भोपाल, 20 दिसंबर 2025: प्रशासनिक चर्चा में अक्सर कहा जाता है कि अधिकारी के आदेश का पालन करना ही कर्मचारियों का कर्तव्य है लेकिन यदि अधिकारी कोई विधि विरुद्ध काम कर रहा है, तब उसका साथ देने वाला कर्मचारी भी उसके बराबर का अपराधी माना जाता है। इसी कानूनी सिद्धांत के अंतर्गत पुलिस ने उस महिला कर्मचारी को भी गिरफ्तार कर लिया, जिसने संतोष वर्मा के लिए फर्जी ऑर्डर टाइप किया था।
महिला कर्मचारी नीतू सिंह चौहान को पुलिस रिमांड के बीच जमानत मिली
संतोष वर्मा आरक्षण का लाभ प्राप्त करके राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी तो बन गया था लेकिन भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने के लिए उसने फर्जी वाले का सहारा लिया। मामला दर्ज हो चुका है और संतोष वर्मा को गिरफ्तार भी किया गया था। इसी मामले में पुलिस ने महिला कर्मचारी नीतू सिंह चौहान को गिरफ्तार किया और पूछताछ के लिए कोर्ट से रिमांड की मांग की। कोर्ट ने दो दिन की डिमांड मंजूर कर दी थी। इसी बीच शुक्रवार को जिला एवं सत्र न्यायालय में नीतू सिंह की तरफ से जमानत याचिका दाखिल की गई। वचन दिया गया की जांच में पूरा सहयोग करेगी। अपर सत्र न्यायाधीश प्रकाश कसेर की कोर्ट के समक्ष सुनवाई हुई। इसमें कोर्ट ने नीतू को 50 हजार रुपए के मुचलके पर जमानत दे दी।
संतोष वर्मा IAS फर्जीवाड़ा मामला क्या है
संतोष वर्मा पर आरोप है कि उनके खिलाफ एक महिला (जिससे संबंधित घरेलू या मारपीट/शोषण का केस दर्ज था) द्वारा दर्ज मुकदमे में बरी होने का फर्जी कोर्ट ऑर्डर तैयार करवाया गया। ये फर्जी ऑर्डर स्पेशल जज विजेंद्र सिंह रावत (या विजय रावत) के नाम से बनाए और इन फर्जी दस्तावेजों को विभागीय प्रमोशन कमेटी (DPC) में पेश करके इंटीग्रिटी सर्टिफिकेट हासिल किया और IAS में प्रमोशन लिया।
जब इस बात की जानकारी न्यायाधीश श्री विजेंद्र सिंह रावत को मिली तो उन्होंने खुद शिकायत की कि उन्होंने ऐसे कोई ऑर्डर जारी नहीं किए। 2021 में यह फर्जीवाड़ा सामने आने पर इंदौर पुलिस ने वर्मा को गिरफ्तार किया। वे कई महीने जेल में रहे, फिर सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली। मामले में जज विजेंद्र सिंह रावत को भी निलंबित किया गया और गिरफ्तारी हुई (बाद में जमानत मिली)। हाल ही में (दिसंबर 2025) कोर्ट टाइपिस्ट नीतू सिंह चौहान को गिरफ्तार किया गया, जो कथित तौर पर फर्जी ऑर्डर टाइप करने में शामिल थी।
आगे की कार्रवाई
नवंबर 2025 में वर्मा के एक विवादित बयान (आरक्षण और ब्राह्मण समाज पर टिप्पणी) के बाद पुराना मामला फिर सुर्खियों में आया। मध्य प्रदेश सरकार ने जांच के बाद उन्हें सभी पदों से हटा दिया और केंद्र सरकार को IAS सेवा से बर्खास्तगी का प्रस्ताव भेजा है। विभागीय जांच में उनकी पदोन्नति को अमान्य माना गया है, क्योंकि यह फर्जी दस्तावेजों पर आधारित थी। कई क्रिमिनल केस कोर्ट में लंबित हैं।
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