Climate, जिसके लिए कोई कानून नहीं फिर भी सुप्रीम कोर्ट में मुकदमेबाजी

एक जमाना था जब Climate Change का जिक्र बस वैज्ञानिकों की किताबों, UN Conferences या NGO Petitions तक सिमटा रहता था। मगर अब ये बात अदालतों की चौखट तक जा पहुंची है। कोर्टरूम अब जलवायु की लड़ाई का असली अखाड़ा बन गया है। भारत में जलवायु के लिए कोई कानून नहीं है लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे बाजी हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने जलवायु को नागरिक का संवैधानिक अधिकार माना है। 

276 Climate Cases बड़ी अदालतो तक पहुंचे

Grantham Research Institute (London School of Economics) की ताजा Report कहती है कि दुनिया भर में Climate Litigation का रंग-ढंग बदल रहा है। "दुनिया में Climate Lawsuits का बढ़ता शोर" Report के मुताबिक, 2015 से 2024 तक दुनिया भर में 276 Climate Cases बड़ी-बड़ी अदालतों, जैसे Supreme Courts और Constitutional Courts, तक पहुंचे। ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि एक नई सोच का सबूत हैं। लोग, समुदाय और Organizations अब Climate Accountability मांग रहे हैं। 

अमेरिका में Anti-Climate Lawsuits बढ़ने का खतरा

अमेरिका: वहां दो बड़े मामलों में State Governments को और सख्त Climate Action लेने का हुक्म मिला।
यूरोप: Norway और UK की Supreme Courts ने नए Fossil Fuel Projects पर ब्रेक लगा दिया। Norway ने तो North Sea Oil Fields को मंजूरी देने पर ही रोक लगा दी।
मगर हर मुकदमा Climate Protection के लिए नहीं है। 2024 में 226 Cases दर्ज हुए, जिनमें 60 Government Climate Policies के खिलाफ थे। इनमें से कई ESG Backlash का हिस्सा हैं, यानी कुछ लोग Climate Policies को Economic या Political Burden मानते हैं। Grantham Institute का कहना है कि Trump-Vance Administration के दौर में अमेरिका में ऐसे Anti-Climate Lawsuits और बढ़ सकते हैं।

Polluter Pays और Greenwashing पर कोर्ट की नजर 

2015 से 2024 के बीच 80 से ज्यादा Polluter Pays Lawsuits दायर हुए, जहां Pollution फैलाने वालों से Compensation मांगा गया। Brazil में Illegal Deforestation से जुड़े मामलों में कंपनियों को हर्जाना देना पड़ा। जर्मनी का मशहूर Lliuya vs RWE Case बताता है कि कंपनियों को उनके Historical Carbon Emissions के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, भले ही वो केस हार जाए।
2024 में 20% Lawsuits कंपनियों के खिलाफ थे, खासकर Greenwashing पर। Greenwashing यानी जब कंपनियां Eco-Friendly होने का ढोंग करती हैं, पर असल में Sustainable नहीं होतीं। अब ये मुकदमे सिर्फ Oil & Gas Companies तक नहीं, बल्कि Fashion, Food, और Financial Brands तक पहुंच गए हैं।

भारत में जलवायु न्याय की शुरुआत 

हमारे देश में Climate Litigation अभी नया-नया है, मगर कुछ मामलों ने बता दिया कि जल्द ही ये रफ्तार पकड़ेगा। 
ऋद्धिमा पांडे बनाम भारत सरकार (2017):
नौ साल की छोटी-सी लड़की ऋद्धिमा ने National Green Tribunal (NGT) में Petition दाखिल की कि भारत की Climate Policy Paris Agreement की शर्तों पर खरी नहीं उतरती। NGT ने याचिका खारिज कर दी, मगर Supreme Court में ये केस अभी लटका है। बड़ी बात ये कि Supreme Court ने कई Ministries को Notice भेजकर जवाब मांगा है। ये Climate Justice की तरफ बड़ा कदम है।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड केस (M.K. Ranjitsinh बनाम भारत सरकार, 2024):

ये केस भले एक चिड़िया को बचाने के लिए शुरू हुआ, मगर Supreme Court का फैसला बड़ा गूंजा। कोर्ट ने साफ कहा कि "Right to be Free from Climate Change भी Fundamental Right है।" ये पहली बार है जब भारत की Judiciary ने Climate Change को Constitutional Right से जोड़ा।इसके अलावा, भारत में कई Environmental Petitions में Climate Change का जिक्र आता है, मगर कोर्ट इसे अभी तक सिर्फ सहायक तर्क मानते हैं। 

भारत को क्या सीख लेना चाहिए? 

भारत में Climate Policy की बात तो होती है, मगर Climate Justice को Legal Framework में ढालने की जरूरत है। हमारे पास अभी कोई खास Climate Law नहीं है। कोर्ट Article 21 (Right to Life) और पुराने Environmental Laws के सहारे ही Climate Cases सुन रहे हैं। मगर Climate Crisis की रफ्तार देखते हुए ये नाकाफी है। दुनिया की अदालतें सिर्फ इंसाफ नहीं दे रही, बल्कि Climate Action की राह खोल रही हैं। भारत में Ridhhima Pandey और Great Indian Bustard जैसे केस चीख-चीखकर कह रहे हैं कि Climate Change अब सिर्फ Environmental Issue नहीं, बल्कि Human Rights और Constitutional Issue है। 

आखिरी बात 
Grantham Institute की जानकार Joana Setzer कहती हैं, "Litigation is now a two-way street" यानी कोर्ट अब Climate Action को बढ़ाने और रोकने, दोनों तरह के Lawsuits का मैदान बन गए हैं। भारत को फैसला करना है कि वो इस सड़क पर कौन-सी दिशा में जाना चाहता है। अगर हम Climate Crisis से सचमुच लड़ना चाहते हैं, तो कोर्ट की मेज उतनी ही जरूरी है जितनी Policy Table.

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