Monsoon इस बार आशीर्वाद की जगह आफत क्यों बना, 2277 बार मूसलाधार बारिश हुई

यह समाचार भारत के किसानों के लिए और नदियों के किनारे रहने वालों के लिए बहुत जरूरी है। भारत में मानसून को प्रकृति का आशीर्वाद माना जाता है। इसके कारण ही सबसे ज्यादा बड़े क्षेत्र में खेतों की सिंचाई होती है लेकिन इस बार का मानसून आशीर्वाद के स्थान पर आफत दिखाई दिया। भारत के 45% इलाके में रिकॉर्ड तोड़ बारिश हुई लेकिन वर्ष के दिन कम हो गए। कम दिन में ज्यादा पानी गिरा तो खेत बर्बाद हो गए, नदियों में बाढ़ आ गई, चारों तरफ तबाही देखी गई। सबको जानना जरूरी है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और आने वाले सालों में ऐसी स्थिति से बचने के लिए क्या करना चाहिए। 

मानसून लगातार दूसरे साल Above Normal रहा

क्लाइमेट के पत्रकार श्री निशांत सक्सेना की रिपोर्ट बताती है कि, बारिश अब वैसी नहीं रही जैसी पहले हुआ करती थी। कभी सूखा पड़ता है, तो कभी आसमान जैसे खुलकर बरस पड़ता है। भारत में इस साल का मॉनसून भी कुछ ऐसा ही रहा। 45% इलाकों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश, और पूरे देश में औसतन 108% वर्षा, यानि “सामान्य से ज़्यादा” मॉनसून। भारत मौसम विभाग (IMD) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 2025 का मॉनसून लगातार दूसरे साल ‘above normal’ रहा। लेकिन इसके पीछे जो ट्रेंड बन रहा है, वो ज़्यादा अहम है- बारिश के दिन कम हो रहे हैं, पर जब होती है, तो बहुत ज़्यादा होती है।

कहीं सैलाब, कहीं सूखा - एक ही देश, दो कहानियाँ

  • इस साल 36 मौसम ज़ोन में से
  • 12 जगहों पर ज़्यादा बारिश,
  • 2 जगहों पर बहुत ज़्यादा,
  • 19 जगहों पर सामान्य, और 
  • सिर्फ़ 3 जगहों पर बारिश कम रही।

उत्तर-पश्चिम भारत सबसे आगे

यहाँ 27% ज़्यादा बारिश हुई, और लद्दाख में तो औसतन से 342% ज़्यादा।
राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में भी 60 से 70 प्रतिशत तक ज़्यादा पानी बरसा।
गुजरात ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। यहाँ 25% ज़्यादा बारिश हुई।
लेकिन पूर्वोत्तर भारत में कहानी उलटी रही।
असम, अरुणाचल और बिहार जैसे राज्यों में बारिश 20% तक कम दर्ज की गई।

बारिश नहीं, अब एक्सट्रीम इवेंट हो गई है

IMD के डेटा बताते हैं कि इस साल मॉनसून के दौरान 2,277 बार भारी या अत्यधिक बारिश हुई। इन घटनाओं में 1,528 लोगों की जान गई, जिनमें सबसे ज़्यादा मौतें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में हुईं। 14 में से 18 हफ़्तों में मॉनसून का पानी “अधिक या बहुत अधिक” श्रेणी में रहा।
यानी चार महीने में मुश्किल से कुछ ही दिन ऐसे गए जब देश के किसी हिस्से में भारी बारिश नहीं हुई।

नदियों ने रिकॉर्ड तोड़े 

इस बार नदियों ने भी सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। देश के 9 नदी बेसिनों में 59 जगहों पर “Highest Flood Level (HFL)” दर्ज किया गया। सिर्फ़ गंगा बेसिन में ही 32 ऐसी घटनाएँ हुईं, जिनमें 10 यमुना नदी में थीं। अगस्त 2025 बाढ़ के लिहाज़ से सबसे डरावना महीना साबित हुआ।

कम दिन, ज़्यादा बरसात: मॉनसून का नया चेहरा

पूर्व मौसम महानिदेशक डॉ. के. जे. रमेश का कहना है, “मॉनसून अब छोटा हुआ है, लेकिन ज़्यादा तीव्र हो गया है। पहले 60 दिन में फैलने वाली बारिश अब 20-25 दिनों में हो रही है।” 

