BHOPAL NEWS - दीनदयाल थाली ₹5 और सुलभ शौचालय ₹10, पब्लिक में असंतोष

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में अजीब स्थिति बन गई है। भोपाल नगर निगम की महापौर की MIC ने डिसाइड किया है कि, भोपाल में सुलभ शौचालय के लिए ₹10 देने होंगे। इस बात से पब्लिक नाराज है। लोगों का कहना है कि जिस भोपाल में दीनदयाल योजना के तहत भरपेट थाली खाना सिर्फ ₹5 में मिल जाता है, इस शहर में सुलभ शौचालय के लिए ₹10 निर्धारित करना, अन्याय पूर्ण है। 

अब तो प्रस्ताव पास हो चुका है: MIC मेंबर आरके सिंह बघेल

भोपाल में सुलभ शौचालय संचालित करने वाली संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने 25 स्थानों पर संचालित सार्वजनिक शौचालय में उपयोगकर्ता शुल्क दर 6 से बढ़ाकर 10 रुपए किए जाने की मंजूरी चाही थी। MIC (मेयर इन काउंसिल) ने इस प्रस्ताव को पास कर दिया था। एमआईसी मेंबर आरके सिंह बघेल ने बताया कि कई साल से 6 रुपए ही शुल्क लिया जा रहा था। कई बार खुल्ले पैसे को लेकर दिक्कतें होती थीं। लोग खुल्ले लेकर नहीं आते थे। यह बोझ बढ़ाने वाला नहीं है और न ही विरोध जैसी बात है। एमआईसी में यह प्रस्ताव पास हो गया है।

₹5 में खाना खाने वाले लोग ₹10 में शौचालय नहीं जाएंगे: चौहान

MIC के इस फैसले के खिलाफ पार्षद योगेंद्र सिंह गुड्‌डू चौहान ने कहा कि शुल्क बढ़ने से स्वच्छता अभियान पर भी असर पड़ेगा। अभी 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में भोपाल दूसरे नंबर पर आया है। शुल्क बढ़ने से अभियान पर असर पड़ सकता है। ₹5 में खाना खाने वाले लोग ₹10 में शौचालय नहीं जाएंगे बल्कि खुले में जाएंगे। कांग्रेसी पार्षदों ने कहा कि 24 जुलाई को नगर निगम परिषद की बैठक होगी, जिसमें यह प्रस्ताव लाया जाएगा। बैठक में इस प्रस्ताव का विरोध करेंगे। 

किन लोगों को परेशानी होगी

भोपाल मध्य प्रदेश की राजधानी है। आसपास के 15 जिलों से लोग यहां पर मजदूरी करने के लिए आते हैं। ठेकेदार की तरफ से उन्हें रहने के लिए खुला मैदान दिया जाता है। उनके सिर पर छत नहीं होती, रसोई घर नहीं होता और टॉयलेट नहीं होता। प्रदेश भर के गरीब लोग सरकार के सामने अपनी परेशानियों को रखने के लिए भोपाल आते हैं। ऐसे सभी लोग सरकार की तरफ से मिलने वाली ₹5 की दीनदयाल थाली खाकर अपना पेट भरते हैं। बड़ी सरल सी बात है, जो व्यक्ति भोजनालय में ₹5 खर्च करता है वह शौचालय के लिए ₹10 खर्च क्यों करेगा। जबकि शौचालय के लिए उसके पास विकल्प भी है। स्वच्छता अभियान से पहले इन लोगों को जहां भी झाड़ियां दिखती थी, बैठ जाते थे।

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