय अधिकारी को भेजना।
3. बाँछड़ा जाति की वयस्क लड़कियों तथा माता-पिता को उनकी शादी हेतु प्रेरित करना। जाति के युवक एवं युवतियों के आवेदन प्राप्त कर उनका विवाह सम्पन्न कराना।
4. बाँछड़ा जाति अनुसूचित जाति के अंतर्गत आती है एवं अनुसूचित जाति के लोगों की दशा सुधारने के उपायों को क्रियान्वित करना पंचायतों का विशेष दायित्व है। अतः बाँछड़ा जाति के लोगों को शासन की विभिन्न योजनाओं ऋण, पेंशन, छात्रवृत्ति, आर्थिक सहायता आदि का लाभ देने का विशेष ध्यान रखा जाना।
5. अच्छी आवासीय शैक्षणिक संस्थाओं जैसे कस्तूरबा ग्राम इन्दौर आदि में जिले की बाँछड़ा जाति की 6 से 14 वर्ष की बालिकाओं को निःशुल्क प्रवेश देने का प्रावधान है। अतः ग्राम की बालिकाओं (तथा बालकों) को अध्ययन एवं स्वच्छ माहौल हेतु बाहर भेजने के लिए उनके माता-पिता को प्रेरित करना तथा इसके लिए बालिकाओं की सूची बनाकर जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी मंदसौर को प्रेषित करना।
समितियों का गठन - अभियान के क्रियान्वयन के लिए जिले से लेकर ग्राम स्तर पर समितियों का गठन किया गया था। मंदसौर एवं नीमच जिले में जिला स्तरीय समितियों का गठन किया गया जिसमें अध्यक्ष कलेक्टर, उपाध्यक्ष पुलिस अधीक्षक, सचिव जिला महिला बाल विकास अधिकारी एवं सदस्य के रूप में बाँछड़ा समुदाय की जागरूक एवं सक्रिय पुरूषों व महिलाओं को शामिल किया गया। इसी तरह अनुविभागीय
अन्य लड़कियाॅं जैसे ही विवाह योग्य होती है, उनका विवाह योग्य लड़कों से कर दिया जाए, क्योंकि विवाह होने पर वे देह व्यापार में नहीं आ पाएंगी। इस संबंध में कुछ लोगों का कहना था कि देह व्यापार में लिप्त लड़कियाों की शादी अन्य समाज के उनके पसंद के लड़कों से न की जाए क्योंकि इससे कई लड़कियाॅं ऐसे लोगों से शादी करेंगे जिनका उनसे पहले से संबंध है तथा वे बाद में भी यही कार्य करती रहेंगी।
समाज के मुखर तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि पूर्व में उनके रोजगार हेतु तथा उन्हें एक स्थान पर बसाने के कई प्रयास हुए मगर इस समुदाय की लड़कियों में देह व्यापार की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। अतः देह व्यापार में लिप्त लड़कियाॅं तथा विशेषकर जो उनके यह कार्य करवाती है, के विरूद्ध सख्त कार्यवाही की जाए।
महू-नीमच हाईवे तथा अन्य मुख्य सड़कों के किनारे बाँछड़ा परिवारों तथा ढाबों का व्यावसायिक दृष्टिकोण से संकेन्द्रण बढ़ता जा रहा है। साथ ही इन मकानों से लगे ढाबे भी खुलते जा रहे हैं। समुदाय की लड़कियाॅं सजधन कर घरों के सामने बैठी रहती है तथा उन्हें आसानी से हाईवे पर चलने वालों ट्रकों तथा अन्य माध्यमों से ग्राहक मिल जाते हैं। कई लोगों ने इन परिवारों को वापस भेजने तथा उनके मकान एवं ढाबों को तोड़ने की बात कही। जनप्रतिनिधियों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना था कि सड़क के किनारे बने डेरे तथा ढाबे न सिर्फ देह व्यापार को बढ़ावा देते हैं, वरन अफीम, स्मैक आदि की तस्करी तथा उपयोग जैसे अपराधिक गतिविधियों के अड्डे भी बन गए है। अतः इन्हें अत्काल हटाया जाना आवश्यक है।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि देह व्यापार में संलग्न युवतियों को शासन व सामाजिक संस्थाओं द्वारा संचालित सुधारगृहों में भेजा जाए तथा देह व्यापार के लिए डेरों का प्रबंध करने वालों, इस अनैतिक धंधे पर आश्रित पालकों तथा अन्य दलालों, विशेषकर अवयस्क लड़कियों से देह व्यापार कराने वाले पालकों पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के तहत सख्त कार्यवाही की जाए। उन्होंने डेरों पर आने वाले ग्राहकों के खिलाफ भी सख्त कार्यवाही करने का सुझाव दिया।
इन सुझावों के अलावा अन्य कई सुझाव भी प्राप्त हुए जिसमें कहा गया कि बाँछड़ा समुदाय, गांवों एवं डेरों के समीप ‘एड्स का खतरा’ के बोर्ड लगा दिए जाए। डेरों के आस-पास ट्रकों एवं अन्य वाहनों पीछे भी लिख दिया जाय। इस समुदाय के लोगों में जागृति लागने का प्रयास किया जाय। बाँछड़ा शब्द देह व्यापार का पर्याय बन चुका है। देह व्यापार में संलग्न युवतियों से विवाह करने वाले युवकों को शासन द्वारा पुरस्कृत किया जाए। इस क्षेत्र में कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत किया जाए।
अभियान के दौरान महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा सभी बाँछड़ा बहुत ग्रामों में बालिका शिक्षा के लिए अभिभावकों से संपर्क किया गया। 41 बालिकाओं को स्वच्छ एवं कुंठाविहीन वातावरण में शिक्षा दिलाने तथा मुख्य धारा के सामाजिक मूल्यों से जोड़ने के प्रयासों के तहत कस्तूरबा ग्राम इन्दौर भेज गया। बाँछड़ा युवक युवतियों को स्वरोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध कराने के लिए जिला स्तरीय रोजगार समिति का गठन किया गया जिसमें अध्यक्ष-मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत, सचिव-जिला संयोजक, आदिम जाति कल्याण विभाग तथा सदस्य के रूप में महाप्रबंधक उद्योग, जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी व कार्यपालन अधिकारी, अंत्यावसायी को लिया गया। इस समिति द्वारा शासन की विभिन्न रोजगारमूलक योजनाओं की जानकारी युवक-युवकतियों को देने का काम किया गया। प्रशासनिक, पुलिस एवं अन्य अधिकारियों को अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1056 के संदर्भ में प्रशिक्षण एवं तय की गई कार्ययोजनाअें के अनुसार कार्यवाही के निर्देश दिए गए।
बाँछड़ा जाति के उत्थान एवं वेश्यावृत्ति के उन्मूलन हेतु कार्य योजना -
निर्मल अभियान के तहत एक कार्ययोजना बनाई गई थी इस कार्ययोजना में विभिन्न विभागों द्वारा की जाने वाली कार्यवाही को शामिल किया गया थां। विभिन्न विभागों के अधिकारियों पृथक से जिम्मेदारियां भी सौंपी गई थी। अभियान के तहत अधिकारियों को जो जिम्मेदारी सौंपी गई थी उसकी जानकारी इस प्रकार है -
समस्त अनुविभागीय दंडाधिकारी, जिला मंदसौर/नीमच -
  • महू-नीमच रोड़ एवं अन्य मुख्य मार्गो पर स्थित ढाबों का सर्वे।
  • महू-नीमच रोड़ एवं अन्य मुख्य मार्गो पर स्थित बाँछड़ा समाज के डेरो का सर्वे।
