भोपाल, 21 दिसंबर 2025: असाध्य रोगों के इलाज के लिए मध्य प्रदेश के घने जंगलों से लाई गई जड़ी-बूटियों और वन उत्पादों की बिक्री के लिए आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय वन मेला की लोकप्रियता काफी घट गई है। पब्लिक में इसको लेकर कोई उत्साह नहीं है। जबकि एक समय ऐसा हुआ करता था जब लोग जड़ी बूटियां के लिए इस मेले का साल भर तक इंतजार करते थे।
अंतर्राष्ट्रीय वन मेला में दुर्लभ जड़ी-बूटियों के नाम पर मार्केटिंग की जा रही है
मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज संघ की एमडी डॉ. समीता राजोरा के नेतृत्व में आयोजित किए गए अंतर्राष्ट्रीय वन मेला में पहले की तुलना में दुकानों की सजावट और पर्यटन की दृष्टि से काफी कुछ आकर्षण है लेकिन इस मेला की मुख्य पहचान दुर्लभ जड़ी बूटियां इस मेले में आदिखाई नहीं दे रही है। आयोजकों द्वारा प्रेस को भेजी गई रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा होता है। अंतर्राष्ट्रीय वन मेला में 120 चिकित्सकों-वैद्यों की उपस्थिति है लेकिन 5 दिनों में केवल 400 मरीज ने अपना चेकअप करवाया है। लोगों का कहना है कि, पिछले चार-पांच साल से अंतर्राष्ट्रीय वन मेला में दुर्लभ जड़ी-बूटियों के नाम पर मार्केटिंग की जा रही है। ना तो जड़ी बूटियां का कोई असर होता है और उनकी शुद्धता एवं असली होने पर भी संदेह होता है। खुद मेले के दुकानदार इस बात का खुलासा करते हैं कि उनके पड़ोस का जो दुकानदार है वह नकली जड़ी बूटी बेच रहा है।
भ्रष्टाचार या लापरवाही का शिकार हो गया अंतर्राष्ट्रीय वन मेला
इस प्रकार के आयोजन लोकप्रिय हो जाते हैं और जनता में विश्वास हासिल कर लेते हैं तो अक्सर पॉलीटिकल प्रेशर, भ्रष्टाचार और लापरवाही का शिकार हो जाते हैं। 5 साल पहले तक सरकार की ओर से पुराने और सफल नाड़ी वैद्यों की तलाश की जाती थी। वह अपने साथ जड़ी बूटियां भी लेकर आते थे। इलाज करने के बदले फीस नहीं मांगते थे लेकिन लोगों को जब आराम मिलता था तो, इस विश्वास के नाते उम्मीद से ज्यादा देकर जाते थे। शायद इसी लोकप्रियता के कारण कुछ नाड़ी वैद्यों ने पॉलीटिकल प्रेशर या रिश्वतखोरी का उपयोग करके अनुभवी और सफल नाड़ी वैद्यों का स्थान ले लिया है। अब यह मेल केवल एक पर्यटन स्थल रह गया है। जहां पर लाकर बच्चों को जड़ी बूटी के बारे में सामान्य ज्ञान दिया जा सकता है।
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