आदरणीय गुरुजनों, प्रिय मित्रों और उपस्थित सभी सम्मानित व्यक्तियों को मेरा नमस्कार! आज हम सभी यहाँ श्री गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर एकत्रित हुए हैं। यह दिन हमारे जीवन में गुरु के महत्व को समझने और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का एक विशेष अवसर है। गुरु पूर्णिमा का यह पवित्र दिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो हमारे देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं में विशेष महत्व रखता है।
गुरु शब्द का अर्थ, भगवान श्री कृष्णा और महर्षि वेदव्यास
गुरु शब्द का अर्थ है - "अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला।" गुरु वह दीपक है जो हमारे जीवन के अंधेरे को दूर कर हमें ज्ञान, नैतिकता और सही मार्ग दिखाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी ऊँचा स्थान दिया गया है, क्योंकि वे हमें केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला, मूल्यों और संस्कारों का भी पाठ पढ़ाते हैं।हमारी प्राचीन परंपरा में गुरु-शिष्य का संबंध अत्यंत पवित्र माना गया है। महाभारत में एकलव्य और गुरु द्रोणाचार्य की कथा हो या फिर भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन का मार्गदर्शन, इन उदाहरणों से हमें यह सीख मिलती है कि गुरु का मार्गदर्शन जीवन को सही दिशा देता है। गुरु पूर्णिमा का यह दिन महर्षि वेदव्यास को भी समर्पित है, जिन्होंने वेदों और पुराणों की रचना कर मानवता को ज्ञान का अमूल्य खजाना प्रदान किया।
आज के परिदृश्य में गुरु का महत्व
आज के आधुनिक युग में भी गुरु का महत्व कम नहीं हुआ है। चाहे वह स्कूल के शिक्षक हों, माता-पिता हों, या कोई ऐसा व्यक्ति जिसने हमें जीवन में कुछ सिखाया हो, हर कोई हमारे लिए गुरु का रूप है। हमें अपने गुरुओं के प्रति हमेशा सम्मान और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें न केवल अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए, बल्कि उनके द्वारा दिए गए ज्ञान को अपने जीवन में उतारना चाहिए।अंत में, मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि इस गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरुओं के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को व्यक्त करें। आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाएंगे।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:।।
धन्यवाद!