  • महू नीमच रोड़ एवं अन्य मुख्य मार्गो पर बाँछड़ा समुदाय के डेरों के नजदीक अथवा ढाबों के समीप निर्माणाधीन मकानों का सर्वे।
  • यह सुनिश्चित करना कि बाँछड़ा समुदाय के डेरो के निकट एवं ढाबों के समीप देह व्यापार के प्रयोजन के लिए या वेश्यावृति को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से अन्य लोगों के भी मकान निर्माण न हो। नए मकानों के निर्माण के बारे में जानकारी रखने एवं बिना समक्ष अधिकारी की अनुमति के हो रहे निर्माणों के विरूद्ध समुचित कार्यवाही सुनिश्चित करवाने की जिम्मेदारी पटवारी एवं ग्राम सहायता की होगी।
  • अनैतिक दुव्र्यापार निवारण अधिनियम की धारा 16, 18, 19 व 20 के तहत कार्यवाही।
  • बाँछड़ा समुदाय के उत्थान एवं देह व्यापार उन्मूलन के संदर्भ में एक विकासखण्ड स्तरीय
    समिति का गठन करवाना जिसमें अनुविभागीय दण्डाधिकारी, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत, अनुविभागीय अधिकारी (पुलिस) पदेन सदस्य होंगे। इसके अतिरिक्त बाँछड़ा समुदाय के जागरूक, सक्रिय एवं प्रभावी लोग सदस्य होंगे। इस समिति की बैठक प्रतिमाह आयोजित होगी।
  • बाँछड़ा-बाहुल ग्रामों में बाँछड़ा समुदाय के उत्थान एवं देह व्यापार उन्मूलन संबंधी पूर्व से गठिन ग्राम स्तरीय समिति के समन्वयक एवं ग्राम सचिव की बैठक बुलाना।
  • बाँछड़ा समाज के हर परिवार के एक सदस्रू को रोजगार का साधन मिले, यह सुनिश्चित करना।
  • बाँछड़ा बहुल ग्रामों की ग्राम पंचायतों एवं ग्राम समितियों (बाँछड़ा जाति उत्थान एवं वेश्वावृत्ति उन्मूलन संबंधी) के माध्यम से बाँछड़ा समुदाय की युवतियों के विवाह के लिए प्राप्त आवेदनों की जाॅंच पड़ताल कर विवाह करवाना।
महिला एवं बाल विकास अधिकारी -
  • समस्त अभियान की मोनिटरिंग।
  • कस्तूरबा आश्रम एवं अन्य आवासीय शैक्षणिक संस्थाओं में बाँछड़ा समुदाय के लड़के एवं लड़कियों को प्रवेश दिलवाना।
  • बाँछड़ा बालिकाओं, महिलाओं के प्रशिक्षण एवं आर्थिक पुनर्वास की महिला एवं बाल विकास महिला आर्थिक विकास निगम, समाज कल्याण बोर्ड आदि के तहत योजनाएॅं तैयार करवा एवं लाभ दिलवाना।
  • महिला संगठनों, सामाजिक संस्थाओं को अभियान में आगे जाने हेतु प्रेरित करना।
  • अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के तहत सामाजिक कार्यकर्ताओं की समिति का गठन।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी -
  • बाँछड़ा समुदाय के लोगों की नियमित एच.आई.वी. व अन्य जाॅंच सुनिश्चि करना।
  • आदिम जाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग मन्दसौर एवं नीमच जिला के अनुसूचित जाति कन्या छात्रावासों के रिक्त स्थानों में बाँछड़ा समुदाय की बालिकाओं को प्रवेश हेतु प्रेरित करना।
  • अनुसूचित जाति बालक छात्रावासों की क्षमता में विस्तार कर अधिक से अधिक बाँछड़ा बालकों को उनमें प्रवेश देना।
मुख्य कार्यपालन अधिकारी, अंत्यावसायी निगम -
बाँछड़ा समुदाय के प्रत्येक परिवार के कम से कम एक सदस्य को प्रशिक्षण देना तथा स्वरोजगार उपलब्ध कराना।
उद्योग विभाग -
उद्योग विभाग की स्वरोजगार, प्रशिक्षण एवं ऋण योजनाओं से बाँछड़ा समुदाय के युवक युवतियों को अधिकाधिक संख्या में जोड़ना।
शिक्षा विभाग -
बाँछड़ा समुदाय के बालक-बालिकाओं को शालाओं में अधिकाधिक प्रवेश हेतु प्रेरित करना।
मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत -
  • ग्राम सभा में बाँछड़ा समुदाय के उत्थान एवं वेश्वावृत्ति उन्मूलन के संबंध में चर्चा।
  • बाँछड़ा समुदाय के परिवार के कम से कम एक सदस्य को रोजगार दिलवाना।
  • बाँछड़ा परिवारों का सर्वे।
पुलिस विभाग -
  • अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 की धारा के तहत वेश्वावृत्ति कराने वालों, प्रबंधकों, कुटना (दलाल) आदि के खिलाफ कार्यवाही करना एवं दोषी लोगों को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना।
  • लोक स्थान के समीप (200 मीटर के अंदर) वेश्वावृत्ति करने पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 की धारा 3,7 एवं 8 के तहत कार्यवाही, साथ ही वेश्वावृत्ति करने वाली लड़कियों को हटाने (धारा 16), वेश्वावगृहों को बंद किए जाने एवं अपराधियों की परिसर से बेदखली (धारा 20) की कार्यवाही करना है।
  • विशेष पुलिस अधिकारी की नियुक्ति के संबंध में कार्यवाही।
  • महिला पुलिस अधिकारियों एवं कर्मचारियों को विशेष रूप से इस कार्य में नियोजित करना।
  • मंदसौर में महिला पुलिस स्टेशन स्थापित करवाने की कार्यवाही करना।
अध्याय - 6
तुल डाल-डाल, हम पात-पात
(बाँछड़ा समुदाय के उत्थान के लिए सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयास)
6.1 ‘निर्मल’ बना दुर्बल/प्रशासन द्वारा चलाया गया अभियान
6.2 दूर के ढोल/सरकारी एजेंसियों की योजनाएॅं
6.3 इस मर्ज का इलाज कहाँ ? एड्स नियमंत्रण समितियों का कामकाज
6.4 कुछ भाग-दौड़ इनकी भी स्वयंसेवी संस्थाअें के प्रयास
असफल प्रयास
रतलाम जिले के बागाखेड़ा में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बाँछड़ा महिलाओं के लिए सिंथेटिक दरी बनाने का प्रशक्षिण केन्द्र शुरू किया गया थ यह प्रयास कितना सफल हुआ इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि दरी बनाने का कच्चा माल एक भवन में धूल खा रहा है।
एड्स के रोकथाम तथा बाँछड़ा समुदाय के उत्थान के लिए सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर किए गए प्रयासों की समीक्षा
देश में एड्स की रोकथान के लिए सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएॅं प्रतिवर्ष 100 करोड़ रूपए खर्च करती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक इतनी राशि खर्च होने के बावजूद भारत में एच.आई.वी. संक्रमित लोगों की तादाद 40 लाख के ऊपर जा पहुची है। विशेषज्ञों का मानना है कि कई लोगों के लिए यह बीमारी एक उद्योग है। यह धंधा देश की राजधानी की बदनाम बस्ती जी.बी. रोड़ से लेकर देहांत में स्थित डेरों पर जहां देश खुलेआम चलता है, बदस्तूर जारी है।
