पुलिस एक सरकारी विभाग (Government Department) है, जिसका मुख्य कार्य समाज में होने वाले अपराधों (crimes) को रोकना और कानून व्यवस्था बनाए रखना है। जब कोई अपराध (crime) होता है, तो पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करती है। इसके बाद, उचित जांच (police investigation) के आधार पर, जब पुलिस के पास पुख्ता सबूत (evidence) उपलब्ध होते हैं, तो वह सजा के निर्धारण के लिए न्यायालय (court) में चार्जशीट (charge sheet) प्रस्तुत करती है। आइए जानते हैं कि शासन (governance) द्वारा नियुक्त पुलिस की जांच के खिलाफ किसी अभियुक्त (accused) को प्रतिरक्षा (defense) का अवसर किन कानूनी प्रावधानों के तहत और क्यों प्राप्त होता है।
Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 की धारा 266: परिभाषा
1. जब किसी अभियुक्त (accused) से अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी प्रतिरक्षा (defense) के लिए साक्ष्य (evidence) प्रस्तुत करेगा या लिखित बयान (written statement) देगा, तो मजिस्ट्रेट (magistrate) ऐसे साक्ष्यों को अभिलेख (record) में दर्ज करेगा।
2. यदि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा (defense) के बाद पुनर्परीक्षा (re-examination) करवाना चाहता है या कोई अन्य दस्तावेज को प्रतिरक्षा के साक्ष्य (evidence for defense) के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है, तो वह मजिस्ट्रेट से *Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS)* की धारा 266 की उपधारा (2) के तहत अनुरोध कर सकता है।
मजिस्ट्रेट को यदि लगता है कि अभियुक्त को पुनर्परीक्षा (re-examination) के लिए उचित अवसर दिया जाना चाहिए, तो वह आवेदन (application) को स्वीकार कर सकता है। अन्यथा, यदि आवेदन को समय की बर्बादी या मुकदमे (court trial) में देरी का कारण माना जाता है, तो मजिस्ट्रेट अपने विवेक से आवेदन को अस्वीकार कर सकता है।
न्यायालय पुलिस की चार्जशीट पर विश्वास क्यों नहीं करता?
वास्तव में, यह कहना कि न्यायालय (court) पुलिस की चार्जशीट (charge sheet) पर विश्वास नहीं करता, पूरी तरह सही नहीं है। न्यायालय निष्पक्षता और तटस्थता (neutrality) के सिद्धांत पर कार्य करता है। वह पुलिस और अभियुक्त (accused) दोनों को समान रूप से अपना पक्ष प्रमाणित करने का अवसर प्रदान करता है। यह लोकतंत्र (democracy) और स्वतंत्रता (freedom) की मूल अवधारणा है, जो विश्व भर में न्यायिक प्रणालियों (judicial systems) का आधार है।
न्यायालय केवल चार्जशीट (charge sheet) के आधार पर निर्णय नहीं लेता, बल्कि अभियुक्त के अधिकारों (accused rights) को सुनिश्चित करता है। Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 के तहत अभियुक्त को अपनी प्रतिरक्षा (defense) प्रस्तुत करने का पूरा अधिकार है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता (transparency) और निष्पक्षता बनी रहे। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article. डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।