हे राम जी, चीटियों की दुनिया में घोटाला हो गया, सुरक्षा कवच कमजोर कर दिया: Antscan रिसर्च रिपोर्ट

सेंट्रल न्यूज़ रूम, 20 दिसंबर 2025
: ब्रिटिश, अमेरिकी और जापान के वैज्ञानिकों ने चीटियों की 500 से अधिक प्रजातियों का अध्ययन करने के बाद एक नया खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि रानी चींटी ने मजदूर चीटियों के सुरक्षा कवच को कमजोर कर दिया है। ऐसा केवल उन रानी चीटियों ने किया है, जिनके पास मजदूर चीटियों की संख्या 10000 से अधिक है। यह घोटाला है या स्ट्रेटजी?, इस प्रश्न का उत्तर जानना जरूरी है क्योंकि अब तक इंसान ही चीटियों से सीखते हैं, चीटियों ने कभी इंसानों से कुछ नहीं सीखा। तो क्या पहली बार चीटियों ने इंसानों से भ्रष्टाचार सीख लिया है?

चीटियों का कवच किस काम आता है

शोध के अनुसार, जिन चींटियों की बस्तियाँ (colonies) बड़ी होती हैं, वे अपने श्रमिकों के शारीरिक कवच (armor) पर कम ऊर्जा खर्च करती हैं। कवच (Cuticle) की कीमत कीटों का बाहरी कंकाल या क्यूटिकल (cuticle) उन्हें शिकारियों, बीमारियों और सूखने (desiccation) से बचाता है। इसे बनाने के लिए नाइट्रोजन और जिंक तथा मैंगनीज जैसे दुर्लभ खनिजों की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि चीटियों की 10,000 श्रमिकों वाली कॉलोनी में यदि कुछ श्रमिक शिकारियों द्वारा मारे भी जाते हैं, तो उससे कॉलोनी को विशेष फर्क नहीं पड़ता। इसलिए, प्रत्येक व्यक्तिगत श्रमिक की सुरक्षा पर कीमती पोषक तत्वों का भारी निवेश करना संसाधनों की बर्बादी माना गया है। 

अध्ययन की तकनीक और निष्कर्ष इस सिद्धांत के परीक्षण के लिए वैज्ञानिकों ने 'Antscan' नामक डेटाबेस का उपयोग किया, जिसमें दुनिया भर की 500 से अधिक प्रजातियों के 3D एक्स-रे माइक्रोटोमोग्राफी स्कैन शामिल थे। इस अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
• Diversity: चींटियों में क्यूटिकल का निवेश उनके कुल शरीर के आयतन का 6 प्रतिशत से 35 प्रतिशत तक भिन्न पाया गया।
• कॉलोनी का आकार: क्यूटिकल के आकार पर सबसे गहरा प्रभाव कॉलोनी की जनसंख्या का पाया गया। बड़ी कॉलोनी वाली चींटियों ने अपने कवच पर कम निवेश किया था।
• फायदा क्या हुआ: कम कवच वाली या "नरम" (squishier) चींटियाँ नए वातावरणों पर कब्जा करने और विविधता लाने में अधिक सफल रहीं। कम नाइट्रोजन की जरूरत ने उन्हें उच्च-प्रोटीन वाले शिकार के बजाय कम पौष्टिक लेकिन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तरल शर्करा (जैसे फूलों का रस) पर जीवित रहने में सक्षम बनाया।

Collective power and expendability

यह बदलाव व्यक्तिगत निवेश से हटकर एक वितरित कार्यबल (distributed workforce) की ओर बढ़ने का संकेत है। यह प्रक्रिया एककोशिकीय जीवों से बहुकोशिकीय जीवों के विकास के समान है, जहाँ व्यक्तिगत कोशिकाएं सरल हो जाती हैं और सुरक्षा के लिए समूह पर निर्भर रहती हैं।

क्या इंसान चीटियों से यह रणनीति सीख सकते हैं?

यह "सस्ते श्रमिक" की रणनीति इंसानों या भेड़ियों जैसे अन्य सामाजिक जीवों में नहीं देखी जाती क्योंकि उनमें प्रजनन का विभाजन उस तरह नहीं होता जैसा चींटियों में होता है। चींटी श्रमिक स्वयं प्रजनन नहीं करते, वे केवल रानी की प्रजनन रणनीति का विस्तार मात्र होते हैं, इसलिए उन्हें "व्यय योग्य" (expendable) बनाया जा सकता है। 

अब आगे क्या
वैज्ञानिक अब यह देखना चाहते हैं कि क्या व्यक्तिगत श्रमिकों को "सस्ता" बनाने की यह प्रक्रिया उनके तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियों तक भी फैली हुई है, और इसके पीछे कौन से आनुवंशिक (genetic) इनोवेशन जिम्मेदार हैं।

शोधकर्ताओं का परिचय 

चींटियों के विकास पर यह महत्वपूर्ण शोध ब्रिटिश, अमेरिकी और जापानी शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के मुख्य वैज्ञानिकों का विवरण नीचे दिया गया है:

• आर्थर मैटे (Arthur Matte): ये यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के शोधकर्ता हैं और इस अध्ययन के मुख्य लेखक (lead author) हैं। उन्होंने इस शोध के लिए एक विशेष 'कंप्यूटर विजन एल्गोरिदम' विकसित किया, जिसने चींटियों के बाहरी कंकाल (cuticle) के आयतन को स्वचालित रूप से मापने में मदद की। 

• इवान इकोनोमो (Evan Economo): ये मैरीलैंड विश्वविद्यालय में एक कीटविज्ञानी (entomologist) हैं और इस अध्ययन के सह-लेखक हैं। उन्होंने इस विचार को सामने रखा कि जैसे-जैसे समाज जटिल होते हैं, व्यक्तिगत जीव सरल हो सकते हैं क्योंकि कार्य सामूहिक रूप से पूरे किए जाते हैं। 

रिसर्च का साइज क्या था और रिसर्च पेपर कहां प्रकाशित हुआ

इन मुख्य शोधकर्ताओं के साथ उनके अन्य सहयोगियों ने मिलकर 'Antscan' नामक डेटाबेस के माध्यम से दुनिया भर की 500 से अधिक प्रजातियों के 880 से अधिक नमूनों का विश्लेषण किया। यह शोध 19 दिसंबर वर्ष 2025 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका 'Science Advances' में प्रकाशित हुआ है। 
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
फेसबुक पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!