मध्यप्रदेश में बाँछड़ा समुदाय के देह व्यापार से उत्पन्न एड्स की चुनौती से निपटने के लिए सरकारी प्रयास किए गए जो अभी भी जारी है। बाँछड़ा समुदाय के उत्थान के लिए राज्य स्तर पर पृथक से कोई योजना लागू होने की जानकारी नहीं है अलबत्ता विभिन्न जिलों में प्रशासन ने अपने कार्यक्रम बनाकर इस समुदाय को मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया है। यह समुदाय अनुसूचित जाति वर्ग में आता है। इस सृष्टि से प्रवेश में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए जागू योजनाओं के तहत इस समुदाय को लाभान्वित करने का प्रयास किया गया।
6.1 निर्मल बना दुर्लभ
मंदसौर, नीमच जिला प्रशासन ने वर्ष 1998 में एक सकारात्मक पहल करते हुए बाँछड़ा समुदाय के उत्थान के लिए एक समेकित अभियान चलाया जिसे ‘निर्मल अभियान’ नाम दिया गया। मंदसौर के तत्कालीन कलेक्टर शैलेन्द्रसिंह व नीमच के तत्कालीन कलेक्टर प्रभात पराशर ने विशेष रूचि लेकर अभियान के तहत बाँछड़ा समुदाय के उत्थान के लिए विस्तृत कार्य योजना बनाई। इस महत्वाकांक्षी अभियान में विभिन्न शासकीय एजेंसियों के साथ ही जनप्रतिनिधियों, प्रबुद्ध नागरिकों, स्वयंसेवी संस्थानों के पदाधिकारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
निर्मल अभियान के बारे में जारी किए गए शासकीय प्रतिवेदन के अनुसार 11 अगस्त 1998 को मंदसौर के तत्कालीन कलेक्टर की अध्यक्षता में मंदसौर व नीमच जिले के बाँछड़ा समुदाय के प्रतिनिधियों, प्रशासन एवं पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में बैठक आयोजित की गई। बाद में नियमित रूप से समय-समय पर नीचम व मंदसौर में बाँछड़ा समुदाय के प्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों एवं अधिकारियों की बैठक इस विषय पर आयोजित की जाती रही। इसी दौरान जिल ास्वास्थ्य विभाग द्वारा देह व्यापार में लिप्त महिलाओं को मुफ्त में कंडोम, बाँटने की योजना को और प्रभावी ढंग से जागू करने की आवश्यकता है। जैसा कि अध्ययन में सामने आया है कि अभी-भी कई महिलाएॅं कंडोम का उपयोग नहीं करती है। स्वास्थ्य विभाग की महिला कार्यकर्ताओं के माध्यम से ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि 100 प्रतिशत मामलों में कंडोम का इस्तेमाल हो। यह तब ही संभव है जब इसके बिना संबंध स्थापित करने से होने वाले खतरों के बारे में उन्हें आगाह किया जाए। नुक्कड़ नाटक जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से बाँछड़ा बहुल गांवों में एड्स के बारे में जनजागृति पैदा की जा सकती है लेकिन इस तरह के कार्यक्रम महज औपचारिक नहीं जैसा कि प्रति वर्ष 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के बारे में जनजागृति पैदा की जा सकती है ल्ेकिन इस तरह के कार्यक्रम महज औपचारिकता नहीं जैसा कि प्रति वर्ष 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के मौके पर होता है। एड्स के साथ ही अन्य यौन रोगों के बारे में भी समुदाय की महिलाओं को जानकारी दी जाना चाहिए।
यह शोधार्थी एड्स की रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा पूर्व में बनाई गई कार्ययोजना पर अमर का भी सुझाव देगा। प्रदेश स्तर के लिए बनी कार्ययोजना को स्थानीय संदर्भ में देखने पर निम्न सुझाव सामने आते हैं -
1. परीक्षण व खोज -
  • टारगेट निर्धारित कर जांच सेंटर स्थापित किए जाए जहाॅं एच.आई.वी. जाॅंच/खोज की व्यवस्था हो।
  • हाईरिस्क ग्रुप का रैंडम सर्व किया जाए।
  • बीमारी फैलने के कारण की खोज हो।
  • चिकित्सकों को ट्रेड किया जाए जो मेनेजमेंट, काउंसलिंग, रिपोर्टिंग कर सकें।
2. व्यवहार परिवर्तन -
सुरक्षा, व्यवहार परिवर्तन, सूचना शिक्षा तथा संचार से सामाजिक बदलाव संभव है। यदि एड्स/एच.आई.वी. का कोई केस सामने आए तो यौन व्यवहार में अंतर, उचित इलाज की व्यवस्था हो जिससे और संक्रमण न फैले। एड्स/एच.आई.वी. तथा टी.बी. के बारे में संचार एक कठिन कार्य है जिसे व्यक्तिगत स्तर पर किया जा सकता है। इस हेतु एक चैनल जिसमें सारा मीडिया, परंपरागत मीडिया स्वास्थ्य कार्यकर्ता तथा अन्तःव्यक्तित्व डिस्कशन का सहारा लिया जा सकता है। इस हेतु स्वयं सेवा संगठनों का सहयोग लिया जा सकता है या इन्हें जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
3. एच.टी.डी बीमारियां -
क्षेत्र में एच.आई.वी. संक्रमण का मुख्य माध्यम बाँछड़ा समुदाय का देह व्यापार है। एच.आई.वी. संक्रमित महिला या पुरूष दूसरे पुरूष/महिला को संक्रमित कर सकता है। यौन बीमारियों की आशंका भी बनी रहती है। एच.आई.वी. संक्रमण का रोकने के लिए एस.टी.डी. व अन्य यौग रोगों की जाॅंच व प्रारंभिक इलाज महत्वपूणर्् होता है। एस.टी.डी. कंट्रोल के लिए निम्न गतिविधियाॅं की जा सकती है -
प्रथम चरण - एस.टी.डी. क्लिनिक खोले जाए, सुरक्षित यौन संबंधों के लिए कंडोम प्रमोशन हो।
द्वितीय चरण - एस.टी.डी. की खोज हेतु निदानात्मक गतिविधियों जिनका सावधानी से पालन हो।
4. कंडोम कार्यक्रम
बाँछड़ा बहुत क्षेत्रों में कंडोम का वितरण एच.आई.वी. संक्रमण को रोकने का मुख्य आधार हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर व अपनी क्वालिटी के लुब्रीकेटेड कंडोम का वितरण किया जाना चाहिए सामजिक स्तर पर कंडोम के प्रचार के लिए एन.जी. ओ. का सहारा लिया जाए।
रक्त की सुरक्षा -
क्षेत्र में एच.आई.वी. संक्रमण का दूसरा मुख्य स्त्रोत रक्त है। रक्त सुरक्षा हेतु निम्न गतिविधियाॅं दी जा सकती है -
  • एच.आई.वी. जाॅंच की उपयुक्त सुविधा
  • ब्लड बैंकों का आधुनिकीकरण
  • रक्त का उचित वितरण
  • स्वयंसेवी रक्तदाताओं की खोज
  • ब्लड बैंक के कर्मचारियों का प्रशिक्षण
  • क्वालिटी कंट्रोल का क्रियान्वयन
  • उचित वैधानिक बिन्दुओं की जानकारी
6. समस्या को कम करना -
सामाजिक व मनोवैज्ञानिक प्रभाव से समस्या को कम करने का प्रयास किया जाए। व्यक्तियों, परिवारों व समुदाय पर काम करने
रतलाम जिले में स्थित बाँछड़ा समुदाय बहुल गांव
  • ढोढर
  • ढोढररूंडी
  • गोयाखेड़ा
  • पिपलिया जोधा
  • पिपलौदी
  • हनुमंतीया
  • परवलिया
  • बागाखेड़ा
  • चिकताना
  • सेमलिय