मौसम विशेषज्ञ महेश पलावत (Skymet Weather) कहते हैं, “कम दबाव वाले सिस्टम अब ज़्यादा टिकाऊ हो गए हैं। नमी लगातार मिलती रहती है, इसलिए बादल फटने जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं।”

क्यों हो रही है ये तब्दीली

वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी तीन बड़ी वजहें हैं:
1. समुद्रों का गर्म होना 
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का तापमान बढ़ने से हवा में नमी ज़्यादा है। यही नमी बारिश की तीव्रता बढ़ा रही है।
2. वेस्टर्न डिस्टर्बेंसेज़ का शिफ्ट 
जो पहले सर्दियों में सक्रिय रहते थे, अब गर्मियों में भी मॉनसून को उत्तर की ओर खींच रहे हैं।
3. मध्य-पूर्व की गर्म हवाएँ 
वहाँ की गर्मी अब भारत तक असर डाल रही है, जिससे उत्तर-पश्चिम भारत में बिजली और तूफ़ान वाली तेज़ बारिश बढ़ी है।

हिमालय में बढ़ता ख़तरा

हिमालयी इलाकों में हालात और नाज़ुक हैं। ग्लेशियर अब पहले से तेज़ी से पिघल रहे हैं। ग्लोबल एवरेज से तीन गुना तेज़। पिघलती झीलें और कमजोर होती ढलानें बाढ़ और लैंडस्लाइड की घटनाएँ बढ़ा रही हैं।

डॉ. अर्घ बनर्जी, IISER पुणे, कहते हैं, “जब तेज़ बारिश और ग्लेशियर मेल्ट एक साथ होती है, तो छोटी-छोटी धाराएँ भी खतरनाक फ्लैश फ्लड में बदल जाती हैं।”

डेटा क्या कहता है

IMD के लंबे समय के आंकड़े बताते हैं कि 1979 से 2022 के बीच उत्तर-पश्चिम भारत में ग्रीष्मकालीन मॉनसून वर्षा 40% बढ़ चुकी है। इसकी वजह है भारतीय महासागर और अरब सागर की बढ़ती गर्मी, जो ज़्यादा वाष्प और नमी पैदा करती है।

बारिश अब मौसम नहीं, संकेत है

इस साल का मॉनसून फिर साबित करता है कि अब बारिश सिर्फ़ पानी की नहीं, जलवायु की कहानी बन चुकी है। कहीं खेतों में राहत, कहीं सड़कों पर तबाही, पर एक बात साफ़ है: ग्लोबल वार्मिंग अब भारत के मॉनसून में दिखने लगी है।

जरा सोचिए, यही बारिश 15 दिन में हुई तो

60 दिन की बारिश 25 दिन में हुई तो 45% भारत में हाहाकार मच गया। सब कुछ नदियों के किनारे हुआ, निचले इलाकों में हुआ इसलिए सुरक्षित स्थानों पर रहने वालों को इसकी गंभीरता नहीं है लेकिन जरा सोचिए, 60 दिन का मानसून यदि 15 दिन में सिमट जाए, जो की होने वाला है। जितनी बार 60 दिन में होनी चाहिए उतनी बारिश 15 दिन में होगी, तब क्या होगा। 

समाधान क्या है
इस मुद्दे को समाज में ले जाइए। सबको बताइए कि यह भगवान की मर्जी नहीं है। यह हमारी सरकारों के फैसलों का नतीजा है। हिमालय का विकास पूरे भारत के किसानों के लिए भारी पड़ रहा है। भारत सरकार को उन देशों पर भी क्लाइमेट टैरिफ लगा देना चाहिए जिसके कारण समुद्र गर्म हो रहे हैं और वेस्टर्न डिस्टरबेंस शिफ्ट हो रहा है। यह बात किसानों को समझ में नहीं आएगी लेकिन उनके बच्चों और युवा रिश्तेदारों को को समझना चाहिए। समर्थन कीजिए या विरोध, लेकिन बात कीजिए। इस समाचार को सोशल मीडिया पर अपने विचारों के साथ शेयर कीजिए।
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
फेसबुक पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!