मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने मध्य प्रदेश शासन के खाद्य विभाग द्वारा एक व्यापारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 272, 273 के तहत दर्ज किया गया मामला रद्द कर दिया है। इसके साथ ही एक बार फिर हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि, किसी भी खाद्य पदार्थ का अमानक होना, इस बात का प्रमाण नहीं होता कि वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। और आपराधिक मामले में खाद्य विभाग को, व्यापारी द्वारा किया गया छल कपट भी साबित करना होता है।
मनोज कुमार एंड कंपनी का ट्रक अमेठी के लिए रवाना हुआ था
यह कहानी जनवरी 2021 का एक सर्द सुबह से शुरू होती है। मध्य प्रदेश के गुना जिले के कुंभराज थाना क्षेत्र में, राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक ट्रक जा रहा था। ड्राइवर की आंखें सड़क पर टिकी हुई थीं, लेकिन अचानक पीछे से सरकारी गाड़ियां आकर उसे घेर लिया। वे खाद्य सुरक्षा अधिकारी थे। ट्रक में 400 बोरी धनिया लदी थीं, जो उत्तर प्रदेश के अमेठी शहर के बाजारों तक पहुंचने वाली थी। यह धनिया मनोज कुमार साहू की फर्म 'मनोज कुमार एंड कंपनी' का था। मनोज एक साधारण धनिया व्यापारी हैं। वे सालों से इस धंधे में लगे थे, लेकिन उस दिन, सब कुछ बदल गया।
खास अधिकारी ने ट्रक को रास्ते में रोककर नमूने निकाले
अधिकारियों ने ट्रक को रोक लिया। कागजात जांचे, बोरे गिने। सब कुछ वैध लग रहा था। ट्रांसपोर्ट लाइसेंस, बिल्टी, और डिलीवरी चालान। फिर भी, संदेह की छाया मंडराने लगी। उन्होंने कुछ बोरे खोले, धनिया के नमूने निकाले, और उन्हें सील कर भोपाल स्थित राज्य खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला भेज दिया। मनोज को सूचना दी गई कि जांच पूरी होने तक माल जब्त रहेगा। मनोज का दिल बैठ गया। उनके कारोबार का एक बड़ा हिस्सा रुक गया था। वे घर लौटे, लेकिन नींद न आई। "क्या गड़बड़ हो गई?" वे खुद से पूछते रहे। धनिया तो ताजा ही था, किसानों से सीधे खरीदा गया। लेकिन इंतजार लंबा खिंच गया।
कई हफ्तों बाद, रिपोर्ट आ गई। भोपाल की प्रयोगशाला से एक कागज आया, जिसमें लिखा था: "धनिया अमानक पाया गया।" कारण? कुछ गुणवत्ता मानकों में कमी। मनोज के कानों में घंटी बज उठी। अगले ही दिन, कुंभराज थाने में पुलिस ने आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 272 (खाद्य पदार्थों में मिलावट), और 273 (स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य वितरण) के तहत एफआईआर दर्ज कर ली। मनोज पर आरोप लगा कि उन्होंने जानबूझकर घटिया धनिया बेचने की साजिश रची थी। गिरफ्तारी का डर सताने लगा।
खाद्य अधिकारी की नमूना लेने की प्रक्रिया ही अमानक थी
मनोज ने ग्वालियर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। एकल पीठ के समक्ष मामला आया। मनोज के वकील ने तर्क दिए: "नमूना लेने की प्रक्रिया में मानक प्रक्रियाओं का पालन नहीं हुआ। बोरे खुले में रखे गए, सीलिंग सही से न की गई। प्रयोगशाला रिपोर्ट की विश्वसनीयता ही संदिग्ध है।" उन्होंने रिपोर्ट के दस्तावेज पेश किए। अभियोजन पक्ष ने विरोध किया, लेकिन सबूत कमजोर थे। जज ने गौर से सुना। फिर, फैसला सुनाया।
धारा 420 का तो कोई आधार ही नहीं है, 272-273 भी साबित नहीं होती
जज ने कहा "यह धनिया अमानक पाया गया था, लेकिन इसमें छल-कपट का कोई इरादा साबित नहीं होता"। अदालत ने टिप्पणी की कि नमूना संग्रहण में लापरवाही हुई, जिससे पूरी जांच ही अविश्वसनीय हो जाती है। "किसी खाद्य पदार्थ का अमानक पाया जाना स्वतः ही उसे 'असुरक्षित' साबित नहीं करता," जज ने जोर देकर कहा। आईपीसी की धारा 272 और 273 लागू करने के लिए यह साबित होना जरूरी था कि धनिया स्वास्थ्य के लिए हानिकारक था। कुछ ऐसा जो रिपोर्ट में कहीं न दिखा। "मामले में छल-कपट या आपराधिक इरादे के कोई ठोस सबूत नहीं मिले," फैसले में लिखा गया। धारा 420 का भी कोई आधार न था।
निष्कर्ष: यह मामला खाद्य विभाग की वसूली प्रथा को प्रमाणित करता है। खाद्य अधिकारी ने व्यापारी पर दबाव बनाने के लिए झूठा मुकदमा दर्ज करवाया जबकि खाद्य अधिकारी को पता है कि अमानक खाद्य पदार्थ का मतलब आईपीसी की धारा 272, 273 और 420 का अपराध नहीं होता। हाई कोर्ट के डिसीजन से व्यापारी को तो राहत मिल गई लेकिन अवैध वसूली के लिए पद का दुरुपयोग करने वाले अधिकारियों को दंड नहीं मिला है। हाई कोर्ट के इस डिसीजन के आधार पर डिपार्टमेंट को, संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
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