मंदसौर जिले में स्थित बाँछड़ा समुदाय बहुल गांव
  • बासगोन
  • ओसारा
  • संघारा
  • बाबुल्दा
  • नावली
  • कचनारा
  • बोरखेड़ी
  • शक्करखेड़ी
  • बरखेड़ापंथ
  • बिल्लौद
  • खखरियाखेड़ी
  • खेचड़ी
  • सूंठोद
  • चंगेरी
  • मुण्डली
  • डोडियामीणा
  • खूंटी
  • रासीतलाई
  • काल्याखेड़ी
  • पाडल्यामारू
  • आधारी उर्फ निरधारी
  • बानीखेड़ी
  • लिम्बारखेड़ी
  • रूणवली
  • कोलवा
  • निरधारी
  • लखमाखेड़ी
  • मोरखेड़ा
  • उदपुरा
  • डिमाॅंवमाली
  • रणमाखेड़ी
  • पानपुर
  • आक्याउमाहेड़ा
  • मंदसौर शहर
  • बाँसाखेड़
नीमच  जिले में स्थित बाँछड़ा समुदाय बहुल गांव
  • गिरदौड़ा
  • कनावटी
  • जूलाखड़ो
  • जेतपुरा
  • रावतखेड़ा
  • कचैली
  • भंवरास
  • हिंगोरिया
  • नीलकंठपुरा
  • नेवड़
  • सगरग्राम
  • चल्दू
  • बोरखेड़ापानरी
  • बर्डिया
  • हार्डीपिपलिय
  • चपलाना
  • तलाऊ पिपलिया
  • कड़ी आवरी
  • भांडिया
  • पिपलियाडंूडी
  • लोड़किया
  • मोया का डेरा
  • बरखेड़ी
जैसा समय पर कर जमा नहीं करने वालों कोई छूट देना। अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 की जटिलताओं के मद्देनजर इसमें संशोधित की मांग भी उठती रहती है। भोपाल में 13 फरवरी 2000 को हुई कार्यशाला के दौरान अधिनियम में सेशोधन करने के संबंध में जो निष्कर्ष आए थे (देखें परिशिष्ट) उन्हें देखकर संशोधन किया जाना चाहिए।
ये कुछ प्रमुख बिंदु थे जिनके आधार पर कार्य किए जाए तो परिणाम आ सकते है। साथ ही समस्या के ऐसे दूसरे पहलू भी है जिन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। मसलन क्षेत्र में ‘बाँछड़ा’ शब्द देह व्यापार का पर्याय बन गया है। जो लोग सुधर गए हैं वे भी अपने को बाँछड़ा कहे जाने पर हीन भावना से ग्रसित व अपमानित समझते है। समुदाय के बुजुर्गो को विश्वास में लेकर बाँछड़ा की बजाय कोई दूसरा नाम प्रयोग में लाना जाना चाहिए। निर्मल अभियान के दौरान मंदसौर में कलेक्टर रहे शैलेन्द्रसिंह ने भोपाल कार्यशाला में सुझााव दिया था कि जाति प्रमाण-पत्र में उपजाति बाँछड़ा लिखना आवश्यक नहीं होना चाहिए। एन.जी.ओ. बाँछड़ा जाति में काम करने से डरते हैं। उनका सुझाव था कि अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम के तहत संवेदनशील मामलों में वर्ग दो अधिकारिी से ही इन्वेस्टीगेशन कराना चाहिए तभी ऐसे प्रकरणों में सजा का रेट बढ़ सकेगा। शादी को ही अंतिम पुनर्वास मानकर इन जातियों की लड़कियों से शादी करने के इच्छुक युवकों के रोजगार की व्यवस्थ होना चाहिए। भारी वधू मूल्य, फैसले के लिए होने वाली अग्निपरीक्षा पर रोक के लिए भी कानून में प्रावधान होना चाहिए। इन सुझाावों को स्वीकार करने का सुझाव भी यह शोधार्थी देगा।
एड्स की रोकथाम से संबंधित सुझाव - अध्ययन के निष्कर्षो से स्पष्ट है कि बाँछड़ा समुदाय के देह व्यापार के कारण क्षेत्र में एच.आई.वी. संक्रमण का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। देह व्यापार में लिप्त महिलाओं में भी इसका संक्रमण काफी तेजी से हो रहा है। एड्स महामारी के बारे में कहा जाता है कि जागरूकता ही इससे बचाव का फिलहाल एकमात्र उपाय है। इस सिलसिले ने पहला सुझाव तो यही है कि देह व्यापार में लिप्त महिलाओं के स्वास्थ्य परीक्षण की तत्काल व्यवस्था हो। 1993-94 के बाद से अब तक पिछले 10 सालों में एक बार भी इनकी जाॅंच नहीं हुई हैं । स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से भी महिलाओं का पंजीयन हो तथा काउंसलिंग के बाद इनका एच.आई.वी. टेस्ट किया जाए। एच.आई.वी. टेस्ट में जो पाॅजीटिव पाई जाए उसके उपचार की व्यवस्था के साथ ही यह व्यवस्था भी हो कि इनसे अन्य किसी को संक्रमण नहीं हो। सभी के नियमित स्वास्थ्य परीक्षण की व्यवस्था हो। बाँछड़ा बहुल गाॅंवों के लिए पृथक से डिस्पैंसरी स्थापित की जाए। बाँछड़ा समुदाय की महिलाओं में जाॅंच के नाम पर कायम उस डर को भी दूर करने के प्रयास हो जो 1993-94 के अभियान से बना हुआ है। जाॅंच डंडे के बल पर नहीं हो (जैसा कि 1993-94 में हुआ) बल्कि काउंसलिंग के जरिए विश्वास में लेकर की जाए। एच.आई.वी. संक्रमण के कारणों व इस बीमारी के लक्षणों के बारे में समुदाय की महिलाओं को समझाने के लिए एन.जी.ओ. के माध्यम से अभियान चलाया जा सकता है।
कार्यक्रम प्रबंधन व ट्रेनिंग के माध्यम से इस कार्य योजना को मूर्त रूप दिया जा सकता है। इसे इस कार्य योजना को स्वास्थ्य विभाग ने 1993-94 में ही प्रस्तुत कर दिया था लेकिन पूरी योजना फाइलों में ही दबकर रह गई। बजट व संसाधनों की कमी शायद प्रमुख कारण रहा हो। अतः में यही कहा जा सकता है कि इस तरह की योजनाएँ तो कई बनाई जा सकती है या बनाई जा चुकी है आवश्यकता तो है उनके उनके ईमानदारी से क्रियान्वयन की।
इसके अलावा कुछ अन्य बातों पर भी गौर किया जा सकता है। जिस तरह मध्यप्रदेश के पिछड़े जिले राजगढ़ के गाँव कड़िया सांसी में सांसी समुदाय के आपराधिक अतीत ने ही उन्हें सुधार की राह पर उतार दिया, उसी प्रकार बाँछड़ा समुदाय के लोगों को भी कोई राह दिखा दे तो वे भी उस पर चल सकते हैं। इस राह पर शिक्षा की गाड़ी में बैठकर सम्मानजनक जीवन का सफर तय किया जा सकता है। कड़िया में सांसियों ने शिक्षा का महत्व समझकर अपने बच्चों को शिक्षित करने का निर्णय लिया और बच्चों को स्कूल, काॅलेज भेजना शुरू किया तय कहीं जाकर सभ्य जीवन की किरण दिखाई दी और अतीत की धुंध छँटी। बताते है कि अब गाँव में आपराधिक अतीत का कोई सबूत दिखाई नहीं देता है। सांसी समुदाय के लोग सभ्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सोचने वाली बात है कि जब कड़िया के सांसी आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सकते है तो बाँछड़ा समुदाय के लोग ऐसा क्यों नही कर सकते? इस प्रश्न के उत्तर के लिए गंभीरता से सोचा जाना चाहिए।
