हमें नहीं मालूम लोकायुक्त ने कहां-कहां छापे मारे

भोपाल। विधानसभा में आज सरकार की ओर से विधायक आरिफ अकील के सवाल का जो जबाव आया, उससे तो यही प्रतीत होता है कि सरकार को यही नहीं मालूम कि लोकायुक्त ने कहां कहां छापे मारे। श्री अकील ने पूछा था कि 2008 से लेकर अब तक लोकायुक्त ने कितने मंत्रियों, आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के यहां छापे मारे।


पढ़िए क्या कुछ बयां कर रही है यह रिपोर्ट:—

पिछले चार साल में राज्य मंत्रियों व आईपीएस अफसरों के यहां लोकायुक्त द्वारा मारे गए छापों की जानकारी निरंक है। यह जवाब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस विधायक आरिफ अकील के प्रश्न पर लिखित में दिया। अकील ने पूछा था कि वर्ष 2008 से अब तक कितने आईएएस, आईपीएस और राज्य मंत्रियों के यहां लोकायुक्त ने छापा कार्रवाई में कितनी संपत्ति का खुलासा हुआ है? ऐसे प्रकरणों में कार्रवाई कब तक पूरी कर ली जाएगी?


इसके लिखित जवाब में चौहान ने बताया कि अब तक दो आईएएस अफसरों अरविंद और टीनू जोशी के सरकारी आवास पर लोकायुक्त ने छापा मार कर 41 करोड़ 87 लाख रुपए की चल-अचल संपत्ति का खुलासा किया है। लेकिन आईपीएस और राज्य मंत्रियों के संबंध में जानकारी निरंक है।

उन्होंने बताया कि दो आईएएस अफसरों के खिलाफ जांच में आरोप सिद्ध होने पर इनके विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति का प्रस्ताव सामान्य प्रशासन विभाग को इसी साल अक्टूबर माह में प्राप्त हुआ है। इस प्रकरण में प्रशासकीय निर्णय लेकर प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा।

महिला आरक्षण के नाम पर पुरुषों को फायदा: रतलाम से निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा ने आरोप लगाया है कि मप्र लोक सेवा आयोग द्वारा विभिन्न परीक्षाओं में महिला आरक्षण के नाम पर पुरुषों को फायदा पहुंचाया है। विधानसभा परिसर में मीडिया से बातचीत करते हुए सकलेचा ने कहा कि पिछले पांच साल में आयोजित परीक्षाओं में 2 सौ से अधिक महिलाओं को अपने ही वर्ग में पुरुषों से ज्यादा अंक लाने के बाद भी इंटरव्यू के लिए नहीं बुलाया गया।

उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले में राज्य महिला आयोग ने लोक सेवा आयोग को पत्र भी लिखे थे, लेकिन ये पत्र रद्दी की टोकरी में डाल दिया है।

इसको लेकर सकलेचा ने विधानसभा में प्रश्न भी लगाया था। इसके जवाब में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लिखित जवाब में बताया कि आयोग का निर्णय संविधान की धाराओं के अनुकूल है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्णयों को ध्यान में रखा गया है। इससे पुरानी और नई प्रणाली से आरक्षित पदों के चयन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
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