New research: भारत का विशाल हिमालय पर्वत दही जैसी गीली मिट्टी पर खड़ा है?

Bhopal Samachar
0
11 अरब X 11 अरब टन वजन का हमारा हिमालय जो 5 करोड़ वर्षों से भारतवर्ष की रक्षा कर रहा है, असल में एक दही जैसी गीली मिट्टी पर खड़ा हुआ है? 100 साल पहले टेक्टोनिक प्लेट फोर्स की जो थ्योरी Swiss geologist Émile Argand ने बताई थी, सारी दुनिया जिस पर विश्वास करती थी, Pietro Sternai, associate professor of geophysics at the University of Milano-Bicocca का कहना है कि, यह थ्योरी गलत है। यदि स्विस भूवैज्ञानिक की थ्योरी पर विश्वास करेंगे तो हिमालय जैसा विशाल पर्वत दही के जैसी गीली मिट्टी के ऊपर खड़ा हुआ है, जो कि संभव नहीं है। 

Swiss geologist Émile Argand की थ्योरी क्या थी

100 साल पहले स्विस भू वैज्ञानिक Émile Argand ने बताया था कि, 5 करोड़ साल पहले एशियाई और भारतीय महाद्वीपों के टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ था। tectonic forces ने तिब्बत को इतना कसकर दबाया कि यह क्षेत्र सिकुड़ गया और इसका क्षेत्रफल लगभग 620 मील (1,000 किलोमीटर) कम हो गया। भारतीय tectonic plate अंततः यूरेशियन plate के नीचे खिसक गई, जिससे हिमालय और उत्तर में तिब्बती पठार के नीचे पृथ्वी की crust की मोटाई दोगुनी हो गई। इसके कारण इतना भारी भरकम पहाड़, 5 करोड़ साल से टिका हुआ है और अब तक खत्म नहीं हुआ है। 

अब तक सारी दुनिया यही मानती रही है कि crust का दोगुना होना अकेले हिमालय और तिब्बती पठार का वजन उठाता है। स्विस भूविज्ञानी Émile Argand द्वारा 1924 में प्रकाशित शोध में दावा किया था कि भारतीय और एशियाई crusts एक दूसरे के ऊपर ढेर हो गए, जो पृथ्वी की सतह के नीचे 45 से 50 मील (70 से 80 किमी) गहरे तक फैले हुए हैं। 

Swiss geologist Émile Argand का शोध और थ्योरी गलत है

University of Milano-Bicocca के Pietro Sternai ने Live Science के साथ बातचीत करते हुए दावा किया है कि, अत्यधिक तापमान के कारण crust में चट्टानें लगभग 25 मील (40 किमी) की गहराई पर पिघल जाती हैं। यह बिल्कुल दही के समान हो जाती है। इतनी कमजोर चट्टान पर कोई पहाड़ खड़ा नहीं हो सकता है। इसलिए Swiss geologist Émile Argand का शोध और थ्योरी गलत है। 

विशाल हिमालय पर्वत crust के ऊपर नहीं तो किसके ऊपर खड़ा है?

26 अगस्त को Tectonics नामक पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च पेपर में (सभी लेखकों के नाम एवं परिचय सबसे अंत में दिए गए हैं) लिखा है कि, एशियाई और भारतीय crusts के बीच mantle का एक टुकड़ा फंसा हुआ है। Mantle पृथ्वी की वह परत है जो सीधे crust के नीचे स्थित है। यह crust से कहीं अधिक denser है और इसलिए, समान तापमान पर पिघलता नहीं है। यही कारण है कि हिमालय इतना ऊंचा पर्वत है और अब तक अपनी ऊंचाई पर टिका हुआ है। Sternai और उनके सहयोगियों ने कंप्यूटर पर एशियाई और भारतीय महाद्वीपों के टकराव का simulation करके mantle insert की खोज की। 

Sternai ने कहा कि यह मौलिक है, क्योंकि इसका मतलब है कि stacked crusts के बीच mantle की एक rigid layer है जो हिमालय के नीचे की पूरी संरचना को solidify करती है। दो crusts क्षेत्र को ऊंचा रखने के लिए पर्याप्त buoyancy प्रदान करती हैं, जबकि mantle material resistance और mechanical strength प्रदान करता है। उन्होंने कहा, "आपके पास topography को ऊपर उठाने और हिमालय और तिब्बती पठार का वजन बनाए रखने के लिए आवश्यक सभी ingredients हैं"। 

हालांकि इस नई स्टडी को अभी दुनिया भर के भू वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है। क्योंकि पिछले 100 सालों से सभी भू वैज्ञानिकों ने निर्विवाद रूप से Swiss geologist Émile Argand की थ्योरी को सही माना था। लेकिन इसको लेकर चर्चा जरूर हो गई है। दोनों में से कोई भी बात सही निकले, एक बात प्रमाणित होती है कि हिमालय दुनिया का अनोखा पर्वत है और यह पृथ्वी पर मौजूद अन्य प्राकृतिक पर्वतों के समान नहीं है। यदि हिमालय पर्वत 45 से 50 मील (70 से 80 किमी) गहरे तक फैले हुए crusts के ऊपर खड़ा हुआ है तो यह एक चमत्कार है और यदि mantle की rigid layer के ऊपर टिका हुआ है तो यह भी एक चमत्कार है। 

A diagram from the study 

A diagram from the study shows how blobs of the Indian crust rose and attached to the bottom of the lithosphere after the Asian and Indian continents collided. In dark blue we see the upper mantle, and in orange, the partially molten Indian crust. (Image credit: Sternai et al. 2025, Tectonics. Redistributed under Creative Commons licence CC BY 4.0.)

नई स्टडी रिपोर्ट के लेखकों का परिचय

Pietro Sternai - मिलानो-बिकोका विश्वविद्यालय, इटली में भूभौतिकी के एसोसिएट प्रोफेसर और हिमालय के नीचे की भूविज्ञान का विश्लेषण करने वाले नए अध्ययन के मुख्य लेखक हैं।
Simone Pilia - किंग फहद यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड मिनरल्स, सऊदी अरब में भूविज्ञान के सहायक प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक हैं।
Émile Argand - एक स्विस भूविज्ञानी हैं जिन्होंने 1924 में एक शोध प्रकाशित किया था, जिसमें हिमालय को सहारा देने वाली 100 साल पुरानी प्रचलित theory का प्रस्ताव दिया गया था।
Adam Smith - ग्लासगो विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड में numerical modeling में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च एसोसिएट हैं और वे इस अध्ययन में शामिल नहीं थे, लेकिन उन्होंने इस पर टिप्पणी की है।
Douwe van Hinsbergen - उट्रेच विश्वविद्यालय, नीदरलैंड में ग्लोबल tectonics और paleogeography के प्रोफेसर हैं और वे भी इस अध्ययन में शामिल नहीं थे, लेकिन उन्होंने इस पर टिप्पणी की है। 
इस समाचार के लेखक एवं संपादक उपदेश अवस्थी हैं। 
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

Post a Comment

0 Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!