भारत के सर्वोच्च न्यायालय में आज मध्य प्रदेश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के तहत सरकारी चयन परीक्षाओं में HOLD किए गए 13% पदों को मुक्त करवाने के लिए दायर अंतरिम याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान आज एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम भी हुआ।
OBC आरक्षण का डिसीजन सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर क्यों करवाया
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ने बताया कि, सुप्रीम कोर्ट में उम्मीदवारों की ओर से वकीलों की टीम उपस्थित हुई परंतु सरकार की ओर से कोई वकील नहीं आया। यह देखकर सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि "छह वर्षों से आप नींद में सो रहे थे, अब स्टे हटाने की याचिका दायर करने पर नींद खुली है।" सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से पूछा कि आपने हाईकोर्ट में मामले का निर्णय करवाने के बजाय इन मामलों को सुप्रीम कोर्ट में क्यों ट्रांसफर करवाया। उम्मीदवार चाहते हैं कि मध्य प्रदेश में भी छत्तीसगढ़ का अंतरिम आदेश लागू कर दिया जाए लेकिन सरकार इसका विरोध कर रही है।
OBC आरक्षण मामले में आज का सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम
आज सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम यह हुआ है कि, सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों को अंतिम सुनवाई के लिए 24 सितंबर, 2025 को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। ओबीसी वर्ग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, अनूप जॉर्ज चौधरी, रामेश्वर सिंह ठाकुर, वरुण ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदूरकर की खंडपीठ में सुनवाई हुई, जिसमें मध्य प्रदेश सरकार के छह वर्षों तक निष्क्रिय रहने और हजारों अभ्यर्थियों को चयन से वंचित करने पर खेद व्यक्त किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा, "जब कानून पर कोई रोक नहीं है, तो फिर अंतरिम याचिका (आई.ए.) क्यों दायर की गई?" इस पर सरकार के वकीलों ने चुप्पी साध ली। आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सभी अंतरिम आदेशों को प्रभावहीन बताया और अगली सुनवाई में सभी मामलों को हाईकोर्ट में वापस भेजने का संकेत दिया।