नई दिल्ली, 8 दिसंबर 2025: सरकारी कर्मचारियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक लैंडमार्क जजमेंट दिया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि सरकारी कर्मचारियों के विवाह के बाद, उसका जनरल प्रोविडेंट फंड (GPF) नॉमिनेशन अपने आप invalid हो जाता है। ऐसी स्थिति में कर्मचारी की मृत्यु होने पर GPF की पूरी राशि पत्नी और उत्तराधिकारी (माता-पिता) के बीच बराबर-बराबर बंट जाएगी।
SMT. BOLLA MALATHI VERSUS B. SUGUNA AND ORS.
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने एक केस में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया और सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) के उस आदेश को बहाल कर दिया जिसमें GPF की रकम मृतक कर्मचारी की पत्नी और मां के बीच आधी-आधी बांटने को कहा गया था।
सिर्फ नॉमिनेशन होने से मां को पत्नी से ज्यादा हक नहीं मिल जाता
कोर्ट ने कहा, “जैसे ही कर्मचारी शादी करता है या परिवार बनाता है, माता-पिता के नाम पुराना नॉमिनेशन खत्म हो जाता है।” कोर्ट ने 1984 के मशहूर केस सरबती देवी बनाम उषा देवी का हवाला देते हुए दोहराया कि सिर्फ नॉमिनेशन होने से मां को पत्नी से ज्यादा हक नहीं मिल जाता।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने साफ निर्देश दिया कि मृतक कर्मचारी का GPF अब उसकी पत्नी (अपीलेंट) और मां (रेस्पोंडेंट नंबर-1) के बीच बराबर बांटा जाए।
शादी होते ही पुराना नॉमिनेशन खत्म हो जाता है
यह फैसला सभी सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्यादातर लोग अविवाहित रहते हुए माता-पिता को ही GPF का नॉमिनी बनाते हैं, लेकिन शादी के बाद वे नया नॉमिनेशन अपडेट करना भूल जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि नया नॉमिनेशन कराना जरूरी नहीं, शादी होते ही पुराना नॉमिनेशन कानूनन खत्म हो जाता है और राशि परिवार के सदस्यों में बराबर बंटती है।
अतिरिक्त जानकारी: इसी तरह का नियम Employees’ Provident Fund (EPF) और ग्रेच्युटी में भी लागू होता है, हालांकि वहां कुछ मामलों में नॉमिनेशन को प्राथमिकता मिलती है, लेकिन GPF (केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए) में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अब अंतिम कानूनी स्थिति है।