इसी प्रकार एड्स/एच.आई.वी. से निपटने के लिए जागरूकता ही प्रमुख हथियार साबित हो सकता है जैसा कि देश में देह व्यापार के सबसे बड़े इलाके कोलकाता के सोनागाछी की योनकर्मी महिलाओं ने किया। वहाॅं यौनकर्मी महिलाओं की जागरूकता एड्स के खिलाफ उनकी लड़ाई में वरदान साबित हो रही है। दरअसल यहाॅं की यौनकर्मियों ने पहले अपने ग्राहकों को कंडोम का इस्तेमाल करने को कहा। जो ग्राहक इस बात को नहीं मानता उसे वापस करने का निर्णय लिया गया। परंतु सवाल यह खड़ा हुआ कि यदि सभी ग्राहकों को लौटा दिया जाएगा तो यौनकर्मी महिलाओं की आजीविका कैसे चलेगी? इस प्रश्न का उत्तर ढँूढने हुए सभी ने संगठन बनाने का निर्णय लिया और तय किया गया कि जिस ग्राहक को लौटाया जाए उसे कोई नहीं ले। अंततः मजबूर होकर ग्राहकों को यौनकर्मी महिलाओं की आजीविका कैसे चलेगी ? इस प्रश्न का उत्तर ढँूढते हुए सभ ने संगठन बनाने का निर्णय लिया और तय किया गया कि जिस ग्राहक को लौटाया जाए उसे कोई नहीं ले। अंततः मजबूर होकर ग्राहकों को यौनकर्मियों की बात मानना पड़ी और इस तरह यौनकर्मियों की जागरूकता महामारी के खिलाफ लड़ाई में मुख्य हथियार बन गई। एक रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता की यौनकर्मियों में एच.आई.वी. की दर 10 प्रतिशत से भी कम है।
इन दो उदाहरणों को यहाॅं प्रस्तुत करने का उद्देश्य यही है कि एड्स जैसी महामारी के खिलाफ हर स्तर पर लड़ाई लड़ना पड़ेगी। एड्स के खतरे को टालना समस्या को और बढ़ाने के समान ही है। जब तक सबंधित प्रयास नहीं होंगे तब तक यही कहेंगे कि मंजिल अभी दूर है।
परिशिष्ट - 7
विधानसभा में पारित हुआ प्रस्ताव
बाँछड़ा समुदाय में व्याप्त परंपरागत देह व्यापार का मुद्दा मध्यप्रदेश विधानसभा में भी गँूज चुका है। इस रूढ़िवादी परंपरा को रोकने के लिए विधानसभा सर्वसमति से प्रस्ताव भी पारित कर चुकी ळै। 23 फरवरी 1983 को राज्य की विधानसभा में इस मुद्दे को लेकर लंबी बहस हुई जिसमें विभिन्न सदस्यों ने भाग लेकर बाँछड़ा समुदाय की देह व्यापार की परंपरा से जुड़े पहलुओं पर विचार, विमर्श किया। दरअसल तत्कालीन विधायक बाबूलाल गौर ने नियम 130 के अधीन चर्चा के तहत प्रस्ताव प्रस्तुत किया था कि ‘रतलाम और मंदसौर’ के राजस्थान से लगे हिस्सों में बाँछड़ा जाति की लगभग 200 बस्तियों में उक्त समाज की ज्येष्ट पुत्री को उक्त समुदाय की रीति रस्म और परंपरा के अनुसार वेश्वावृत्ति का शर्मनाक व्यापार अपनाना पड़ रहा है। उक्त प्रथा समाप्त करने हेतु शासन आवश्यक उपाय करें।
इस समस्या के प्रति जनप्रतिनिधियों का क्या नजरिया है? यह जानने के लिए उस दिन विधानसभा में हुई चर्चा पर नजर डालना उचित होगा।
श्री गौर ने प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए कहा कि बाँछड़ा समुदाय में सबसे बड़ी लड़की को समुदाय की परंपरा के अनुसार वेश्वावृत्ति करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। समुदाय में इसके प्रति न हो कोई घृणा है न नफरत और न ही इस परंपरा के प्रति कोई प्रायश्चित। यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। जब भी उस बहन को कोई पुत्र पैदा होता है वह अपने पिता का नाम नहीं लिखता माता का नाम लिखता है। सारा का सारा समाज कुरीति के अंदर, कीचड़ के अंदर फँसा हुआ है। उन्होंने इस परंपरा का कारण बताते हुए कहा कि गरीबी, अशिक्षा के कारण यह हो रहा है। कानून की कोई धारा इस परंपरा को रोक नहीं सकती है। श्री गौर ने कहा कि इस कुप्रथा की ओर सबसे पहले सदस्य सखाराम पटेल का ध्यान गया और उन्होंने इस समस्या के समाधान हेतु प्रयास भी किए लेकिन सरकार की ओर से पिछले 30 वर्षो में इस कुप्रथा को समाप्त करने की ओर कोई कदम नहीं उठाया गया और न ही प्रयत्न किया गया उन्होंने कहा कि उस सारे क्षेत्र में इस कुप्रथा के कारण आसामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है। ट्रांसपोर्ट व्यापारी, ड्रायवर अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए यहाँ आते हैं। सारे काम खुले रूप से चलते हैं। यह कानून और व्यवस्था का सवाल है। इस काले कारनामें पर प्रतिबंध लगाया जाए। उस क्षेत्र को शासन द्वारा एक विशेष क्षेत्र घोषित किया जाए तथा वहाँ सामाजिक सुधारक भेजे जाएँ ताकि माँ-बहिनों को इससे मुक्ति मिल सकें। इसके लिए अच्छी योजना बनाई जाए।
धमतरी की तक्लालीन विधायक श्रीमती जया बेन का कहना था कि वेश्वावृत्ति निवारण के लिए कानून बना हुआ है लेकिन जब तक सामाजिक कार्यकर्ता, समाज के उच्च वर्ग के लोग आगे नहीं आएँगे तब तक इन कुरीतियों को दूर नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि बाँछड़ा समुदाय की महिलाओं के लिए रतलाम
तथा मंदसौर जिले में एक अच्छा आश्रम खोला जाना चाहिए। उनके बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था होना चाहिए। सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए सिर्फ शासकीय सहूलियतें यथेष्ट नहीं है, इस हेतु सामाजिक स्तर पर भी प्रयास किए जाना चाहिए।
मलेहरा के कपूरचंद ध्रुवारा ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि प्रशासन ने इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया है। सरकार को इस ओर बारीकी से गौर करना चाहिए तथा समुदाय की बड़ी लड़की को नौकरी या अन्य सुविधा प्रदान करना चाहिए ताकि उन्हें गलत राह पर चलने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा।
मनासा के तत्कालीन विधायक बालकवि बैरागी ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बाँछड़ा समुदाय में तेजी से बदलाव आ रहा है। वे हमारे वोटर हैं, चुनाव के समय हम वहाॅं जाते हैं और जाकर चर्चा का विषय बन जाते हैं। उन्होनें कहा कि उनके कोई दलाल नहीं है। वे किसी के पीछे नहीं जाती है, वे यह कार्य सिर्फ आर्थिक आधार पर करती हैं, ऐसा भी नहीं है। यदि आप इन परिवारों में जाएँगे तो पाएँगे कि इनके पक्के मकान हैं, उनके पास खेती है, धंधे है, एक बात से जरूर त्रस्त है, उसी की ओर में ध्यान आकर्षित करना चाहता हॅंू। सामान्यतः पुलिस आज भी मानती है कि वे अपराधी प्रवृत्ति के लोग है, उधर कोई अपराध होता है तो उनको तत्काल पकड़ते हैं, उसके फलस्वरूप वे अपराधी हो जाते हैं। दूसरे यह केवल बाँछड़ा जाति का प्रश्न नहीं है। कई जिलों में कई जातियाॅं ऐसी हैं, जिनमें ऐसा होता है, कहीं बड़ी लड़की को