LIC से हाथ खींच रही है सरकार, मार्केट में हलचल, IPO के बाद OFS को मंजूरी - NEWS TODAY

भारत की सबसे बड़ी और सावरेन बीमा कंपनी, लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन आफ इंडिया से भारत सरकार अपना हाथ खींच रही है. IPO के टाइम 3.5% हिस्सेदारी बेच दी थी, अब OFS - ऑफर फॉर सेल को मंजूरी दे दी है. इसके तहत 3% हिस्सेदारी बेचने की तैयारी है. यहां उल्लेख करना जरूरी है कि भारतीय जीवन बीमा निगम, भारत सरकार की स्वामित्व वाली कंपनी थी. आज इस कंपनी में भारत सरकार की हिस्सेदारी 96.5% रह गई है. 

LIC की ऑफर फॉर सेल को मंजूरी

सरकार ने देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (LIC) में अपनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार ने LIC में ऑफर-फॉर-सेल (यदि आप ऑफर फॉर सेल नहीं जानते तो इसका मतलब सबसे नीचे दिया गया है, समाचार पढ़ने के बाद पढ़ सकते हैं) को मंजूरी दे दी है, जिसे जल्द ही बाजार में लाया जाएगा। LIC में सरकार की 96.5% हिस्सेदारी है। 2022 में 3.5% हिस्सा बेचा गया था। अब सरकार 3% और बेचने की योजना बना रही है, जिससे करीब 9,500 से 14,500 करोड़ रुपए जुटाए जा सकते हैं। यह कदम 2025-26 में सरकारी कंपनियों के शेयर बेचकर पैसा जुटाने की योजना का हिस्सा है। इससे पहले सरकार ने IPO के जरिए LIC में अपनी 3.5% हिस्सेदारी (22.14 करोड़ शेयर) बेच दी थी। इसके बदले में सरकार को 20,557 करोड़ रुपए मिले थे। 

1956 में 245 कंपनियों के मर्जर से बनी एलआईसी

19 जून 1956 को संसद में लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन एक्ट पारित हुआ। तब तक भारत में 154 लाइफ इंश्योरेंस कंपनी, 16 विदेशी कंपनी और 75 प्रोविडेंट फंड कंपनी थीं। 1 सितंबर 1956 को सरकार ने सभी 245 कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर एक नई कंपनी बनाई। कंपनी का नाम रखा गया LIC यानी लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया। तब सरकार ने 5 करोड़ रुपए इस कंपनी के लिए जारी किए थे। उस समय भारत सरकार का कहना था कि, जीवन का बीमा कोई प्राइवेट या पब्लिक कंपनी नहीं कर सकती। यह संवेदनशील विषय है और सरकार के सीधे नियंत्रण में होना चाहिए। 

LIC में सरकारी हिस्सेदारी कम होने से क्या नुकसान होगा 

भारत सरकार द्वारा लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (LIC) में अपनी हिस्सेदारी कम करने की योजना, जो वर्तमान में 96.5% है, के कई संभावित नुकसान हो सकते हैं, खासकर आम जनता के दृष्टिकोण से। ये नुकसान विभिन्न पहलुओं जैसे आर्थिक, सामाजिक, और नीतिगत प्रभावों से जुड़े हो सकते हैं। नीचे इन नुकसानों को सरल और स्पष्ट भाषा में समझाया गया है:

1. पॉलिसीधारकों का भरोसा कम हो सकता है

LIC भारत में जीवन बीमा के क्षेत्र में सबसे भरोसेमंद संस्थानों में से एक है, क्योंकि यह सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी है। सरकार की हिस्सेदारी कम होने से पॉलिसीधारकों (policyholders) में यह धारणा बन सकती है कि LIC की सरकारी गारंटी (government guarantee) कमजोर हो रही है। इससे लोग निजी बीमा कंपनियों की ओर जा सकते हैं, जिससे LIC की मार्केट हिस्सेदारी (market share) प्रभावित हो सकती है। 
- उदाहरण के लिए, X पर कुछ पोस्ट्स में कहा गया है कि LIC के 26.85 करोड़ पॉलिसीधारकों को हिस्सेदारी कम होने से बोनस (bonus) में कमी और क्लेम (claims) में देरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

