राजनीति में यदि किसी नेता की अपने क्षेत्र में पकड़ कमजोर हो गई, तो समझो उसकी पूरी राजनीति ही कमजोर हो गई। मध्य प्रदेश के मोस्ट पॉपुलर सेलिब्रिटी लीडर श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सीएम कैंडिडेट श्री तुलसी सिलावट अपनी विधानसभा के एक वार्ड में अपनी पार्टी के प्रत्याशी को उपचुनाव भी नहीं जिता पाए। भाजपा के प्रत्याशी की जमानत जप्त हो गई। यहां उल्लेख करना जरूरी है कि, जब सिंधिया के हाथ में पावर आई थी और उनसे पूछा गया था तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए तुलसी सिलावट का नाम बढ़ाया था।
तुलसी सिलावट, सांवेर नगर परिषद, वार्ड 7 उपचुनाव के परिणाम
जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट के विधानसभा क्षेत्र सांवेर में नगर पंचायत के वार्ड क्रमांक 7 के लिए उपचुनाव हुआ था। इस वार्ड में कुल 1300 मतदाता हैं। उपचुनाव में 1044 मतदाताओं द्वारा मताधिकार का उपयोग किया गया। आज हुई मतगणना में कांग्रेस प्रत्याशी को 913 वोट मिले, जबकि भाजपा प्रत्याशी को मात्र 117 वोट मिले। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ने 796 वोटों से जीत दर्ज की है। इस वार्ड के 14 मतदाताओं द्वारा नोटा को वोट दिया गया। इस प्रकार कांग्रेस को 87.45% और भाजपा को 11.21% वोट मिले। यह बेहद शर्मनाक स्थिति है।
प्रत्याशी का चयन किसी ने भी किया हो, कलंक तो सिलावट पर ही लगेगा
भारतीय जनता पार्टी में अनुशासन और संगठन की परंपरा के नाम पर कई बार क्षेत्र में पार्टी के सबसे लोकप्रिय और जिम्मेदार नेता को अनदेखा करके भी टिकट दे दिया जाता है। लेकिन राजनीति में इसे स्वीकार नहीं किया जाता। यदि कोई नेता अपने क्षेत्र में, अपने अनुसार, फैसला नहीं करवा पाता। पॉलिटिक्स में इसे भी एक फैलियर माना जाता है। यदि कैंडिडेट का सिलेक्शन तुलसी सिलावट ने किया है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। यदि कैंडिडेट के सिलेक्शन में उनका महत्व नहीं दिया गया तो उन्हें अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता करना चाहिए, क्योंकि उनके क्षेत्र में कोई है, जो उनसे ज्यादा पावरफुल हो गया है।