छोड़ा जाता है, कहीं छोटी लड़की को। समाज की जिस सड़ांध को कोई स्वीकार नहीं करता, उसको स्वीकार करके ये लोग आउटलेट देते हैं। यह गंदा काम है, इसे खत्म करना चाहिए। जब तक हम उनको विश्वास में नहीं लेंगे या कमेटियों के जरिए चर्चा नहीं करेंगे, यह खत्म नहीं होगा। श्री बैरागी ने कहा कि आज तक भी किसी ने ऐसा नहीं देखा कि किसी महिला ने यह शिकायत की हो कि किसी दलाल ने आकर ऐसा काम किया या कहा कि ऐसा काम करना पड़ेगा। यह सच है कि उनके कई लोग सड़को पर आकर झोपड़ी बनाकर बेठ गए वरना इस जाति से कोई अपराध का सिलसिला शुरू नहीं हुआ था। श्री बैरागी ने सुझाव प्रस्तुत करते हुए कहा कि मैंने कई परिवारों से बात की और उन्होंने बड़ी लड़की को हमें सौंप दिया, आज वे नर्स बन गई है। यदि सरकार भी इस प्रकार कोई कदम उठाकर बड़ी लड़की को लेकर नर्स या दाई बना देगी तो इस कुकर्म से वे परिवार बच जाएँगे। आज वे लड़कियाँ पढ़ने लगी हैं और पढ़ने के साथ-साथ उन्हें इससे घृणा पैदा हुई है। वे देखती है कि ये गंदा काम है। इस मामले में सिर्फ कानून से काम नहीं चलेगा, समझाइश से काम चलेगा विकास की एजेंसी कायम कर देनी चाहिए। जो उनका वाबिज कर्ज दे सके। भैंस के लिए, सामाजिक कामों के लिए ताकि वे कृषि की ओर प्रवृत्त हों। कृषि की तरफ अभी ये लोग विश्वास नहीं करते। इस पर आगे बढ़कर काम करना पड़ेगा। इनके परिवार के किसी एक सदस्य को कम से कम योग्यता के अधार पर किसी सरकारी नौकरी में ले लेंगे तो ये काफी राहत महसूस करेंगे।
पंधाना के तत्कालीन विधायक सखाराम पटेल ने कहा कि बाँछड़ा समुदाय के डेरों पर इन लोगों की समस्याएॅं जानने के लिए अधिकारी वर्ग हिचक व सामाजिक भय के कारण नहीं जा पाते है। प्रशासन की पहुॅंच लंगड़ी हो जाए तो समाज में परिवर्तन कैसे हो सकता है? बाँछड़ा समुदाय में आज भी शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ है। बमुश्किल कुछ लोग नाम लिख पाते हैं। साक्षरता नाम मात्र है। केवल आठ प्रतिशत। बागाखेड़ा जिला रतलाम में बी.ए. तक पढ़ा शिक्षित लिपिक है। उसी परिवार में कन्या मेट्रिक है लेकिन जो ज्येष्ठ कन्या के रूप में पैदा हुई वह वैश्या बन गई है। मैंने उसकी व्यथा देखी है, उसकी भी अपेक्षाएॅं हैं, आकांक्षाएँ है। नौजवानों के भी स्वप्न हें। वे चाहते हैं कि उन्हें कोई रास्ता दिखा दें। उनके मन में इज्जत की जिंदगी जीने की आकांक्षा है। बाँछड़ा समुदाय का एक गाॅंव धनीराम सागर ने बसाया। जहाॅं पर आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित स्कूल है। समुदाय के 15 बच्चें हैं। वल्दियत में माँ का नाम लिखते हैं। श्री पटेल ने चर्चा के दौरान विश्वास जताया कि शासन इस मामले को गंभीरता से लेगा।
पिपरिया की श्रीमती सविता बेनर्जी ने कहा कि बाँछड़ा समुदाय में जो परंपरा है निश्चिित रूप से इसे खत्म करना चाहिए लेकिन इसे सिर्फ शासकीय या कानूनी तौर पर खत्म नहीं कर सकते हैं। कानून के बल पर यदि परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया तो निश्चित रूप से विद्रोह का वातावरण उत्पन्न होगा। बाँछड़ा समुदाय की कुप्रथा को दूर करने के लिए सामूहिक रूप से आंदोलन चलाने की आवश्यकता है। हम सब इन लोगों के पास जाएॅं, उनकी परिस्थितियों को देखें और उनकी जो मानसिक पीड़ा है उसे समझने का प्रयास करें। उन्हें समझाना होगा कि यह सिर्फ परंपरा से जुड़ा मामला नहीं है। उन्हें शिक्षा की सुविधा प्रदान की जाए तथा जो लोग पढ़े-लिखे हैं उन्हें शासकीय सेवा में स्थान दिया जाए तथा परंपरा के विरोध में उन्हें तैयार करें।
मंदसौर के तत्कालीन विधायक श्यामसुंदर पाटीदार ने कहा कि किसी न किसी रूप में वेश्वावृत्ति अनादिकाल से चली आ रही है और अनंत काल तक वह रहने वाल है। हमारे पुराने इतिहास में विश्वामित्र और मेनका का उल्लेख है, अगर मेनका न होती तो क्या होता? आज भी देश में और विदेशों में यह किसी न किसी रूप में है। काॅलगर्ल होती है। श्री पाटीदार ने बताया कि ग्राम पांडल्यामारू का बाँछड़ा जाति का एम.ए. पास युवक नौकरी के लिए भटक रहा है, उसे नौकरी नहीं मिली है। युवक के मुताबिक ऐसी कोई रस्म नहीं है, रीति-रिवाज नहीं है लेकिन कुछ परिवार पैसे के आकर्षण में नौजवान पुत्री को बाध्य करके धंधे में डालते हैं। हर पुत्री को बाध्य किया जाता है। यह पश्विक रास्ता है। उस क्षेत्र में कोई युवती यौवन की दहलीज पर कदम रखती है तो बस्ती के लोग सामूहिक बलात्कार करके उसको धंधे का प्रशिक्षण देते हैं और उसको मजबूर किया जाता है। वह इच्छाा से करती है, यह सही नहीं है। इस समस्या का मूल कारण आर्थिक स्थिति ही है। धनीराम सागर इस सदन के सदस्य रहे हैं, उन्होंने इनके बीच सामाजिक सुधार का कार्य किया, उन्हें उपजाऊ भूमि भी दिलाई पर जमीन का दो-चार लोगों ने ही विकास किया है और उस पर जीवनयापन कर रहे हैं। समुदाय के पुरूष निकम्मे व आसली हो गए है। शराब पीते हैं। ऐसे अड्डे पर असामाजिक तत्व आते हैं। श्री पाटीदार ने
आज इस बारे में कुछ नहीं कह सकते लेकिन जो परंपरा है उसे तोड़ा नहीं जा सकता, ऐसी बात नहीं है। यह उनकी अज्ञानता है, उनकी लाचारी है, वे गरीब तबके लोग हैं, उन्हें आज कुछ सिखाने की आवश्यकता है। कानून के द्वारा हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन यदि विशेष कानून की आवश्यकता हो तो इस समस्या के हल के लिए बनाया जाना चाहिए। इस समस्या को हल करना सिर्फ कानून के बस की बात नहीं, इसके लिए जरूरी है कि हम उनके बीच जाएॅं, समाज कल्याण विभाग उनके सुधार के लिए प्रोजेक्ट तैयार करें, उनकी आर्थिक स्थिति सुधारे, उनके बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करें तो निश्चित रूप से उनकी इस परंपरा को बदला जा सकता है।
