नई दिल्ली, 21 दिसंबर 2025: मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मदुरै नगर निगम को अपने पूर्व स्थायी वकील पी. थिरुमलाई को 13.05 लाख रुपये की बकाया फीस का भुगतान करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने 19 दिसंबर, 2025 को सुनाए गए अपने आदेश में, "कर्मचारी को उसका पसीना सूखने से पहले भुगतान करो" के पैगंबर मोहम्मद के प्रसिद्ध उपदेश का हवाला दिया, और इस सिद्धांत को श्रम न्यायशास्त्र में निष्पक्षता का एक सार्वभौमिक पहलू बताया।
सरकारी वकीलों को दिए जाने वाले शुल्क पर टिप्पणी
यह मामला 1992 से 2006 तक निगम के लिए 818 मामलों में प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के अवैतनिक शुल्क से संबंधित है। न्यायालय ने न केवल भुगतान में देरी के लिए नगर निकाय की आलोचना की, बल्कि सरकारी वकीलों को दिए जाने वाले शुल्क पर एक व्यापक टिप्पणी भी की, जिसमें अतिरिक्त महाधिवक्ताओं द्वारा छोटे-मोटे मामले संभालने और वरिष्ठ वकीलों को अत्यधिक भुगतान करने की प्रथा पर सवाल उठाया गया। अदालत ने लॉ अफसरों को दी जाने वाली फीस का लेखा-जोखा करने का भी आह्वान किया।
मामले की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता: पी. थिरुमलाई, मदुरै नगर निगम के पूर्व स्थायी वकील।
- सेवा अवधि: 1992 से 2006 तक (14 वर्ष)।
- मामलों की संख्या: याचिकाकर्ता ने निगम की ओर से कुल 818 मामलों में प्रतिनिधित्व किया।
वित्तीय विवाद:
- कुल देय शुल्क: ₹14.07 लाख
- भुगतान की गई राशि: ₹1.02 लाख
- बकाया राशि: ₹13.05 लाख
याचिकाकर्ता की स्थिति: अदालत ने दर्ज किया कि वकील वर्तमान में "बेहद दयनीय स्थिति" में हैं और अपने दावों को साबित करने के लिए निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त करने का खर्च भी वहन नहीं कर सकते हैं।
न्यायालय का निर्णय और प्रमुख तर्क
न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया और निगम को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया। फैसले का आधार श्रम न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर टिका था।
मुख्य न्यायिक सिद्धांत
न्यायालय ने अपने फैसले को सही ठहराने के लिए पैगंबर मोहम्मद के एक प्रसिद्ध कथन का हवाला दिया:
"أَعْطُوا الْأَجِيرَ أَجْرَهُ قَبْلَ أَنْ يَجِفَّ عَرَقُهُ"
"मजदूर को उसकी मजदूरी उसका पसीना सूखने से पहले दे दो।"
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने इस सिद्धांत पर जोर देते हुए टिप्पणी की, "यह सिद्धांत निष्पक्षता का एक पहलू मात्र है और श्रम न्यायशास्त्र में सर्वथा लागू होता है। इसे वर्तमान मामले में भी लागू किया जा सकता है।" इस उद्धरण का उपयोग काम के बदले तत्काल और उचित पारिश्रमिक के महत्व को रेखांकित करने के लिए किया गया।
व्यापक न्यायिक टिप्पणियाँ और आलोचना
निर्णय केवल इस विशिष्ट मामले तक ही सीमित नहीं था, बल्कि न्यायाधीश ने सार्वजनिक धन से वकीलों को भुगतान करने की प्रणाली पर भी व्यापक टिप्पणियाँ कीं।
1. नगर निगम के आचरण की आलोचना
अदालत ने भुगतान में अत्यधिक देरी के लिए मदुरै नगर निगम की कड़ी आलोचना की, जो कि उनके पूर्व वकील के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने में विफलता को दर्शाता है।
2. वरिष्ठ वकीलों को अत्यधिक भुगतान
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने निगम के आचरण और अन्य सार्वजनिक संस्थानों के बीच एक विरोधाभास प्रस्तुत किया। उन्होंने उदाहरण दिया:
- विश्वविद्यालय अक्सर यह दलील देते हैं कि उनकी वित्तीय स्थिति खराब है, जिससे वे अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों का बकाया भुगतान करने में असमर्थ हैं।
- इसके बावजूद, वही विश्वविद्यालय अपने वकीलों को "भारी शुल्क" देने में कोई कठिनाई महसूस नहीं करते हैं, जिसमें वरिष्ठ वकीलों को प्रति पेशी ₹4 लाख तक का भुगतान किया जाता है।
3. सरकारी वकीलों की भूमिका और फीस का ऑडिट
न्यायाधीश ने सरकारी कानूनी प्रणाली में प्रचलित प्रथाओं पर भी टिप्पणी की:
- उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अतिरिक्त महाधिवक्ता (Additional Advocate General) अक्सर ऐसे छोटे-मोटे मामलों में पेश होते हैं जिन्हें एक नौसिखिया सरकारी वकील भी संभाल सकता है।
- उन्होंने कहा, "यह सब कुछ मामूली पैसों के लिए। उपस्थिति दर्ज कराना पैसों का मामला है।"
- इस प्रणाली की आलोचना करते हुए, उन्होंने एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया: "अब समय आ गया है कि लॉ ऑफिसरों को दी जाने वाली फीस के संबंध में लेखा-जोखा किया जाए।"
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