भोपाल, 1 दिसंबर 2025: ब्राह्मणों के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देना फैशन हो गया है लेकिन अब मध्य प्रदेश के ब्राह्मण समाज ने भी सम्मान की रक्षा में संगठित होना सीख लिया है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी आज माना कि, ब्राह्मणों के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। फिर चाहे इस प्रकार की पोस्टिंग किसी प्राइवेट व्हाट्सएप ग्रुप में क्यों ना हुई हो।
मामले के मुख्य किरदार
इस मामले में दो मुख्य पक्ष थे, जिनकी दलीलें अदालत ने सुनीं:
याचिकाकर्ता (Petitioner): बुद्ध प्रकाश बौद्ध - वह व्यक्ति जिस पर व्हाट्सएप पर एक विवादास्पद संदेश भेजने का आरोप लगाया गया था।
प्रतिवादी (Respondent): मध्य प्रदेश राज्य - सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील, जो तर्क दे रहे थे कि मामला आगे बढ़ना चाहिए।
अब जब हम जानते हैं कि इस मामले में कौन शामिल था, यह पूरा विवाद शुरू कैसे हुआ:-
2. विवाद का कारण क्या था?
यह पूरा मामला एक व्हाट्सएप संदेश से शुरू हुआ। बुद्ध प्रकाश बौद्ध पर आरोप था कि उन्होंने अपने व्हाट्सएप समूह, "बी पी बौद्ध पत्रकार न्यूज ग्रुप" में एक ऐसा संदेश पोस्ट किया था जिसमें, शिकायतकर्ता मध्य प्रदेश सरकार के अनुसार, हिंदू धर्म और ब्राह्मण समुदाय के बारे में अपमानजनक और भ्रामक टिप्पणियां थीं जिनसे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुईं।
संदेश में क्या कहा गया था?
- शिकायत में उल्लिखित संदेश में किए गए मुख्य दावे इस प्रकार थे:
- एक अच्छा हिंदू होने के लिए गोमांस खाना आवश्यक था।
- कुछ अवसरों पर बैल की बलि और मांस का सेवन अनिवार्य था।
- ब्राह्मण नियमित रूप से गोमांस का सेवन करते थे।
- विभिन्न धार्मिक समारोहों में कथित तौर पर गायों और बैलों की बलि दी जाती थी।
- संदेश में ब्राह्मण समुदाय को निशाना बनाते हुए कई आपत्तिजनक टिप्पणियां भी थीं।
यह संदेश इसलिए आपत्तिजनक माना गया क्योंकि हिंदू धर्म में गाय को एक पवित्र पशु के रूप में पूजा जाता है, और इस तरह के दावों ने शिकायतकर्ता और समुदाय के अन्य सदस्यों की धार्मिक भावनाओं को गहरी ठेस पहुँचाई। पुलिस ने मामला दर्ज किया तो पुलिस की कार्रवाई को रोकने के लिए बुद्ध प्रकाश बौद्ध हाईकोर्ट पहुंच गया। जहां दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं।
3. अदालत में क्या तर्क दिए गए?
अदालत में, बुद्ध प्रकाश बौद्ध और राज्य सरकार दोनों के वकीलों ने अपने-अपने पक्ष रखे। नीचे दी गई तालिका उनके मुख्य तर्कों को दर्शाती है:
बुद्ध प्रकाश vs मध्य प्रदेश राज्य सरकार
1. अकादमिक पोस्ट: उन्होंने केवल डॉ. सुरेंद्र कुमार शर्मा ('अज्ञात') द्वारा लिखी गई एक पुस्तक के अंश पोस्ट किए थे, जो अकादमिक प्रकृति के थे।
1. भड़काऊ सामग्री: संदेश जानबूझकर प्रकाशित किया गया था और यह अत्यधिक भड़काऊ और उत्तेजक था।
2. निजी समूह: यह संदेश एक निजी व्हाट्सएप समूह में साझा किया गया था, सार्वजनिक मंच पर नहीं।
2. धार्मिक भावनाओं को ठेस: यह सामग्री धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और सार्वजनिक शांति भंग करने में सक्षम थी।
3. पुलिस की जवाबी कार्रवाई: यह मामला पुलिस द्वारा जवाबी कार्रवाई के रूप में दर्ज किया गया था क्योंकि उन्होंने पुलिस की ज्यादतियों पर रिपोर्टिंग की थी।
3. जानबूझकर किया गया कृत्य: यह कृत्य दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया गया था।
इन परस्पर विरोधी दलीलों के साथ, न्यायाधीश की भूमिका यह तय करना नहीं थी कि कौन सही है, बल्कि केवल यह निर्धारित करना था कि क्या जांच को आगे बढ़ने देने के लिए FIR में पर्याप्त आधार मौजूद हैं।
4. न्यायाधीश का निर्णय और तर्क
न्यायाधीश, जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के ने यह फैसला नहीं सुनाया कि बुद्ध प्रकाश बौद्ध दोषी थे या निर्दोष। उनका निर्णय केवल इस बारे में था कि क्या उनके खिलाफ दर्ज की गई FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) को रद्द किया जाना चाहिए और जांच रोक दी जानी चाहिए। याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 (Article 226) के तहत उच्च न्यायालय से अपनी असाधारण शक्तियों का उपयोग करके FIR को रद्द करने का अनुरोध किया था। न्यायाधीश ने निम्नलिखित प्रमुख कारणों के आधार पर अपना निर्णय दिया:
1. प्रथम दृष्टया मामला (Prima Facie Case): अदालत ने कहा कि FIR में दिए गए आरोपों को देखने पर, पहली नज़र में यह लगता है कि अपराध के तत्व मौजूद हैं। इसलिए, जांच को आगे बढ़ने देना चाहिए।
2. इरादे का सवाल: इस प्रारंभिक चरण में यह तय नहीं किया जा सकता कि संदेश अच्छे इरादे से पोस्ट किया गया था या दुर्भावनापूर्ण इरादे से। इसका पता जांच के दौरान सबूतों के आधार पर चलेगा।
3. दुर्भावना का आरोप (Plea of Mala Fides): याचिकाकर्ता का यह दावा कि यह मामला पुलिस की जवाबी कार्रवाई है, एक 'माला फाइड' (mala fides) का आरोप है, जिसका अर्थ है दुर्भावना या बुरे इरादे से की गई कार्रवाई। अदालत ने कहा कि यह एक तथ्य का सवाल है, जिसे बिना सबूत के इस स्तर पर तय नहीं किया जा सकता।
इस तर्क के आधार पर, अदालत अपने अंतिम निष्कर्ष पर पहुंची।
5. अंतिम परिणाम: पुलिस कार्रवाई के लिए स्वतंत्र
अदालत ने बुद्ध प्रकाश बौद्ध की याचिका खारिज कर दी और उनके खिलाफ FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया। अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह मामला ऐसा नहीं था जिसमें अपनी असाधारण शक्तियों का उपयोग करना उचित हो, खासकर जब जांच अभी प्रारंभिक चरण में थी।
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