सुवासरा के तत्कालीन विधायक चम्पालाल आर्य ने कहा कि कोई माई का लाल है जो उस समुदाय की लड़की से शादी करे ? इस समस्या को दूर करने के लिए शासन ने कोई उपाय नहीं किया है। कलेक्टर वहाॅं जाएॅं और समुदाय की लड़की की उसी तरह शादी करें जिस तरह कोई पिता अपनी लड़की की करता है। आर्य समाज को प्रोत्साहित करें कि वह उसमें अपना योगदान दे। रोड़ साइड पर बसने वाली बाँछड़ा जाति की महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जाए। ट्रक ड्रायवर पैसे लुटाते हैं, शराब, साड़ियाॅं देते हैं। नाना प्रकार के लालच देकर उनको फँसाते हैं, उनकी पंजाब में बिक्री हो रही है, मुंबई में भी बिक्री होती है। गोटेगाॅंव के रामकिशन अहिरवार ने कहा कि वेश्वावृति में लिप्त बाँछड़ा समुदाय की महिलाओं से शादी करने के लिए युवाओं को आगे आना चाहएि। इस तरह के धंधे में पुलिस का भी हाथ रहता है। पुलिस के संरक्षण में ये कोई होते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि बाँछड़ा समुदाय में रामायण व गीता के प्रबंधन प्रोत्साहित किए जाना चाहिए जिससे उनमें धार्मिक प्रवृत्ति पनपेगी और निकृष्ट कार्य से दूर हो सकेंगी।
तत्कालीन स्कूली शिक्षा राज्यमंत्री बंशीलाल धृतलहरे ने कहा कि पहले व जातियाॅं अनुसूचित जाति में नहीं आती थी लेकिन 1976 से अनुसूचित जाति में शामिल की गई। अब शासन की स्कीम का लाभ इन्हें मिल रहा है। जब तक इन समुदायों के लोगों को शिक्षित नहीं कि जाएगी तब तक इस प्रकार की कुप्रथाएॅं दूर नहीं हो पाएंगी, इसलिए यह आवश्यक है कि उनको और उनके बच्चों को शासन की ओर से आश्रम पद्धति के तहत शिक्षा दी जाए जिससे आगे चलकर वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। पशुपालन व डेयरी ये दो योजनाएॅं हैं, इन योजनाओं के तहत वे इसका लाभ लें ताकि अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकें। आवश्यकता इस बात की है कि शासन की विभिन्न योजनाओं की जानकारी समुदाय तक पहुंचाई जाए।
चर्चा के अंत में वक्तव्य देते हुए तत्कालीन समाज कल्याण राज्यमंत्री श्रीमती कमलादेवी ने सदन को विश्वास दिलाते हुए कहा कि शासन इन समस्या पर गंभीरता से विचार करेगा और जितने भी अच्छे सुझाव है उन पर विचार कर कार्यक्रम बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह सामाजिक बुराई है जिसे दूर करने के लिए शासन तीव्रगति से प्रयास कर रहा है। इसके लिए कार्यक्रम बनाए गए हैं। जैसा कि बताया गया है केवल कानून
से बुराई को दूर नहीं किया जा सकता, इसके लिए सामाजिक जाग्रति और शिक्षा को जरूरत है। समाज कल्याण विभाग की ओर सामाजिक शिक्षा व प्रौढ़ शिक्षा के कार्य पूरे प्रदेश में चलाए जा रहे है। इस बुराई को दूर करने के लिए कलापथक, साहित्य व सिनेमा के माध्यम से योजनाएॅं प्रचारित की जा रही है ताकि इनके बारे में लोगों को जानकारी मिल सके।
अंततः की गौर द्वारा रखा गया प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृति हुआ और विधानसभा ने भी माना कि बाँछड़ा समुदाय की कुप्रथा को दूर करने के लिए शासन को आवश्यकता उपाय करना चाहिए।
वर्ष 1977 से 1980 तक राज्य सरकार में मंत्री रहते हुए तथा बाद में भी बाँछड़ा समुदाय के उत्थान के लिए कार्य करने वाले सखाराम पटेल ने इस शोधार्थी को बताया कि उक्त अशासकीय प्रस्ताव का सर्वसम्मति से पारित होना ऐतिहासिक उपलब्धि थी। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि बाद में किसी सरकारी एजेंसी ने इस समस्या के प्रति इतनी गंभीरता नहीं दिखाई जितनी 20 साल पहले विधानसभा में सदस्यों ने दिखाई थी। बाद में भले ही कुछ प्रयास हुए हो जो नाकाफी रहे। उस समय जब विधानसभा में चर्चा हुई, प्रस्ताव पारित हुआ तथा मैंने बाँछड़ा समुदाय बहुत गाॅंवों का दौरा किया व वातावरण का निमार्ण हो गया, यह समस्या हाईलाइट हो गई, कई लोगों ने लेख लिखे। प्रशासनिक मशीनरी भी सक्रिय हुई। बाद में क्या हुआ इसकी जानकारी नहीं है। श्री पटेल ने कहा कि उस समय जो शुरूआत हुई थी यदि उसे आगे बढ़ाकर निरंतर प्रयास किए जाते तो आज इस समुदाय की स्थिति कुछ ओर ही होती।
बैरागी की संस्था को सराहा
जावरा, 19 सितंबर, निप्र. कृषि, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए विशेष कार्य करने वाली संस्था कृषक अनुसूचित जाति एवं जनजाति शैक्षणिक एवं सामाजिक विकास समिति हरियाखेड़ी के प्रयासों व कार्यो की देश की राष्ट्रपति ने सराहना की है। समिति अध्यक्ष बालूदास बैरागी ने बताया कि कृषक अनुसूचित जाति एवं जनजाति शैक्षणिक एवं सामाजिक विकास समिति कृषि, बागवानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में विशेष रूप से कार्य कर रही है। इसी संदर्भ में देश की महामहिम राष्ट्रपति को अवगत कराया गया था। गत दिवस राष्ट्रपति के विशेष कार्याधिकारी अर्चना दŸाा ने उपरोक्त संदर्भ में पत्रोŸार करते हुए कहा कि उक्त संस्था द्वारा अपने क्षेत्र में किए जाने वाले कार्य व प्रयास सराहनीय है। स्वयं राष्ट्रपति ने संस्था के इन उपयोगी कार्यों की सराहना करते हुए संस्था को शुभकमना दी है। श्री बैरागी ने बताया देश की महामहिम राष्ट्रपति द्वारा समिति को दिए गए इस प्रोत्साहन से जनहित के उद्देश्यों को पुरा करने में मदद मिलेगी तथा उत्साहवर्धन होगा। श्री बैरागी ने बताया कि भविष्य में भी समिति निरंतर अपने उद्देश्यों को गति प्रदान करते हुए विशेष कार्य करती रहेगी।
जिले में थम नहीं रहा एड्स का प्रकोप
जावरा। 9 सितंबर 2010। जानलेवा बीमारी एड्स मकड़जाल की तरह फैल रही है। सप्ताहभर में जावरा क्षेत्र में दो मरीज एचआईवी पाॅजिटीव पाए गए है। एक अन्य व्यक्ति को जुलाई में एड्स की पुष्टि हो चुकी है। जिले में एड्स मरीजों की संख्या 195 हो गई है जो चिंताजनक है। जागरूकता के अभाव में स्वास्थ्य की निष्क्रियता से इसका ग्राफ प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
जिले में अगस्त 2010 तक एड्स पाॅजिटिव 195 मरीज है। जावरा सरकारी अस्पताल में जांच के दौरान 1 से 8 सितंबर के बीच दो मरीज एड्स पाॅजिटिव मिले। पिछले महीने भी एक मरीज एड्स पाॅजिटीव था। अगस्त से स्थानिय सरकारी अस्पताल में लैब तकनीकिशयन की पदस्थापना हुई। इससे पहले एड्स की जांच व्यवस्था नहीं होने से लोगों को रतलाम जाना पड़ रहा था। हालंकि यहां एड्स काउंसलर सालभर से सेवारत है लेकिन पूरी जांच व्यवस्था नहीं होने से स्थानीय स्तर पर अगस्त से पहले एड्स मरीजों की पुष्टि नहीं हुई। इसका मतलब यह नहीं कि जावरा क्षेत्र में एड्स के मरीज नहीं है बल्कि जिले के 195 में से लगभग 70 मीरज जावरा क्षेत्र के हैं। जावरा से मंदसौर के बीच फोरलेन किनारे गांवों में बाँछड़ा बस्ती है। जहां चलने वाले देह व्यापार के कारण क्षेत्र में एड्स रोगियों की संख्या बढ़ने की आशंका है। एड्स के मरीज जावरा नगर सहित आसपास क्षेत्र के अन्य गांवों में भी है।
