United India Insurance Company Limited (UIICL) को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से राहत तो मिली है लेकिन मुक्ति नहीं मिली है। शिवपुरी जिले की पिछोर तहसील में हुए एक एक्सीडेंट के मामले में बीमा कंपनी का कहना था कि, जिसका एक्सीडेंट हुआ वह नियमों का उल्लंघन करते हुए वाहन चल रहा था। इसलिए उसे बीमा का अधिकार नहीं है। हाई कोर्ट ने पाया कि ट्रिब्यूनल ने जो फैसला दिया था वह सही है लेकिन बीमा रकम का भुगतान करने से इनकार करने पर जो 9% ब्याज लगाया गया था वह गलत है। ट्रिब्यूनल को इसका अधिकार नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट ने ब्याज माफ कर दिया लेकिन बीमा रकम का भुगतान करना होगा।
यह अपील मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, ग्वालियर पीठ में 28 अक्टूबर, 2025 को माननीय श्री न्यायमूर्ति हिरदेश के समक्ष सूचीबद्ध थी। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (अपीलकर्ता) बनाम श्रीमती प्रवेश राजा और अन्य (उत्तरदाता) टाइटल के साथ यह अपील मोटर वाहन अधिनियम की धारा 173 के तहत दायर की गई थी और द्वितीय याचिका मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (फास्ट ट्रैक कोर्ट), पिछोर, जिला शिवपुरी द्वारा Claim Case No. 03/2005 में 19.07.2006 को पारित अधिनिर्णय (Award) से असंतुष्ट होकर दायर की गई थी। यह दावा 29.04.2004 को हुई दुर्घटना में मृतक आनंद सिंह की मृत्यु के लिए मुआवजे की मांग हेतु दायर किया गया था। आनंद सिंह अपनी मोटरसाइकिल चला रहे थे। सरदार सिंह उनके पीछे बैठे हुए थे। आनंद सिंह की मृत्यु हो गई जबकि सरदार सिंह घायल हो गए थे। बीमा कंपनी ने बीमा का भुगतान करने से मना किया तो मामला क्लेम ट्रिब्यूनल में चला गया। ट्रिब्यूनल ने इंश्योरेंस कंपनी को बीमा की रकम के साथ नौ प्रतिशत ब्याज देने का भी आदेश दिया था।
अपीलकर्ता बीमा कंपनी के तर्क:
बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि क्लेम ट्रिब्यूनल का अधिनिर्णय कानून और रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों के विपरीत था। उनका मुख्य तर्क यह था कि दुर्घटना मृतक की तेज और लापरवाहीपूर्ण ड्राइविंग के कारण हुई क्योंकि मोटरसाइकिल ट्रैक्टर से पीछे से टकराई थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल ने आपराधिक रिकॉर्ड के आधार पर लापरवाही मानी, जो कानूनन सही नहीं है, और कोई स्वतंत्र चश्मदीद गवाह पेश नहीं किया गया था। साथ ही, उन्होंने दंडात्मक ब्याज (penal interest) @ 9% लगाने पर आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि ट्रिब्यूनल के पास इसे लगाने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
न्यायालय का निष्कर्ष और परिणाम:
न्यायालय ने माना कि ट्रिब्यूनल ने वाहन चालक (ट्रैक्टर) को दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ठहराने में कोई गलती नहीं की है, क्योंकि मालिक और चालक ने लापरवाही का खंडन करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया। न्यायालय ने res ipsa loquitur (घटना स्वयं बोलती है) के सिद्धांत को लागू किया। बीमा कंपनी मृतक की ओर से सहयोगी लापरवाही (contributory negligence) साबित करने में विफल रही। हालांकि, न्यायालय ने यह माना कि क्लेम ट्रिब्यूनल के पास दंडात्मक ब्याज लगाने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है। इसलिए, ट्रिब्यूनल के दंडात्मक ब्याज संबंधी निष्कर्ष को खारिज कर दिया गया और बीमा कंपनी को दंडात्मक ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया गया।
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सरदार सिंह और अन्य मिसलेनियस अपील संख्या 1103/2006
यह अपील भी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, ग्वालियर पीठ में 28 अक्टूबर, 2025 को माननीय श्री न्यायमूर्ति हिरदेश के समक्ष सूचीबद्ध थी। पक्षकार (Parties): यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (अपीलकर्ता) बनाम सरदार सिंह और अन्य (उत्तरदाता)।
यह अपील मोटर वाहन अधिनियम की धारा 173 के तहत दायर की गई थी और यह द्वितीय मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (फास्ट ट्रैक कोर्ट), पिछोर, जिला शिवपुरी द्वारा Claim Case No. 12/2005 में 29.08.2006 को पारित अधिनिर्णय से संबंधित है।
यह दावा सरदार सिंह द्वारा दायर किया गया था। सरदार सिंह मृतक आनंद सिंह के साथ मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे हुए सवारी (pillion rider) थे और उन्हें दुर्घटना में गंभीर चोटें आई थीं। सरदार सिंह (AW-2) भी एक गवाह थे।
न्यायालय का निर्णय:
चूंकि MA No. 1060/2006 और MA No. 1103/2006 एक ही दुर्घटना से उत्पन्न हुए थे, इसलिए दोनों को एक साथ सुना गया और एक ही सामान्य आदेश/निर्णय द्वारा निपटाया गया। इस अपील में भी वही कानूनी तर्क और निष्कर्ष लागू हुए जो MA No. 1060/2006 में थे, विशेष रूप से लापरवाही और res ipsa loquitur के सिद्धांत को लागू करने के संबंध में। इस अपील के लिए भी, दंडात्मक ब्याज (penal interest) लगाने के ट्रिब्यूनल के निष्कर्ष को खारिज कर दिया गया और इंश्योरेंस कंपनी को दंडात्मक ब्याज का भुगतान करने से छूट दी गई।
संक्षेप में, MA No. 1060/2006 मृतक आनंद सिंह के वारिसों के मुआवजे से संबंधित था, जबकि MA No. 1103/2006 घायल सरदार सिंह के मुआवजे से संबंधित था। दोनों ही मामलों में, उच्च न्यायालय ने वाहन चालक की लापरवाही को सही ठहराया लेकिन ट्रिब्यूनल द्वारा लगाए गए दंडात्मक ब्याज को अमान्य घोषित कर दिया।
