भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी जमीन पर पॉलिटिकल पार्टियों के झंडा और परमानेंट कंस्ट्रक्शन को गैर कानूनी घोषित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 12 सप्ताह यानी 3 महीने के भीतर ऐसी सभी चीजों को हटा दिया जाए जो किसी सरकारी जमीन पर किसी भी राजनीतिक दल को फायदा पहुंचाने या उसका प्रचार करने के काम में आ रही हैं।
फ्लैशबैक: मदुरै से लेकर मद्रास हाई कोर्ट तक
मामले की शुरुआत दक्षिण भारत के मदुरै शहर से हुई। पलंगनाथम में अन्नाद्रमुक पार्टी द्वारा सरकारी जमीन पर एक परमानेंट फ्लैग पोल बना दिया गया। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसा तिरंगा झंडा लहराने के लिए काफी अधिक ऊंचाई वाला खंबा बनाया जाता है। विपक्षियों ने इसका विरोध किया और मामला मद्रास हाई कोर्ट तक पहुंचा। मद्रास हाई कोर्ट ने सरकारी जमीन पर पॉलीटिकल पार्टी के प्रचार के लिए किए गए इस तरह के परमानेंट कंस्ट्रक्शन को अवैध घोषित करते हुए इसे हटाने की आदेश दिए।
मथुरा हाई कोर्ट के इस डिसीजन को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया। दलील दी गई कि, यह मामला हाई कोर्ट की अधिकारिता (jurisdiction) के बाहर का मामला है। हाई कोर्ट को इस प्रकार के मामले की सुनवाई और फैसला देने का अधिकार नहीं है। दिनांक 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट को जस्टिस जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की बेंच के समक्ष फाइनल अरगुमेंट्स हुए। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का दायरा व्यापक है। इसलिए इस आधार पर हाई कोर्ट के फैसले को चैलेंज नहीं किया जा सकता है। इसी के साथ याचिका को खारिज कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज होते ही हाई कोर्ट का आदेश एप्लीकेबल हो गया है। 12 सप्ताह यानी तीन महीने के भीतर केवल मदुरै नहीं बल्कि पूरे भारत में सरकारी जमीन पर बने हुए इस प्रकार के सभी कंस्ट्रक्शन ध्वस्त कर दिए जाने के आदेश जारी किए गए हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी के प्रचार के लिए उपयोग में आ रहे हैं।