मध्य प्रदेश के 4.5 लाख कर्मचारी और खास तौर पर 31 जुलाई को रिटायर होने वाले सरकारी कर्मचारी प्रमोशन का इंतजार कर रहे थे। सरकार ने नए नियम लागू कर दिए थे और प्रमोशन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई थी लेकिन हाई कोर्ट की ओर से अंतरिम आदेश जारी कर दिया गया। अगली सुनवाई 15 जुलाई को है। हमने हाई कोर्ट के अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर से, यह जानने की कोशिश की कि, यदि 15 जुलाई को सरकार अपना पक्ष प्रस्तुत करती है और 2002 एवं 2025 के नियमों में कोई अंतर बताने में सफल हो जाती है तो क्या होगा।
Madhya Pradesh Promotion Law Faces Legal Challenges in High Court
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि हाल ही मे मध्य प्रदेश सरकार ने promotion law बनाया, जिसके खिलाफ high court में कई याचिकाएँ दायर की गई हैं। सरकार को पहले supreme court में 2016 के high court आदेश के खिलाफ दायर SLP(C) वापस लेनी चाहिए थी और 2002 के promotion rules को निरस्त करना चाहिए था। इसके बाद नए नियम बनाए जाने चाहिए थे। लेकिन सरकार ने जानबूझकर या legal advice की कमी के कारण असंवैधानिक रूप से कार्य किया, जिसके कारण लाखों employees, जो 2016 से promotion की प्रतीक्षा कर रहे थे, अब high court के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश प्रमोशन में आरक्षण, विवाद 2.0 का संक्षिप्त विवरण
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 7 जुलाई 2025 को प्रमोशन में आरक्षण से संबंधित नए नियमों के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी। यह आदेश जबलपुर बेंच में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेव और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने दिया। मामला सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक कल्याण समाज (SAPAKS) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसमें तर्क दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण का मामला लंबित होने के कारण राज्य सरकार नए नियम लागू नहीं कर सकती। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि 2002 और 2025 के नियमों में क्या अंतर है, लेकिन सरकार के महाधिवक्ता इसका संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। कोर्ट ने सरकार को एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, और अगली सुनवाई 15 जुलाई 2025 को निर्धारित की गई। तब तक प्रमोशन में आरक्षण लागू नहीं होगा। इस मामले ने मध्य प्रदेश में 2016 से रुकी हुई पदोन्नतियों को और जटिल कर दिया है, जिसके कारण लाखों कर्मचारी प्रभावित हैं।