भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 72 यौन अपराधों की पीड़ितों (victims) की पहचान को सुरक्षित रखने और उसे गोपनीय बनाए रखने से संबंधित प्रावधान करती है। यह धारा पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 228A के उपबंधों पर आधारित है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 72 के बारे में विस्तृत जानकारी
1. पहचान उजागर करने पर रोक (Prohibition of Disclosure)
धारा 72(1) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसी पीड़िता का नाम या ऐसी कोई भी जानकारी (ऑफलाइन अथवा ऑफलाइन) छापता या प्रकाशित (prints or publishes) करता है जिससे उसकी पहचान उजागर हो सके, तो वह अपराध माना जाएगा। यह उन पीड़िताओं का संरक्षण करती है जिनके खिलाफ निम्नलिखित धाराओं के तहत अपराध हुआ हो:
• धारा 64 से 71: इसमें बलात्कार (Rape), सामूहिक बलात्कार (Gang Rape), शादी के झूठे वादे पर यौन संबंध, और इन अपराधों को दोहराने वाले अपराधियों से जुड़े मामले शामिल हैं।
The punishment is prescribed under Section 72 of the BNS
इस धारा का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को निम्नलिखित दंड दिया जा सकता है:
• कारावास: जिसकी अवधि दो वर्ष तक हो सकती है।
• जुर्माना: कारावास के साथ-साथ वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
Exceptions to Section 72 of the BNS
धारा 72(2) के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में पीड़िता की पहचान उजागर करना दंडनीय नहीं माना जाता है:
• पुलिस जांच के लिए: यदि पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी या जांच अधिकारी ने जांच के उद्देश्य से नेक नीयती (good faith) के साथ लिखित में ऐसा करने का आदेश दिया हो।
• पीड़िता की लिखित अनुमति: यदि पीड़िता स्वयं लिखित में अपनी पहचान उजागर करने की अनुमति (authorization in writing) देती है।
• परिजनों की अनुमति: यदि पीड़िता मृत है, नाबालिग (child) है या मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो उसका निकटतम संबंधी (next of kin) किसी मान्यता प्राप्त कल्याणकारी संस्थान (recognised welfare institution) के अध्यक्ष या सचिव को लिखित अनुमति दे सकता है।
उदाहरण सहित स्पष्टीकरण:
• उदाहरण 1 (उल्लंघन): मान लीजिए किसी गांव में बलात्कार की घटना होती है। एक स्थानीय पत्रकार अपनी न्यूज़ में, यह स्थानीय नेता अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में पीड़िता का असली नाम, उसके पिता का नाम और उसके घर का सटीक पता लिख देता है। यहाँ पत्रकार अथवा नेता ने धारा 72 का उल्लंघन किया है क्योंकि उसने ऐसी सामग्री प्रकाशित की जिससे पीड़िता की पहचान सार्वजनिक हो गई। ऐसे व्यक्ति को 2 साल जेल की सजा सुनाई जाएगी।
• उदाहरण 2 (अपवाद - "Authorization in writing"): यदि कोई पीड़िता न्याय के लिए जागरूकता फैलाना चाहती है और वह खुद लिखित रूप में एक एनजीओ (NGO) को अपना नाम इस्तेमाल करने की अनुमति देती है, तो वह एनजीओ धारा 72 के तहत दोषी नहीं माना जाएगा।
• उदाहरण 3 (पुलिस कार्यवाही): यदि बलात्कार पीड़िता, लापता भी है। पुलिस को पीड़िता की तलाश के लिए उसका फोटो जारी करना आवश्यक है और जांच अधिकारी इसके लिए लिखित आदेश जारी करता है, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा।
विशेष नोट: धारा 73 के तहत, अदालत की पूर्व अनुमति के बिना ऐसी किसी भी अदालती कार्यवाही की सामग्री छापना भी दंडनीय है, हालांकि उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णयों का प्रकाशन अपराध नहीं माना जाता। लेखक: उपदेश अवस्थी (विधि सलाहकार एवं पत्रकार)।
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