भारतीय संस्कृति में देवशयनी एकादशी का विशेष धार्मिक महत्व है। यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, जिसे पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी, या हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। वर्ष 2025 में देवशयनी एकादशी 6 जुलाई, रविवार को मनाई जाएगी। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु सृष्टि का दायित्व भगवान शिव को सौंपकर चार महीने के शयनकाल में चले जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें मांगलिक कार्य जैसे विवाह और गृह प्रवेश आदि रुक जाते हैं। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु पुनः जागते हैं। सामान्य वर्ष में 24 एकादशियाँ होती हैं, लेकिन मलमास या अधिकमास होने पर यह संख्या 26 हो जाती है। देवशयनी एकादशी व्रत रखने से भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और पापों से मुक्ति मिलती है।
देवशयनी एकादशी 2025: तिथि और महत्व
तिथि: 6 जुलाई 2025, रविवार
महत्व: यह एकादशी भगवान विष्णु की भक्ति और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए विशेष मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत से कई जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवशयनी एकादशी पूजन विधि
प्रातः स्नान: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा की तैयारी: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने देसी घी का दीपक जलाएँ।
वस्त्र और बिस्तर: भगवान को नए वस्त्र पहनाएँ और उन्हें प्रतीकात्मक रूप से नए बिस्तर पर सुलाएँ।
प्रसाद: बेसन के लड्डू या अन्य मिठाई चढ़ाएँ। काली गाय को बेसन के लड्डू खिलाना शुभ माना जाता है, जिससे व्यवसाय और नौकरी में उन्नति (प्रमोशन) होती है।
व्रत और पाठ: विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और दिनभर व्रत रखें। रात में जागरण करें या भूमि पर शयन करें।
तुलसी की पूजा: तुलसी को पवित्र माना जाता है, लेकिन इस दिन तुलसी पत्ता तोड़ना वर्जित है, क्योंकि यह भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहती है।
देवशयनी एकादशी के लाभ
सच्चे मन से व्रत और पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
यह व्रत पारिवारिक सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
गाय को चारा देने और दान करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
6 जुलाई 2025 को बनने वाले विशेष ज्योतिषीय योग
ज्योतिष और भारतीय धार्मिक परंपराओं के अनुसार, 6 जुलाई 2025 को देवशयनी एकादशी के साथ-साथ कई विशेष योग बन रहे हैं, जो इस दिन को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। निम्नलिखित जानकारी वैदिक पंचांग और उपलब्ध ज्योतिषीय स्रोतों पर आधारित है:
त्रिपुष्कर योग:यह एक शुभ योग है जो कार्यों में सफलता और समृद्धि प्रदान करता है। त्रिपुष्कर योग में शुरू किए गए कार्यों का प्रभाव तीन गुना बढ़ जाता है, इसलिए इस दिन शुभ कार्यों की शुरुआत करना लाभकारी माना जाता है। इस योग में विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठान, पूजा, और दान-पुण्य के कार्य फलदायी होते हैं।
रवि योग:रवि योग भी इस दिन बन रहा है, जो सूर्य देव से संबंधित है और कार्यों में सफलता, यश, और ऊर्जा प्रदान करता है। यह योग विशेष रूप से नौकरी, व्यापार, और व्यक्तिगत प्रयासों में प्रगति के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य देना और "ॐ सूर्याय नमः" मंत्र का जाप करना विशेष लाभकारी होगा।
गौरी व्रत का प्रारंभ: 6 जुलाई 2025 से गौरी व्रत शुरू हो रहा है, जो विशेष रूप से गुजरात में कन्याओं द्वारा माता पार्वती को समर्पित किया जाता है। यह व्रत सुखी वैवाहिक जीवन और अच्छे वर की प्राप्ति के लिए किया जाता है।इस दिन माता गौरी की पूजा और "ॐ गौरी शंकराय नमः" मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।
भद्रा का प्रभाव: इस दिन भद्रा का साया भी रहेगा, जो कुछ समय के लिए अशुभ माना जाता है। भद्रा के दौरान नए कार्य शुरू करने से बचना चाहिए। पंचांग के अनुसार, भद्रा का समय जांचकर शुभ मुहूर्त में ही पूजा और अनुष्ठान करें।
पंचांग के अनुसार अन्य विवरण
तिथि: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी
नक्षत्र: विशाखा (कुछ समय तक, फिर अनुराधा नक्षत्र शुरू हो सकता है)
वार: रविवार (सूर्य देव का दिन, जो रवि योग को और शक्तिशाली बनाता है)
राहुकाल: शाम 5:39 से 7:23 बजे तक (इस समय शुभ कार्यों से बचें)
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:08 से 4:49 बजे तक (पूजा और ध्यान के लिए उत्तम समय)
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:58 से दोपहर 12:54 बजे तक (शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त)
ज्योतिषीय सुझाव और उपाय
देवशयनी एकादशी व्रत: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा, विष्णु सहस्रनाम का पाठ, और तुलसी पूजा करें। तुलसी पत्र तोड़ना वर्जित है, इसलिए पहले से रखे पत्तों का उपयोग करें।
सूर्य पूजा: रवि योग के प्रभाव को बढ़ाने के लिए सूर्य देव को तांबे के बर्तन में लाल फूल, अक्षत, और रोली डालकर अर्घ्य अर्पित करें।
गौरी व्रत: अविवाहित कन्याएँ माता पार्वती की पूजा करें और सुहाग की वस्तुएँ अर्पित करें।
दान-पुण्य: इस दिन अन्न, वस्त्र, या पीले फल दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। काली गाय को बेसन के लड्डू खिलाना भी शुभ माना जाता है।
अन्य ज्योतिषीय प्रभाव
गजकेसरी राजयोग: 30 जून से 6 जुलाई 2025 तक चंद्रमा कर्क राशि में और गुरु मिथुन राशि में रहेंगे, जिससे गजकेसरी राजयोग बन रहा है। यह योग धन, यश, और बौद्धिक उन्नति प्रदान करता है, विशेष रूप से मिथुन, कर्क, और अन्य राशियों के लिए।
सावधानी: मंगल, शनि, और केतु की युति जून-जुलाई 2025 में अशुभ योग बना रही है, जो दुर्घटनाओं की आशंका को बढ़ा सकता है। इस दिन यात्रा करते समय सावधानी बरतें, विशेष रूप से हवाई यात्रा से बचें।
6 जुलाई 2025 को देवशयनी एकादशी के साथ त्रिपुष्कर योग, रवि योग, और गौरी व्रत का प्रारंभ इस दिन को धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत शुभ बनाते हैं। हालांकि, भद्रा और कुछ अशुभ योगों के कारण शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना आवश्यक है। इस दिन भगवान विष्णु, सूर्य देव, और माता गौरी की पूजा करने से आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ प्राप्त होंगे।
डिस्क्लेमर- यह लेख एवं पूजा विधि केवल वैष्णव संप्रदाय (श्री हरि विष्णु, श्री राम एवं श्री कृष्ण को अपना आराध्य देव मानने वालों) के गृहस्थ के लिए है।