2. शेयर बाजार में अस्थिरता

- सरकार ने 2027 तक LIC में सार्वजनिक हिस्सेदारी (public shareholding) को 10% तक बढ़ाने और 2032 तक 25% तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए ऑफर फॉर सेल (OFS) या फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (FPO) जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी बिक्री से शेयर बाजार में अस्थिरता (market volatility) बढ़ सकती है। 
- उदाहरण के लिए, 10 जुलाई 2025 को OFS की खबर के बाद LIC के शेयरों में 1.23% की गिरावट देखी गई, जो ₹934.35 पर बंद हुए। 
- बड़े पैमाने पर हिस्सेदारी बिक्री से बाजार में तरलता की कमी (liquidity squeeze) हो सकती है, जिससे अन्य निजी कंपनियों के लिए पूंजी जुटाना मुश्किल हो सकता है। 
3. LIC की रणनीति और प्रबंधन पर प्रभाव 
हिस्सेदारी कम होने से LIC पर निजी निवेशकों (private investors) का दबाव बढ़ सकता है, जो मुनाफे (profit) और शेयर मूल्य (share price) को प्राथमिकता दे सकते हैं। इससे LIC का पारंपरिक मिशन, जो किफायती बीमा (affordable insurance) और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, प्रभावित हो सकता है। 
- विशेषज्ञों का कहना है कि LIC को निजी बीमा कंपनियों जैसे HDFC Life या ICICI Prudential Life की तरह अधिक प्रतिस्पर्धी बनना पड़ सकता है, जिससे उसकी नीतियों और प्रीमियम दरों (premium rates) में बदलाव हो सकता है। 

4. कर्मचारियों और एजेंटों में असंतोष

- LIC के कर्मचारी और एजेंट, जो इसके संचालन की रीढ़ हैं, हिस्सेदारी कम होने से असुरक्षा महसूस कर सकते हैं। उन्हें डर हो सकता है कि निजीकरण (privatization) से उनकी नौकरियां या कमीशन प्रभावित होंगे। इससे कर्मचारियों का मनोबल (employee morale) कम हो सकता है और कुछ अनुभवी कर्मचारी निजी क्षेत्र में जा सकते हैं। 
- इसके अलावा, कर्मचारियों को स्टॉक ऑप्शंस (stock options) जैसे प्रोत्साहन देने की जरूरत पड़ सकती है, जिससे LIC की लागत बढ़ सकती है।

5. आर्थिक नुकसान और पूंजी बाजार पर प्रभाव

- LIC भारतीय शेयर बाजार में एक बड़ा निवेशक है, जिसके पास $500 बिलियन से अधिक का इक्विटी पोर्टफोलियो है। हिस्सेदारी कम होने से LIC की निवेश रणनीति (investment strategy) बदल सकती है, क्योंकि निजी निवेशक अधिक जोखिम भरे निवेशों की मांग कर सकते हैं। इससे बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है। 
- साथ ही, सरकार को अल्पकालिक राजस्व (short-term revenue) तो मिलेगा (उदाहरण के लिए, 1% हिस्सेदारी बिक्री से लगभग ₹6,000 करोड़), लेकिन लंबे समय में LIC जैसे रणनीतिक संस्थान पर नियंत्रण कम होने से सरकार की वित्तीय नीतियों पर असर पड़ सकता है। 

6. छोटे निवेशकों पर असर

- हिस्सेदारी बिक्री से छोटे निवेशकों (retail investors) को मौका मिलेगा LIC के शेयर खरीदने का, लेकिन बड़े पैमाने पर बिक्री से शेयर मूल्य में उतार-चढ़ाव हो सकता है। इससे उन निवेशकों को नुकसान हो सकता है, जिन्होंने 2022 के IPO में ₹949 प्रति शेयर के हिसाब से निवेश किया था। 
- X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया कि हिस्सेदारी बिक्री से मध्यम वर्ग के निवेशकों का भरोसा टूट सकता है, क्योंकि LIC को "सुरक्षित निवेश" माना जाता है।

7. बीमा क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव

- LIC भारत में हर चार में से तीन बीमा पॉलिसियां बेचता है। हिस्सेदारी कम होने से निजी बीमा कंपनियों को प्रतिस्पर्धा का मौका मिलेगा, लेकिन LIC की मजबूत स्थिति और सरकारी समर्थन के कारण निजी कंपनियों को तत्काल लाभ होने की संभावना कम है। फिर भी, इससे बीमा क्षेत्र में मूल्य निर्धारण (pricing) और सेवा गुणवत्ता (service quality) पर असर पड़ सकता है। 

Offer for Sale क्या होता है

ऑफर फॉर सेल (Offer for Sale - OFS) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोई कंपनी या उसके मौजूदा शेयरधारक (जैसे सरकार या प्रमोटर्स) अपने पास मौजूद शेयरों को शेयर बाजार के जरिए जनता को बेचते हैं। यह आमतौर पर तब किया जाता है, जब कंपनी में हिस्सेदारी (stake) कम करनी हो या पूंजी जुटानी हो। संक्षिप्त और सरल हिंदी में बताया जाए तो बड़ी कंपनी के मालिक, ऑफर फॉर सेल के जरिए अपने हिस्से का थोड़ा सा मालिक आना हक पब्लिक को बेच देते हैं। इसके बदले में उन्हें काफी पैसा मिल जाता है। 

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