आंकड़ों से ज्यादा है एड्स मरीज - जो आंकड़े उपलब्ध हुए वे स्वास्थ्य विभाग के अनुसार है लेकिन वास्तविकता में इन आंकड़ों से ज्यादा मरीज एड्स पाॅजिटिव है। कई लोग इस डर से एड्स की जांच नहीं करवाते कि पाॅजिटिव मिलने पर कहीं समाज उनका बहिष्कार ही न कर दें। सरकारी अस्पताल में सेवारत एड्स काउंसलर कीर्ति सिंघई के अनुसार जरूरी नहीं कि एड्स केवल शारीरिक संबंध बनाने से हो। अन्य तीन कारणों से भी एड्स फैलता है इसलिए लोगों को संकोच की बजाय आगे रहकर जांच कराना चाहिए और जो लोग एड्स पाॅजिटिव है वे स्वयं के साथ ही दूसरों को इससे सचेत करें। जानकारी के अभाव में कई बार जाने अनजाने एड्स पाॅजिटिव मरीज दूसरों में इस गंभीर बीमारी का कारण बन जाता है इसलिए जांच होने पर वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाएगी। यह स्वैच्छिक जांच होने से प्रशासनिक अमला भी किसी पर इसके लिए दबाव नहीं बना सकता।
ऐसे होता है एड्स पर कंट्रोल - अस्पताल में एड्स किट से जांच उपरांत मरीज के एड्स पाॅजिटिव की पुष्टि के बाद उसके रक्त को एआरडी यानी एंटी रेस्ट्रो टैस्ट सेंटर उज्जैन रैफर किया जाता है। जहां यदि खून में सीडी फाॅर सेल यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता (वायरस व बैक्टिरिया से लड़ने वाली कोशिकाओं की तादाद) 250 से कम है वो ही उसे इलाज के लिए दवा उपलब्ध कराई जाती है अन्यथा नहीं क्योंकि सामान्य व्यक्ति में सीडी फाॅर सेल की मात्रा 800 या इससे अधिक होती है।
एड्स एक नजर में - एड्स संक्रमक बीमारी है जो एक मरीज से दूसरे में फैलती है। सन 1988 में प्रदेश में एड्स का पहला मामला प्रकाश में आया इसके बाद 1992 में मध्यप्रदेश सरकार ने संचालनालय चिकित्सा शिक्षा के तहत एड्स कंट्रोल सेल का गठन किया। स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से विभिन्न जागरूकता व एड्स नियंत्रण कार्यक्रम चलाए गए। कई एनजीओ भी इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। एड्स होने के चार प्रमुख काराण है . पहला असुरक्षित यौन संबंध से, दूसरा गर्भवती माता से उसके होने वाले शिशु से प्रसव के दौरान, तीसरा संक्रमित सुई अथवा सीरिज से और चैथा संक्रमित रक्त से।
प्रयास जारी हैं एड्स से निजात पाने का - बैरागी
जावरा (निप्र)। कृषक अनुसूचित जाति एवं जनजाति व शैक्षणिक एवं सामाजिक विकास समिति हरियाखेड़ा के क्षेत्रीय कार्यानलय उज्ज्ेन की 8 सदस्यीय टीम ने चलो एड्स निजात का एक प्रयास अंतर्गत 23 अक्टूबर से 12 सिंबर तक रतलाम, मंदसौर एवं नीमच जिले के बांछड़ा समुदायों में भ्रमण कर इनके परिवारों से मिले।
रतलाम जिले की ढोढर 71, ढोढर रूंडी 38, मोयाखेड़ा 39, पिपलोदा जोधा 28, पिपलौदी 7, हनुमंतिया 12, परवलिया 27, बागाखेड़ा 26, माननखेड़ा 38, चिकलाना 26, सेमलिया 15, इसी तरह मंदसोर जिले की तहसील मंदसौर के गांव पाड़लीया मारू 40, उरधारी उर्फ निरधारी 27, वानीखेड़ी 30, लिग्बाखेड़ी 23, भासाखेड़ी 13, रूपावली 34, कालवा 21, निरधारी 25, लखमाखेड़ी 24 सहित कई गांवों में सामाजिक समिति की आठ सदस्यीय टीमें द्वारा सर्वे कर 2859 बाॅंछड़ा समुदाय की महिलाओं से बातचीत के दौरान देह व्यापार में लिप्त महिलाओं से एड्स की जागरूकता के बारे में चर्चा की। साथ ही इन समुदायों के घर-घर जाकर इन परिवारों के प्रत्येक सदस्य से मिलते हुए उनसे प्रश्न पूछे गए कि वे देह व्यापार में लिप्त क्यों है। बाॅंछड़ा समुदाय की महिला सदस्य नगमा, आशा, हेमा, पूजा, राजीया, शकीना, करीना, पिंकी आदि नाम की महिलाओं ने कहा कि देह व्यापार तो हमारा पारंपरिक व्यवसाय है। पूजा कहा कि इस व्यवसाय से हम दिनभर में 400-500 रूपए प्रतिदिन बड़ी ही सहजता से कमा लेते हैं। आशा ने उदहारण देते हुए कहा कि हिंग लगे न फिटकरी, रंग आवे चैला। टीम के सदस्यों ने करीना, सकीना, पिंकी आदि महिलाओं को बताया कि यदि सिलाई, कढ़ाई बुनाई या ब्यूटी पार्लर एवं कोई घरेलू काम करें, तब केंद्र व राज्य शासन आप लोगों के लिए स्वयं के व्यवसाय हेतु कदम उठाया जा सकता है। सामाजिक समिति ने प्रदेश में 17 हजार से ज्यादा लोग एचआईवी पाॅजिटिव पर गहराई से विचार करते हुए दुख प्रकट किया है।
प्रदेश में 17 हजार से ज्यादा लोग एचआईवी पाॅजीटिव
भोपाल। एड्स के नाम पर केंद्र और राज्य सरकार करोड़ों रूपए खर्च कर रही है। बावजूद इसके प्रदेश में एचआईवी पाॅजीटिव मरीजों की संख्या में वर्तमान में 1ृ7 हजार से ज्यादा हो गई है। चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो यदि यही हालात रहे तो आने वाले दो-तीन सालों में यह आंकड़ा 20 हजार को पार कर सकता है। एक सरकारी चिकित्सा विशेषज्ञ जो पूर्व में एड्स से संबंधित गतिविधियों का काम देखते थे, उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि एड्स के लिए यदि 100 रूपए खर्च होते हैं, तो वास्तव में एड्स की रोकथाम पर मात्र 5 रूपए ही खर्च होते हैं और उसके परिणाम हमारे सामने है। प्रदेश में एड्स कंट्रोल सोसायटी ने आधे से अधिक कार्य स्वैच्छिक संस्थाओं को तो दिया है, किंतु उचित ढंग से उसकी माॅनीटरिंग न होने से स्वैच्छिक संस्थाएं सरकार से पैसा तो लेती है, किंतु हकीकत में काम नहीं हो रहा है।
कागजी प्रगति से राज्य और केन्द्र के अधिकारी खुश है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, 17,500 एचआईवी मरीजों में 71 प्रतिशत पुरूष हैं, वहीं 29 प्रतिशत महिलाएं हैं। 78 प्रतिशत एड्स के रोगी 21 और 40 की आयु के हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री महेन्द्र हार्डिया ने मंगलवार को बुलाई गई एड्स के गतिविधियों की समीक्षा बैठक में इन चैंकाने वाले आंकड़ों के बावजूद संतोष व्यक्त किया।

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